पीएम मोदी के उतार-चढ़ाव में पटेलों की अहम भूमिका, केशुभाई पटेल को हटाकर कभी मोदी बने थे सीएम
नई दिल्ली, 27 नवंबर
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, गुजरात के उभरते युवा नेता हार्दिक पटेल और मराठा छत्रप शरद पवार, इन तीनों नेताओं में एक समानता है। ये तीनों नेता एक ही समाज (पटेल) से आते हैं। इन तीनों नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को समय-समय पर रोकने में बड़ी भूमिका अदा की और विपक्ष को एक ताकत दी। यह अलग बात है कि नीतीश कुमार बाद में भाजपा के सहयोगी बन गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उतार-चढ़ाव में पटेल समाज की अहम भूमिका रही है। वर्ष 2001 में मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री बनने के बाद इन्होंने उत्तराधिकारी के तौर पर आनंदीबेन पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन आरक्षण की मांग को लेकर पटेल समाज के आंदोलन के बाद आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी और उन्हें मध्यप्रदेश का गवर्नर बनाया गया।
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नरेंद्र मोदी के पीएम बनने की राह में सबसे ज्यादा बाधक नीतीश कुमार बने। शुरूआती दिनों में उन्होंने नाराजगी जताते हुए एनडीए से अलग हो गए। हालांकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार को काफी झटका लगा, दूसरी ओर नरेंद्र मोदी पीएम बन गए। लेकिन इसके बाद नीतीश कुमार और लालू यादव की जोड़ी ने बिहार में भाजपा को बुरी तरह से पटखनी दी। इसका संदेश पूरी दुनिया में गया। नीतीश कुमार की जीत से विपक्ष मजबूत हुआ। हालांकि बाद में लालू यादव से संबंध खराब होने के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर भाजपा के साथ हो लिए और भाजपा के सहयोग से बिहार के मख्यमंत्री बनें। हालांकि एक बार फिर नीतीश कुमार और भाजपा के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं।
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गुजरात के पटेलों को आरक्षण की मांग को लेकर हार्दिक पटेल का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से टकराव बदस्तूर जारी है। सात साल पहले महज 22 साल की उम्र में हार्दिक के नेतृत्व में गांधीनगर में आयोजित रैली में 5 लाख पटेलों की भीड़ ने दुनिया का ध्यान खींचा। हार्दिक पटेल के नेतृत्व में आंदोलन का ही नतीजा है कि वर्ष 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती मिली। युवाओं को आकर्षित करने के लिए पीएम को सावरमती नदी में सी प्लेन उतारना पड़ा।हार्दिक पटेल आज भी गुजरात और मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती बने हुए हैं।
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79 साल के इस मराठा क्षत्रप के पीएम मोदी से अच्छे संबंध हैं। बावजूद इसके शरद पवार ने सदैव भाजपा के विरोध में राजनीति की है। उम्र के इस पड़ाव में इस मराठा नेता ने विपक्ष को संजीवनी दी है। ये शरद पवार का ही कमाल है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस (भाजपा) और उपमुख्यमंत्री भतीजा अजीत पवार (एनसीपी) को महज चार दिन में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
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बता दें कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू था। लेकिन शनिवार तड़के राज्य से राष्ट्रपति शासन को हटाकर आनन-फानन में देवेंद्र फड़णवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री की शपथ दिला दी गई। लेकिन शरद पवार की राजनैतिक कुशलता का ही नतीजा है कि उन्होंने न केवल अपने विधायकों को एकजुट किया, बल्कि कांग्रेस और शिवसेना के विधायकों का भी भरोसा जीता। परिणामस्वरूप देवेंद्र फड़णवीस को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसे लेकर भाजपा शीर्ष नेतृत्व पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की चौतरफा निंदा हो रही है।