यूपी80 न्यूज, लखनऊ/नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट Supreme court ने राज्य सरकारों को नसीहत देते हुए कहा है कि न्यायिक कार्यों को न्यायपालिका को सौंपा गया है और न्यायपालिका की जगह पर कार्यपालिका को यह काम नहीं करना चाहिए। कार्यपालिका (सरकारी अधिकारी) किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती और न ही वह जज बन सकती है, जो किसी आरोपी की संपत्ति तोड़ने का फैसला करे।
सुप्रीम कोर्ट Supreme court ने बुधवार को आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर एक्शन Buldozer action मामले पर रोक लगाने की मांग की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि यदि किसी व्यक्ति को अपराध का दोषी ठहराने के बाद उसके घर को तोड़ा जाता है, तो यह भी गलत है, क्योंकि कार्यपालिका का ऐसा कदम उठाना अवैध होगा और कार्यपालिका अपने हाथों में कानून ले रही होगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि आवास का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और किसी निर्दोष व्यक्ति को इस अधिकार से वंचित करना पूरी तरह असंवैधानिक होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने संविधान में दिए गए उन अधिकारों को ध्यान में रखा है, जो राज्य की मनमानी कार्रवाई से लोगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उसने शक्ति के विभाजन पर विचार किया है और यह समझा है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने-अपने कार्य क्षेत्र में कैसे काम करती है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को नसीहत देते हुए कहा कि न्यायिक कार्यों को न्यायपालिका को सौंपा गया है और न्यायपालिका की जगह पर कार्यपालिका को यह काम नहीं करना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि यदि कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस वजह से तोड़ती है कि वह आरोपी है, तो यह शक्ति के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है। शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि जो सरकारी अधिकारी कानून को अपने हाथ में लेकर इस तरह के अत्याचार करते हैं, उन्हें जवाबदेही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
15 दिन पहले नोटिस देना जरूरी:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी संपत्ति का विध्वंस तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक उसके मालिक को 15 दिन पहले नोटिस न दिया जाए। यह नोटिस मालिक को पंजीकृत डाक के जरिए भेजा जाएगा आर इसे निर्माण की बाहरी दीवार पर भी चिपकाया जाएगा।