केके वर्मा, लखनऊ

सहकारी चीनी मिल संघ और सहकारी चीनी मिलों cooperative sugar mills में तकनीकी स्टाफ की कमी के चलते आने वाले दिनों में सरकारी सुपरविजन में चलने वाली दो दर्जन चीनी मिलें बंद हो जाएंगी। तीन-चार साल बाद सहकारी चीनी मिलें होंगी, लेकिन इन्हें चलाने वाले नहीं होंगे। कर्मचारी रिटायरमेंट हो रहे, लेकिन भर्ती नहीं, ऐसे में चक्का खुद ब खुद जाम होगा। शुगर फेडरेशन से लेकर शुगर मिलों तक रसायन विद, मेकैनिकल इंजीनियर, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, सिविल इंजीनियर, लेखाधिकारी, गन्ना अधिकारी इत्यादि शुगर इंडस्ट्री के लिए नितांत आवश्यक हैं बावजूद इसके तमाम पद खाली पड़े हैं।
सहकारी चीनी मिलों का किसानों से सीधा जुड़ाव है। शुगर फेडरेशन के अधीन 24 चीनी मिलें हैं, जिनमें 2023-24 का गन्ना पेराई सत्र शुरू हो रहा है। गन्ना पेराई सत्र में कार्य करने वाले अफसरों और तकनीकी कर्मचारियों की कमी अखर रही है। मीलों और संघ मुख्यालय में कुछ वर्ष पहले करीब डेढ़ हजार अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती थी। इसके सापेक्ष वर्तमान में केवल 315 कर्मचारी और अधिकारी रह गए हैं। सबसे खास बात यह है कि जो बचे हैं उनमें से लगभग आधे 2026-27 तक रिटायर हो जायेंगे। ऐसी परिस्थिति में सहकारी चीनी मिल्स संघ के अधीन संचालित होने वाली सहकारी चीनी मिलों का संचालन और गन्ना पेराई सत्र की सुचारू व्यवस्था में संकट उत्पन्न होगा।
शुगर फेडरेशन के एमडी आरके पांडेय का वर्कर्स की कमी के बावजूद व्यवस्था मेंटेन करने पर फोकस रहता है जिसके चलते पिछले तीन पेराई सत्र में अच्छा उत्पादन हुआ, प्रबंधन और सरकार के सहयोग से गन्ना मूल्य भुगतान भी ठीक हुआ, चीनी का रिकार्ड एक्सपोर्ट हुआ और रेट भी लगभग 4500 रूपये प्रति कुंटल तक मिला, शीरा रेट भी सन्तोषजनक ही रहा है। पहले शीरा सस्ता बिकता रहा है, मगर इधर साढ़े आठ सौ रुपये से लेकर एक हजार रुपये प्रति कुंटल तक बिका है। जब उत्पादन बेहतर और राजस्व भी ठीक आ रहा तो भर्ती में अड़चन समझ से परे है।
वर्तमान में मिलों के संचालन हेतु कुछ सेवानिवृत्त तकनीकी अधिकारियों और कर्मचारियों को अनुबंध पर रखा गया है। उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय चीनी मिल अधिकारी परिषद के अध्यक्ष एसपी सिंह के मुताबिक इंजीनियर और श्रमिक आदि पदों पर पदोन्नति की गई और लंबे समय से रुका समयमान वेतनमान भी दिया गया है। लेकिन सुरक्षित भविष्य खातिर मैनपावर तो बढ़ानी जरूरी है। वर्तमान में करीब पौने एक हजार अधिकारियों और कर्मचारियों के पद रिक्त बताये जाते हैं। यदि इन पदों को भरे जाने की बाबत शासन स्तर से निर्णय नहीं लिया जाता है तो तय है कि 2027 के बाद चीनी मिलों का चक्का नहीं घूम पायेगा। तकनीकी स्टाफ नही होगा, तो मिलों की बन्दी की नौबत आनी स्वाभाविक है।