टिकटों के वितरण में सपा-बसपा ने दी सवर्णों को तरजीह
लखनऊ
यदि आप पिछड़ा वर्ग से आते हैं और आप एक पढ़े लिखे मतदाता हैं, तो आपको पिछले साल गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का पिछड़ा वर्ग का अलाप जरूर याद होगा। इस उपचुनाव में गठबंधन के तत्कालीन प्रत्याशी प्रवीण निषाद के समर्थन में आयोजित जनसभा में अखिलेश यादव ने अपने आधे घंटे के भाषण में 20 मिनट तक पिछड़ों के हक के लिए आवाज बुलंद की। हालांकि इस चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती चुनाव प्रचार में नहीं आई थीं। उन्होंने केवल अपने समर्थकों से गठबंधन प्रत्याशी को जीताने का आह्वान किया था।
लेकिन महज एक साल में सपा ने गोरखपुर व फूलपुर के मौजूदा सांसदों का टिकट काट दिया। सपा ने फूलपुर जैसी पटेल बहुल इलाके से मौजूदा सांसद नागेंद्र पटेल की जगह पंधारी यादव और गोरखपुर से मौजूदा सांसद प्रवीण निषाद की जगह राम भुआल निषाद को चुनाव मैदान में उतारा है।
मायावती का पिछड़ों की बजाय ब्राह्मण प्रेम:
बसपा सुप्रीमो मायावती भले ही दलितों व पिछड़ों के हकों की बात करती हैं, लेकिन उन्होंने अपने 38 उम्मीदवारों की सूची में दलित उम्मीदवारों के बाद सर्वाधिक 9 ब्राह्मण (भूमिहार भी) प्रत्याशी उतारा है। इसके अलावा उन्होंने कई स्थानों पर बाहुबली ठाकुर प्रत्याशियों को भी तरजीह दी है।
अखिलेश यादव का ठाकुर प्रेम :
बसपा सुप्रीमो के विपरीत सपा मुखिया अखिलेश यादव का ठाकुर व यादव प्रेम किसी से छिपा नहीं है। इन्होंने मुस्लिम और यादव के अलावा सर्वाधिक ठाकुर प्रत्याशियों को टिकट दिया है। खास बात यह है कि मुलायम सिंह अथवा अखिलेश यादव के पूर्व कार्यकाल में भी यादवों के बाद ठाकुरों को ही सर्वाधिक तवज्जो दी गई। 2012 से 2017 के कार्यकाल में अखिलेश यादव के कैबिनेट में 6 ठाकुर मंत्री थें। इनमें से चार कैबिनेट मंत्री थे। इस टीम में राजकिशोर सिंह, पंडित सिंह, रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया जैसे बाहुबली नेता शामिल थे।
नॉन यादव पिछड़ों को सदैव नजरअंदाज किया गया:
चाहे मायावती हों या अखिलेश यादव, ये दोनों नेता मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए भले ही सामाजिक न्याय की दुहाई दे रहे हों, लेकिन इन्होंने सदैव पिछड़ों को नजर अंदाज किया। मान्यवर कांशीराम के साथ पिछड़ा समाज के कई नेताओं ने कदम से कदम मिलाकर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी, लेकिन मायावती द्वारा इन्हें नजरअंदाज किए जाने की वजह से ये नेता धीरे धीरे बसपा से दूर हो गए। इन नेताओं की सूची में डॉ. सोनेलाल पटेल, जंगबहादुर पटेल, आरके चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य सहित कई जमीनी नेता शामिल हैं।
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इसी तरह मुलायम सिंह यादव सार्वजनिक मंच से भले ही पिछड़ों की बात करते रहे हों, लेकिन मुलायम सिंह यादव और उनके वारिश अखिलेश यादव का यादव प्रेम किसी से छुपा नहीं है। सत्ता में आने पर इन्होंने सर्वाधिक यादवों को ही मंत्रीमंडल, बोर्ड अथवा ठेकेदारी में तरजीह दी। पिछड़ों में यादवों के अलावा पटेल व मौर्या बिरादरी की अच्छी तादाद है। पिछले साल आए एक सर्वे से ज्ञात होता है कि उच्च पदों पर यादवों से ज्यादा संख्या पटेल समाज के अधिकारियों की है। बावजूद इसके अखिलेश यादव ने पटेल व कुशवाहा समाज को नजरअंदाज किया। वर्ष 2012 के शासनकाल में अखिलेश यादव ने एक मात्र पटेल समाज के विधायक राममूर्ति वर्मा को कैबिनेट मंत्री बनाया।
सबसे पहले मायावती ने की सवर्ण आरक्षण की मांग:
आज से 10 साल पहले अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान मायावती ने ही सबसे पहले सवर्ण आरक्षण की मांग की थी। आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 परसेंट सवर्ण आरक्षण को पास करा दिया तो पिछले दरवाजे से मतदाताओं को यही दोनों पार्टियां भड़का रही हैं।
क्या कहता है पिछड़ा समाज:
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य कौशलेंद्र सिंह पटेल कहते हैं कि मायावती जी ने दलितों व पिछड़ों के उत्थान की बजाय खुद के उत्थान पर ज्यादा ध्यान दिया। इसी तरह मुलायम सिंह और अखिलेश यादव अपने कार्यकाल में केवल सैफई परिवार के विकास तक ही सीमित रह गए। आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछड़ा व दलित समाज को विकास की मुख्य धारा में लाने का कार्य किया जा रहा है तो सपा और बसपा अपना अस्तित्व बचाने के लिए एकजुट हुई हैं। लेकिन समाज अब जागरूक हो रहा है। इनके बहकावे में नहीं आने वाला है।
अपना दल (एस) के युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हेमंत चौधरी कहते हैं कि मायावती जी एवं मुलायम सिंह व उनके पुत्र अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश का चार- चार बार मुख्यमंत्री रहें। बावजूद इन्होंने पिछड़ों का भला नहीं किया। पिछड़ा वर्ग इनके शासन काल में अति पिछड़ा होता गया। मुझे आश्चर्य है कि इतने लंबे समय तक इनके मुख्यमंत्री रहने के बावजूद केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एक भी ओबीसी का प्रोफेसर अब तक नहीं हुआ।
हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील रविन्द्र सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री वीपी सिंह के नेतृत्व में मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू की गई, जिसका श्रेय मुलायम सिंह यादव ने लेने में कोई कसर नहीं छोड़ा और उत्तर प्रदेश में 57 प्रतिशत पिछड़ों का लाभ एक जाति विशेष तक सीमित कर दिया। दूसरी ओर, मान्यवर कांशीराम ने बहुजन आंदोलन की जो शुरूआत की, उसकी नींव खोदने का कार्य मायावती जी ने किया। उन्होंने मनुवादी व्यवस्था को आगे बढ़ाकर पूरा पिछड़ा, कमेरा समाज के हक व अधिकार को कहीं न कहीं खत्म करने का पूरा प्रयास किया।