जातिगत जनगणना की मांग को लेकर एकजुट हुए नीतीश कुमार व तेजस्वी यादव
लखनऊ, 13 जनवरी
उत्तर प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग के नेताओं को बिहार के नेताओं से नसीहत लेने की जरूरत है। जातिगत जनगणना की मांग को लेकर बिहार का पक्ष और विपक्ष एकजुट हो गया है, लेकिन उत्तर प्रदेश के ओबीसी नेता इस मामले में फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं। सोमवार को बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जातिगत आधार पर 2021 जनगणना की मांग की तो बिहार के मुख्यमंत्री एवं जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने भी तेजस्वी यादव की इस मांग का समर्थन किया और कहा कि जातिगत जनगणना बेहद जरूरी है।
नीतीश कुमार ने कहा कि 1931 के बाद जातिगत जनगणना कभी हुआ नहीं है। एक बार जातिगत जनगणना होना ही चाहिए। धार्मिक आधार पर भी गिनती होती है। ऐसे में जाति आधारित जनगणना बहुत जरूरत है। बिहार के लोगों की जातिगत आधार पर जनगणना की मांग है। बता दें कि मंडल आंदोलन की पृष्ठभूमि बिहार में तैयार हुई। मंडल कमिशन लागू होने से एक दशक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने देश में सबसे पहले पिछड़ों को आरक्षण दिया।
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दूसरी ओर, यूपी में जातिगत जनगणना को लेकर अब तक न बसपा सुप्रीमो मायावती ने आवाज उठाया है और न ही समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ही किसी मंच पर इसकी पुरजोर मांग की है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी इस मामले में फिलहाल शांत हैं। हालांकि उनकी पार्टी महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना व एनसीपी की सहयोगी के तौर पर सरकार में शामिल है और महाराष्ट्र विधानसभा ने पिछले दिनों विधानसभा में जातिगत जनगणना की मांग को लेकर विधानसभा में प्रस्ताव पास किया गया।
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क्या कहते हैं सामाजिक न्याय के विशेषज्ञ:
सामाजिक न्याय के विशेषज्ञ एवं लखनऊ स्थित हाईकोर्ट के अधिवक्ता नंद किशोर पटेल कहते हैं कि बिहार के ओबीसी नेता ओबीसी से जुड़ी समस्याओं पर एकजुट हो जाते हैं। इसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है, लेकिन ऐसा उत्तर प्रदेश में बहुत कम देखने को मिलता है। उत्तर प्रदेश के पिछड़े अथवा दलित नेता एक-दूसरे की टांग खिंचाई में ज्यादा रूचि रखते हैं।
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लखनऊ हाई कोर्ट के अधिवक्ता एवं अवध बार एसोसिएशन के संयुक्त सचिव अंगद विश्वकर्मा कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के नेताओं को बिहार के नेताओं से सबक लेना चाहिए और यदि अपना भविष्य सुरक्षित रखना चाहते हैं कि अपने मतदाताओं की जरूरतों को समझें। जातिगत जनगणना पर सपा-बसपा, अपना दल (एस), भाजपा और कांग्रेस सभी दलों के पिछड़े नेताओं को एकजुट होने की जरूरत है। जातिगत जनगणना से पिछड़ों की स्थिति स्पष्ट होगी और उनकी भागीदारी सुनिश्चित होगी।