यूपी 80 न्यूज़, नई दिल्ली
देश की राजधानी दिल्ली में अल्पसंख्यक संस्थानों की स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन आज इन संस्थानों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। लोगों को उम्मीद थी कि वर्तमान केंद्र और राज्य सरकार इन संस्थानों के विकास के लिए नई योजनाएं बनाएगी और दोगुनी गति से काम होगा, लेकिन अफसोस की बात है कि अल्पसंख्यक संस्थानों का काम ठप पड़ा है।
इन्हीं संस्थानों में से एक राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (एनसीपीयूएल) है जहां से उर्दू भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए काफी काम किया जाता है, लेकिन केंद्र सरकार ने पिछले दो सालों से इसकी गवर्निंग बॉडी नहीं बनाई है जिसके कारण साहित्यिक गतिविधियां रुकी हुई हैं। इसके अलावा, एनसीपीयूएल के स्थायी निदेशक के अभाव के कारण संस्था पूरी ताकत से काम नहीं कर पा रही है। अल्पसंख्यक संस्थानों के मामले में केंद्र सरकार ही नहीं बल्कि दिल्ली सरकार की भी मंशा साफ नहीं है। उर्दू डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सैयद अहमद खान बताते हैं कि दिल्ली में उर्दू अकादमी, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग और दिल्ली वक्फ बोर्ड, ये तीनों अपनी बेबसी के आंसू बहा रही हैं। दिल्ली वक्फ बोर्ड में तो चेयरमैन का पद 26 अगस्त 2023 से खाली है, बोर्ड के गठन में लगातार देरी होने से गरीब, जरुरतमंद और विधवा महिलाओं की मदद नहीं हो पा रही है। आए दिन वक्फ बोर्ड के इमाम अपनी सैलरी के लिए सडक़ों पर प्रदर्शन करते नजर आते हैं, इमामों को 19 महीने में से सिर्फ 5 महीने की ही सैलरी मिली पाई है, इमाम अभी भी 14 महीने की सैलरी पाने के लिए वक्फ बोर्ड के दफ्तर के चक्कर काटने को मजबूर हैं। बोर्ड के गठन में देरी के कारण वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा में भी कमी देखी जा रही है। डॉ. खान का कहना है कि हाल ही में वक्फ बोर्ड से 70 से ज्यादा कर्मचारियों को एक झटके में बर्खास्त कर दिया जाना यह सवाल खड़ा करता है कि जब कर्मचारी ही नहीं होंगे तो काम कैसे होगा। इसके अलावा अगर उर्दू अकादमी दिल्ली की बात करें तो इसकी हालत भी कुछ अच्छी नहीं दिख रही है। कभी भारत की सबसे सक्रिय अकादमी मानी जाने वाली उर्दू अकादमी दिल्ली की गवर्निंग बॉडी के गठन में भी देरी हो रही है। यहां भी वाइस चेयरमैन का पद खाली पड़ा है, जबकि दिल्ली की बागडोर संभाल रही आम आदमी पार्टी अपनी पकड़ बनाए हुए है और आपने आप आपको शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने वाली पार्टी कहती है। दिल्ली उर्दू अकादमी उर्दू भाषा को लेकर किस हद तक फिक्रमंद है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में उर्दू भाषा के प्रचार प्रसार के लिए बनाए गए साक्षरता केंद्र पिछले तीन साल से बंद पड़े हैं। जबकि दिल्ली के स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा सामान्य रूप से जारी है।
बहरहाल दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की हालत भी उपरोक्त संस्थाओं की तरह ठीक नहीं है। हाल ही में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद कहीं से ऐसी कोई खबर नहीं है सरकार दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग को लेकर क्या कर रही है? डॉ. सैयद अहमद खान ने कहा कि सरकार किसी वर्ग विशेष की नहीं होती, बल्कि सरकार सबके लिए काम करती है, केंद्र सरकार ने सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का नारा दिया है, इसलिए हमें उम्मीद है कि केंद्र सरकार जल्द ही उर्दू के लिए बड़ा कदम उठाएगी। चूंकि उर्दू भाषा का जन्म प्यारे देश भारत में हुआ है और उर्दू देश की प्रमुख भाषाओं में से एक है। उन्होंने मांग की कि अगर केंद्र सरकार के पास राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद जैसी बड़ी संस्थान के सुधार के लिए कोई नई योजना है तो उसे जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए, अगर नहीं है तो पुरानी योजना के तहत एनसीपीयूएल की गवर्निंग बॉडी का गठन करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले दो साल से गवर्निंग बॉडी का गठन नहीं होने से उर्दू भाषा के विकास के लिए खर्च होने वाला लाखों का बजट वापस हो गया है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद का गठन कर एक स्थायी निदेशक की नियुक्ति करे ताकि प्रिय भाषा उर्दू को फलने-फूलने का मौका मिल सके और साहित्यिक प्रोग्रामो का आयोजन हो सके।
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता शेख अलीमुद्दीन असादी ने राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद की हालत पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एनसीपीयूएल न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में उर्दू भाषा को बढ़ावा देने में अपना अलग महत्व रखता है। सालों से इस बड़े संस्थान का दायरा सिमटता जा रहा है, ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी संस्था को चलाने के लिए कर्मचारियों के साथ-साथ अधिकारियों की भी जरूरत होती है।शेख अलीमुद्दीन ने कहा कि पिछले दो सालों से एनसीपीयूएल की गवर्निंग बॉडी बनने का इंतजार किया जा रहा है। एनसीपीयूएल के इतिहास में पहली बार हुआ है कि यह कोई स्थायी निदेशक नहीं है। इस संस्थान में प्रिंसिपल पब्लिकेशन ऑफिसर का पद भी खाली है, जो साबित करता है कि सरकार उर्दू के इस शक्तिशाली पेड़ की जड़ों को कमजोर करना चाहती है।उन्होंने कहा कि अगर जल्द से जल्द इन संस्थाओं की बॉडी का गठन नहीं किया गया तो उर्दू भाषा समिति लोगों का नुकसान होता रहेगा।