कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी जी ने जनसंघ जैसी पार्टी का विलय जनता पार्टी में कर दिया था
विचार/राजेश पटेल
विपक्ष का आरोप है कि इस समय देश की स्थिति 1977 जैसी हो चुकी है। अघोषित आपातकाल जैसे हालात हैं। विपक्ष के नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। गोदी मीडिया के खेमा में शामिल न होने वाले पत्रकारों व लेखकों को चुप कराने का प्रयास किया जा रहा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि यदि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर जीती तो यह आखिरी चुनाव हो सकता है।
इन सब आरोपों के बीच पांच राज्यों में हुए विधानसभाओं चुनावों में जो परिणाम सामने आए, उनसे तो यही प्रतीत होता है कि देश की जनता का नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में ही फिलहाल विश्वास है। इस सरकार को आसानी से हटाना विपक्ष की किसी पार्टी के बूते की बात नहीं है। इंडिया गठबंधन की जो हालत है, यह भी सत्ता परिवर्तन करने लायक नहीं है।
सवाल है कि फिर उपाय क्या है। भाजपा को केंद्र की सरकार से हटाने का नुस्खा भाजपा में ही है। उसी की रणनीति पर चलकर उसे सत्ता से हटाया जा सकता है। जैसे 1977 में हुए आम चुनाव में। उस समय के जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी यदि नहीं चाहते तो जनता पार्टी का गठन ही नहीं हो पाता। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने अपनी पार्टी के अस्तित्व को ही दांव पर लगा दिया।
संपूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सभी विपक्षी दलों के आपस में विलय का प्रयास शुरू किया तो सबसे बड़ी चुनौती जनसंघ ही था। क्योंकि यह कैडर आधारित पार्टी थी। विचारधारा वाली पार्टी थी। इसकी स्थापना 1951 में श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने की थी। लेकिन कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने 26 साल पुराने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया। इसके लिए उन्हें पार्टी के कुछ नेताओं तथा कार्यकर्ताओं का गुस्सा भी झेलना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने तर्कों के माध्यम से सभी को संतुष्ट कर दिया।
यदि अटल जी बड़ा दिल नहीं दिखाते तो शायद जनता पार्टी के स्थान पर कोई गठबंधन ही रहता। गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों का अलग झंडा होता, चुनाव निशान होता और नाम भी। ऐसे में कांग्रेस को सत्ता से हटा पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था। इस बात को उस समय के विपक्ष के सभी नेता मानते थे और समझते भी थे।
जैसा कि विपक्ष कह रहा है कि आज भी कमोबेश वही स्थिति है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए भाजपा को सत्ता से हटाना जरूरी है। लेकिन सबके अपने-अपने राग हैं, सुर हैं और ताल भी। बड़ा दिल किसी का नहीं दिखता। 26 दलों वाले इंडिया गठबंधन में शामिल हर पार्टी का नेता प्रधानमंत्री बनना चाहता है। सिर्फ नीतीश कुमार ने कहा है कि उनकी इच्छा सिर्फ विपक्षी एकता की है, जिससे भाजपा को हराया जा सके, और कुछ भी नहीं।
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने पांच राज्यों के हुए विधानसभा चुनावों में अपना चरित्र उजागर कर दिया। इसका नतीजा भी भुगत रहे हैं, लेकिन अभी भी किसी से सीखने की उत्सुकता नहीं दिखती। राजनीति में युद्धनीति भी जरूरी है। इसका रास्ता योगीराज श्रीकृष्ण महाभारत में बता चुके हैं। युद्ध में जीत ही मायने रहती है। जीत के लिए क्या किया, इसका कोई मतलब नहीं है। भारतीय जनता पार्टी ने इसे आत्मसात कर लिया है। तभी तो हर चुनाव में उसे भारी सफलता मिल रही है।
विपक्ष को भी चाहिए कि ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन), धर्म, धनबल, ईडी-सीबीआइ का रोना छोड़ दे। एक झंडा, एक नाम और एक चुनाव निशान अपनाए। 1977 में अगुवाई करने के लिए जेपी थे। उनके जैसे आज भी लोग हैं, जिनको पद की कोई लालसा नहीं है। उद्देश्य सिर्फ भाजपा को सत्ताच्युत करना है। फिर जो आवाज उठेगी, उससे पूरे देश में ज्वार-भांटे जैसी हलचल होनी तय है।
(लेखक राजेश पटेल वेब पोर्टल sachchibaten.com के प्रधान संपादक हैं।)