ब्राह्मण-ठाकुर विधायकों के बाद पटेल विधायकों की है सर्वाधिक संख्या, पटेल समाज के बुद्धिजीवी वर्ग ने जताई नाराजगी
लखनऊ, 19 फरवरी
उत्तर प्रदेश का पटेल समाज आज हासिए पर खड़ा है। कभी प्रदेश व केंद्र की कैबिनेट में इस समाज की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी होती थी, लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि महज 1 कैबिनेट मंत्री के सहारे प्रदेश का पूरा पटेल समाज है। मंगलवार शाम को लखनऊ में आयोजित सरदार पटेल बौद्धिक विचार मंच के कार्यक्रम में बौद्धिक विचार मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं शिक्षाविद् क्षेत्रपाल सिंह गंगवार ने यह बात कही। कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री मुकुट बिहार वर्मा समेत पटेल समाज के विभिन्न दलों के कई विधायक व अधिकारीगण उपस्थित थें।
क्षेत्रपाल सिंह गंगवार ने कहा कि 2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने और 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को जीताने में पटेल समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। फिलहाल प्रदेश में पटेल समाज के 34 विधायक हैं, इनमें से 27 विधायक बीजेपी से और 4 विधायक अपना दल (एस) से हैं। संख्या के आधार पर ब्राह्मण और ठाकुर विधायकों के बाद सर्वाधिक पटेल विधायकों की संख्या है। लेकिन दूसरी तरफ कैबिनेट मंत्रियों की संख्या पर नजर डालें तो पटेल समाज को मुकुट बिहारी वर्मा के तौर पर केवल एक मंत्री मिला है। जबकि अधिकांश महत्वपूर्ण विभाग एवं कैबिनेट मंत्री सवर्ण समाज के विधायकों को बनाया गया है।
यह भी पढ़िए: 85 को 50 में ही निपटाने की तैयारी, अधिक अंक लाने के बावजूद अनारक्षित वर्ग में ही मिलेगी नौकरी
एक भी राज्यपाल नहीं:
उत्तर प्रदेश से बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं को विभिन्न राज्यों का राज्यपाल बनाया गया, लेकिन पटेल समाज को कुछ नहीं मिला। प्रदेश के प्रमुख आयोग में भी जगह नहीं दी गई। कार्यक्रम में उपस्थित अन्य कई गणमान्य लोगों ने भी सवाल किया कि क्या पटेल समाज केवल बीजेपी का झोला उठाने का कार्य करेगा या उसे भी सरकार में बेहतर हिस्सेदारी मिलेगी।
यह भी पढ़िए: गोरखपुर मंडल: ठाकुर-ब्राह्मण के खेल में पिछड़ गए मल्ल-सैंथवार कुर्मी
केंद्र में भी खाली:
उत्तर प्रदेश के साथ-साथ केंद्र सरकार में भी देश के सबसे बड़े कृषक समाज को नजरअंदाज किया गया है। मोदी कैबिनेट में एक भी कैबिनेट मंत्री शामिल नहीं किया गया है। यूपी के बरेली से आठवीं बार सांसद बनने वाले संतोष गंगवार को केवल राज्यमंत्री बनाया गया है। इसी तरह बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को पिछली बार केवल राज्यमंत्री बनाया गया, लेकिन मोदी 2.0 में उन्हें जगह नहीं दी गई, जिसकी वजह से उत्तर भारत के पटेल समाज में गहरा असंतोष है। सहयोगी दलों को नजरअंदाज करने की वजह से ही झारखंड चुनाव के ऐन मौके पर आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) बीजेपी से अलग हो गई, जिसकी वजह से बीजेपी राज्य की सत्ता से बाहर हो गई। कार्यक्रम में समाज के बुद्धिजीवियों ने एक सुर में आवाज उठायी कि बीजेपी पटेल समाज को नजरअंदाज करना बंद करे। अन्यथा 2022 में पटेल समाज अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है।
यह भी पढ़िए: आजमगढ़ के पटेलों का कौन खेवनहार ?