केके वर्मा, लखनऊ
अपने सिद्धान्तों से इतर समझौता न करने और आमजन के हित में कुछ भी कर गुजरने की कूबत रखने वाले जननेता का नाम डॉ राममनोहर लोहिया है, उन्होंने समाजवाद का परचम विषम परिस्थितियों में भी लहराया। आज 23 मार्च को डॉ राम मनोहर लोहिया Dr. Ram Manohar Lohia का जन्मदिन मनाया जा रहा है।
देश की आजादी से लेकर सामाजिक जागरूकता में उनके योगदान को न भुलाया जा सकता है न कमतर आंका जा सकता है।
डॉ. लोहिया कहते थे, जिंदा कौमें पांच साल का इंतजार नहीं करतीं।
युवाओं के लिए वे प्रेरणा स्रोत थे। आज भी उनके सिद्धांत पर चलने वालों की संख्या कम नहीं है। वे सर्वसमाज की तरक्की चाहते थे। विश्व को परिवार मानते थे। देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए, जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख बदल दिया, जिनमें से राममनोहर लोहिया एक थे।
जयप्रकाश नारायण ने देश की राजनीति को स्वतंत्रता के बाद बदला तो राममनोहर लोहिया ने देश की राजनीति में बदलाव की बयार आजादी से पहले ही ला दी। प्रखर देशभक्ति और समाजवादी विचारों के कारण समर्थकों ही नहीं विरोधियों से भी सम्मान हासिल किया।
राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को फैजाबाद में हुआ था, उनके पिताजी हीरालाल पेशे से अध्यापक, सच्चे राष्ट्रभक्त और गांधीजी के अनुयायी थे। जब गांधीजी से मिलने जाते तो राम मनोहर को साथ ले जाते थे। इसके कारण गांधीजी के व्यक्तित्व का लोहिया जी पर गहरा असर हुआ। पिताजी के साथ 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए। बनारस से इंटरमीडिएट और कोलकता से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए लंदन के बजाय बर्लिन को चुना था। वहीं मात्र तीन माह में जर्मन भाषा पर मजबूत पकड़ बनाकर अपने प्रोफेसर जोम्बार्ट को चकित कर दिया। इकोनॉमिक्स में डॉक्टरेट की उपाधि केवल दो वर्षों में प्राप्त कर ली। जर्मनी में चार साल व्यतीत करके डॉ. लोहिया स्वदेश लौटे और सुविधापूर्ण जीवन के स्थान पर जंग-ए-आजादी के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी। डॉ. लोहिया समाजवादी विचारधारा के समर्थक थे। समाजवादी भी इस अर्थ में थे कि समाज ही उनका कार्यक्षेत्र था और अपने कार्यक्षेत्र को जनमंगल की अनुभूतियों से महकाना चाहते थे। वह चाहते थे कि व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कोई भेद, कोई दुराव और कोई दीवार न रहे। सब जन समान हो, सब जन का मंगल हो। उन्होंने विश्व नागरिकता का सपना देखा था। वह मानव मात्र को किसी देश का नहीं बल्कि विश्व का नागरिक मानते थे। जनता को वह जनतंत्र का निर्णायक मानते थे।
डॉ. लोहिया अक्सर कहा करते थे कि उनपर केवल ढाई आदमियों का प्रभाव रहा, एक मार्क्स का, दूसरे गांधी का और आधा जवाहरलाल नेहरू का। स्वतंत्र भारत की राजनीति और चिंतन धारा पर जिन गिने-चुने लोगों के व्यक्तित्व का गहरा असर हुआ है, उनमें डॉ. राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण प्रमुख रहे हैं। भारत के स्वतंत्रता युद्ध के आखिरी दौर में दोनों की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण रही है। 1933 में मद्रास पहुंचने पर लोहिया गांधीजी के साथ मिलकर देश को आजाद कराने की लड़ाई में शामिल हो गए। उन्होंने विधिवत समाजवादी आंदोलन की भावी रूपरेखा पेश की। 1935 में उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने राममनोहर लोहिया को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया। अगस्त 1942 में महात्मा गांधी ने भारत छोडो़ आंदोलन का ऐलान किया, जिसमें उन्होंने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और संघर्ष के नए शिखरों को छूआ। जयप्रकाश नारायण और डॉ. लोहिया हजारीबाग जेल से फरार हुये। भूमिगत रहकर आंदोलन का शानदार नेतृत्व किया। अंत में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर 1946 में उनकी रिहाई हुई। 1946-47 के वर्ष लोहिया की जिंदगी के अत्यंत निर्णायक वर्ष रहे। आजादी के समय उनके और पंडित जवाहर लाल नेहरू में मतभेद हो गए थे, जिसकी वजह से दोनों के रास्ते अलग हो गए। 12 अक्टूबर 1967 को लोहिया का 57 वर्ष की आयु में देहांत हो गया।


