आजादी के समय तक निम्न वर्ग को क्रूरता का सामना करना पड़ा
लखनऊ, 27 अगस्त
भारत के विकास की सबसे बड़ी बाधा जाति व्यवस्था रही है। देश में व्याप्त जाति प्रथा ने सदियों तक देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखा। up80.online आपको उन क्रूर यातनाओं के बारे में जानकारी देने जा रहा है, जिसे पढ़कर आप देश में व्याप्त जाति व्यवस्था की वास्तविकता से परिचित होंगे।
मद्रास में ताड़ी उतारने वाला शानार जाति का व्यक्ति यदि ब्राह्मण से 24 कदम से कम दूरी पर मिलता है तो ब्राह्मण अपवित्र हो जाता है।
मराठा क्षेत्र में महार, जो अछूत जातियों में से एक हैं, सड़क पर नहीं थूक सकते, क्योंकि इससे उच्च जाति के हिंदू के पैर से वह थूक छू गया तो वे अपवित्र हो जायेंगे। उन्हें अपने गले में एक मिट्टी का बर्तन लटकाकर चलना होता था। साथ ही उन्हें अपने पीछे झाडू़ बांध कर चलना होता है, जिससे वे जिस रास्ते से गुजरें, वह रास्ता साफ होता जाए।
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पुरादा वन्नान्स को दिन में बाहर निकलने की अनुमति नहीं:
दक्षिण भारत के एक जिला तिन्नेवेल्ली में पुरादा वन्नान्स नामक एक ऐसा वर्ग है, जिसे दिन में घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि उनको देखना अपवित्र माना जाता है।
मैसूर में निचली जाति की महिलाओं को स्तन ढकने की इजाजत नहीं:
मैसूर में कुछ खास निचली जाति की महिलाओं को अपने स्तन ढकने की इजाजत नहीं थी। इस मसले पर बहुत विवाद हुआ। इसके खिलाफ आंदोलन चले। आखिरकार मैसूर के महाराजा ने एक शाही फरमान जारी किया और इन जातियों को जैकेट पहनने या स्तन ढकने की अनुमति प्रदान की।
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नोट: ये रूढ़ीवादी प्रथायें आजादी के समय तक भारत में प्रचलित थीं, जिसके खिलाफ देश में कई सारे आंदोलन हुए, विशेषकर दक्षिण भारत की निम्न जातियों ने अपने अधिकारों को लेकर 70 साल पहले ही बड़े पैमाने पर आंदोलन किया।
मंडल कमीशन (राष्ट्र निर्माण की सबसे बड़ी पहल) ने आधुनिक भारत में जाति-एमएम श्रीनिवास, एशिया पब्लिशिंग हाउस, 1964 के हवाले से यह जानकारी दी है।