जगदीश ममगाई, नई दिल्ली
बारुद के ढेर पर बैठी जर्जर व अनियोजित चरमराती दिल्ली की सिसकी कौन सुने! दिल्ली विधानसभा का चुनाव कोई जीते पर 3.3 करोड़ दिल्लीवासियों के लिए स्वच्छ, सुरक्षित, सुविकसित दिल्ली की उम्मीद बस सपना ही है।
दिल्ली का भौतिक, वित्तीय और प्रशासनिक बुनियादी ढाँचा पुराना हो चुका है। वर्तमान में प्रबन्धन कमजोर ढांचे पर निर्भर है, समय की आवश्यकताओं के अनुरुप नहीं हैं। बुनियादी ढांचा न केवल अपर्याप्त है बल्कि उसका रख-रखाव भी ख़राब है। बुनियादी ढांचा सुधारने के लिए निकायों के पास धन की भारी कमी है।
दिल्ली में अवैध निर्माण के साथ अतिक्रमण भी है, बहुत सारे प्राधिकारी हैं और कोई जवाबदेही नहीं है। अवैद्य निर्माण, अनधिकृत कॉलोनी, झुग्गियां, कोचिंग सेंटर, बढ़ता यातायात, अनिश्चित जलवायु परिवर्तन, जल निकासी, पार्किंग, जानलेवा प्रदूषण, रेहड़ी-पटरी, बेघर लोग, रैन बसेरे, होटल, अवैद्य उद्योग, उच्च निर्मित घनत्व जैसे नागरिक मुद्दों पर चिंतन नहीं हो रहा है। भूमि, कानून-व्यवस्था, सर्विसेज सहित सभी प्रमुख अधिकार केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पास हैं लेकिन भाजपा भी बेहतर दिल्ली के निर्माण की बजाए मुफ्त संस्कृति की झंडाबरदार बन खुद ही अपनी पीठ थपथपा रही है। यह अलग बात है कि अरविंद केजरीवाल की बिजली-पानी-बस की सुविधा व महिलाओं को 2100 रु की पहल करने के चलते बीजेपी की घोषणाओं को कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है। कल तक दिल्लीवासियों को मुफ्तखोर कहने वाले अब आम आदमी पार्टी सरकार की मुफ्त संस्कृति को जन-कल्याणकारी बता जारी रखने की दुहाई दे रहे हैं।
(लेखक जगदीश ममगांई, ‘रंग बदलती दिल्ली’ के लेखक हैं)
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