आशीष पटेल ने कहा, “पुलिस की एक पक्षीय कार्रवाई का विरोध करना व पीड़ित वंचित पक्ष को न्याय दिलाने की मांग करना अगर जातीय राजनीति है तो इस पर अपना दल (एस) को गर्व है।“
यूपी80 न्यूज, लखनऊ
प्रतापगढ़ के गोविंदपुर-परसठ गांव में 22 मई को पिछड़ी जाति के किसानों के घर जला दिए जाते हैं, महिलाओं को घसीटा जाता है। उन्हें मारा-पीटा जाता है। उनके साथ बदसलूकी की जाती है। पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए एडीजी से लेकर मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखने के बावजूद जिला पुलिस प्रशासन गांव की पिछड़ी जाति के लोगों के खिलाफ एकतरफा कार्यवाही में मशगूल रहता है। अंतत: मजबूर होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल Anupriya Patel को 12 जून को गोविंदपुर जाने को मजबूर हुईं। अनुप्रिया पटेल के जाते ही सवर्णवादी मीडिया के साथ-साथ योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री राजेंद्र सिंह ऊर्फ मोती सिंह ने अनुप्रिया पटेल पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि कानून को अपना काम करने दिया जाए। मोती सिंह ने धरना पर बैठी महिलाओं पर भी आपत्तिजनक टिप्पणी की।
मोती सिंह के इस बयान पर अपना दल (एस) के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष व एमएलसी आशीष पटेल MLC Ashish Patel ने कुछ महत्वपूर्ण सवाल किए हैं। उन्होंने कहा है कि पुलिस की एक पक्षीय कार्रवाई का विरोध करना, पीड़ित वंचित पक्ष को न्याय दिलाने की मांग करना, उनके पक्ष में जायज बातों पर आवाज उठाना अगर जातीय राजनीति है तो इस पर अपना दल (एस) Apna Dal S को गर्व है।
खुद को इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र बताते हुए मीडिया के सामने लंबी-लंबी बातें करने वाले मंत्री मोती सिंह Moti Singh को इन सवालों का जवाब जरूर देना चाहिए।
पेश है आशीष पटेल की पोस्ट:
क़ानून अपना काम कर रहा होता और न्याय करने वाले सिस्टम को जंग ना लगा होता तो अपना दल (एस) को वंचित वर्ग के इन पीड़ितों की रक्षा के लिए आगे क्यों आना पड़ता:
1- 22 मई की घटना के बाद जिन पीड़ितों के घर एवं जानवर जलाए गए उनकी एफआईआर लिखने में 01 जून तक का समय लग गया वो भी घटना में लागू होने वाली सुसंगत धाराओ में नहीं लिखी गई, जबकि इसके लिए स्वयं भाजपा नेता और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के माननीय सदस्य ने video confrencing से ज़िलाधिकारी /पुलिस अधीक्षक को निर्देशित भी किया था और माननीय सदस्य फिर से 16 जून को मामले की सुनवाई करेंगे ।
2-एक पक्ष के 11 ग़रीब एवं कमजोर पीड़ित जेल में बंद है। वहीं पर लूटपाट एवं डकैती जैसे आरोप लगने के बाद भी दूसरा आरोपी पक्ष बाहर घूम रहा है। किसके दबाव के कारण ?
3- माननीय अनुप्रिया पटेल जी के 12 जून के दौरे के बाद ही ज़िला अधिकारी /पुलिस अधीक्षक घटना स्थल में क्यों गए ? उसके पहले 21 दिन किसके दबाव के कारण नहीं गए ? जबकि घटना की गम्भीरता उन्हें पता थी ।
4-जानवर और घर जल जाने के घटना के बाद भी स्थानीय पुलिस के दोषी अधिकारियों के विरुद्ध आज तक कोई कार्यवाही किसके दबाव में नहीं हो रही ?
5-घटना पर युवा एवं ईमानदार पुलिस अधिकारी (सी. ओ. सोराव) की रिपोर्ट क्यों नहीं सार्वजनिक की जा रही ?
6-अगर पुलिस अधीक्षक प्रतापगढ़ Pratapgarh इतने ही अनुभवी एवं बिना दबाव में काम करने वाले अधिकारी हैं तो रानीगंज थाने में लाकअप में घुसकर एक व्यक्ति की फावड़े से हत्या कैसे हो जाती है ?
इससे स्पष्ट है कि प्रतापगढ़ का न्याय दिलाने वाल सिस्टम खोखला हो चुका है ।
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अपना दल (एस) की माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष जी पर जातिवादी राजनीति का आरोप लगाने वाले ये क्यों भूल जाते हैं कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य ने भी मामला दर्ज करने का निर्देश दिया था। ये और बात है कि इस आदेश के बाद भी पुलिस ने एक सप्ताह के बाद वह भी हल्की धाराओं में मामला दर्ज किया।
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जातिवादी राजनीति का आरोप लगाने वालों ने ये क्यों नहीं देखा सुना कि अनुप्रिया जी ने न्याय की मांग की। कहा कि दोनों पक्षों के जो भी दोषी हों उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए।
पुलिस की एक पक्षीय कार्रवाई का विरोध करना, पीड़ित वंचित पक्ष को न्याय दिलाने की मांग करना, उनके पक्ष में जायज बातों पर आवाज उठाना अगर जातीय राजनीति है तो इस पर अपना दल (एस) को गर्व है।
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