स्वतंत्रता सेनानी महावीर त्यागी ने अपनी पुस्तक में सरदार पटेल और उनकी सुपुत्री के सादे जीवन के बारे में बहुत ही मार्मिक उल्लेख किया है
यूपी80 न्यूज, नई दिल्ली
महान स्वतंत्रता सेनानी महावीर त्यागी की पुस्तक में सरदार पटेल और उनकी सुपुत्री मणिबेन जी के सादे जीवन के बारे में लिखा गया यह लेख बेहद ही भावुक हैं, आप भी पढ़िए,,,
एक बार मणिबेन कुछ दवाई पिला रही थी। मेरे आने-जाने पर तो कोई रोक-टोक थी नहीं, मैंने कमरे में दाखिल होते ही देखा कि मणिबेन की साड़ी में एक बहुत बड़ी थेगली (पैवंद) लगी है। मैंने जोर से कहा, ‘मणिबेन, तुम तो अपने आप को बहुत बड़ा आदमी मानती हो।
तुम एक ऐसे बाप की बेटी हो कि जिसने साल-भर में इतना बड़ा चक्रवर्ती अखंड राज्य स्थापित कर दिया है कि जितना न रामचंद्र का था, न कृष्ण का, न अशोक का था, न अकबर का और अंगरेज का। ऐसे बड़े राजों-महाराजों के सरदार की बेटी होकर तुम्हें शर्म नहीं आती?
बहुत मुंह बना कर और बिगड़ कर मणि ने कहा, ‘शर्म आये उनको, जो झूठ बोलते और बेईमानी करते हैं, हमको क्यों शर्म आये?’ मैंने कहा, ‘हमारे देहरादून शहर में निकल जाओ, तो लोग तुम्हारे हाथ में दो पैसे या इकन्नी रख देंगे, यह समझ कर कि यह एक भिखारीन जा रही है। तुम्हें शर्म नहीं आती कि थेगली लगी धोती पहनती हो!’ मैं तो हंसी कर रहा था।
सरदार भी खूब हंसे और कहा, ‘बाजार में तो बहुत लोग फिरते हैं। एक-एक आना करके भी शाम तक बहुत रुपया इकट्ठा कर लेगी। पर मैं तो शर्म से डूब मरा जब सुशीला नायर ने कहा, ‘त्यागी जी, किससे बात कर रहे हो? मणिबेन दिन-भर सरदार साहब की खड़ी सेवा करती है। फिर डायरी लिखती है और फिर नियम से चरखा कातती है। जो सूत बनता है, उसी से सरदार के कुर्ते-धोती बनते हैं। आपकी तरह सरदार साहब कपड़ा खद्दर भंडार से थोड़े ही खरीदते हैं। जब सरदार साहब के धोती-कुर्ते फट जाते हैं, तब उन्हीं को काट-सीकर मणिबेन अपनी साड़ी-कुर्ती बनाती हैं।’
‘मैं उस देवी के सामने अवाक खड़ा रह गया। कितनी पवित्रा आत्मा है, मणिबेन। उनके पैर छूने से हम जैसे पापी पवित्र हो सकते हैं। फिर सरदार बोल उठे, ‘गरीब आदमी की लड़की है, अच्छे कपड़े कहां से लाये? उसका बाप कुछ कमाता थोड़े ही है। सरदार ने अपने चश्मे का केस दिखाया। शायद बीस बरस पुराना था। इसी तरह तीसियों बरस पुरानी घड़ी और कमानी का चश्मा देखा, जिसके दूसरी ओर धागा बंधा था। कैसी पवित्र आत्मा थी! कैसा नेता था! उसकी त्याग-तपस्या की कमाई खा रहे हैं, हम सब नयी-नयी घड़ियां बांधनेवाले देशभक्त!