सामाजिक न्याय दिवस: जयंती के मौके पर बीपी मंडल व वीपी सिंह को ‘भारत रत्न’ देने का उठा मुद्दा
यूपी80 न्यूज, लखनऊ
मंडल कमीशन Mandal Commission का नाम तो लगभग सभी सुनते रहे हैं। यह वही कमीशन है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र की नौकरियों में पिछड़े वर्ग OBC का आरक्षण सुनिश्चित हुआ। आज इन्हीं बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल BP Mandal) की 104 वीं जयंती है। उन्हें पिछड़ा वर्ग के नायक के तौर पर याद किया जाता है, जिनकी सिफारिशों ने वंचितों को मुख्यधारा में लाने में ऐतिहासिक परिवर्तन का काम किया।
पिता भी थे क्रांतिकारी विचारों के धनी:
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत सरकार द्वारा गठित दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष बीपी मंडल BP Mandal का जन्म 25 अगस्त,1918 को बनारस में हुआ। वे काफी धनी व जमींदार परिवार से थे और उनके पिता रासबिहारी लाल मंडल भी राजनीति में सक्रिय थे। रासबिहारी लाल मंडल ने पिछड़ी जातियों के लिए जनेऊ पहनने की मुहिम चलाई थी। वैसे तो कहा जाता रहा कि ये काम प्रतिक्रियावादी था, लेकिन असल में यह एक पहल थी, सामाजिक रुढ़ियों को तोड़ने व वर्णव्यवस्था की ऊँच-नीच की व्यवस्था में सुधार लाने की। इनका पैतृक स्थान सहरसा (अब मधेपुरा) के मुरहो स्टेट में था। दुर्भाग्य रहा कि जिस दिन बीपी मंडल के पिता की मृत्यु हुई,उसी दिन इनका जन्म हुआ।
स्कूल से छेड़ी बदलाव की मुहिम:
शुरुआती पढ़ाई बिहार के मधेपुरा से करने के बाद छात्र बीपी मंडल दरभंगा आ गए। यहां से उनका सामाजिक राजनीति में रुझान और साफ दिखने लगा था। तब जातियों में भेदभाव का दौर था, जो स्कूल में भी दिखता था। तथाकथित अगड़ी जातियां ऊपर या आगे बैठतीं, और बाकियों को नीचे या पीछे की ओर बैठकर पढ़ना होता था। कई दूसरी समस्याएं भी थीं। बीपी मंडल ने स्कूल में इन सबके खिलाफ आवाज हुई और वहीं से बदलाव शुरू हुआ।
राजनीति की शुरुआत:
साल 1952 में भारत में हुए पहले आम चुनाव में वे मधेपुरा से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। वे तब कांग्रेस पार्टी से निर्वाचित हुए थे। दस सालों बाद बीपी मंडल दूसरी बार विधायक बने और इसी दौरान साल 1965 में उन्होंने पिछड़ी जातियों के खिलाफ पुलिसिया अत्याचार को लेकर कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और सोशलिस्ट पार्टी का हिस्सा बन गए। साल 1967 में वे लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। इस दौरान कई उतार-चढ़ाव आए और वे साल 1968 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। ये मात्र बिहार के मात्र 51 दिनी मुख्यमंत्री रहे।
मोरारजी देसाई ने बीपी मंडल को पिछड़ा वर्ग आयोग का बनाया अध्यक्ष:
1 जनवरी, 1979 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बीपी मंडल को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नामित किया। इस जिम्मेदारी को उन्होंने काफी शानदार तरीके से निभाते हुए पूरी तरह अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने रिपोर्ट तैयार करने के लिए पूरे देश का भ्रमण किया और पिछड़ी जातियों की पहचान करते हुए उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की सिफारिश की। इसी रिपोर्ट को मंडल कमीशन रिपोर्ट कहते हैं।
राजनीति में भी हुआ बदलाव:
मंडल कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद ही बिहार और उत्तरप्रदेश समेत देश के कई राज्यों से पिछड़ी जातियों के नेता आगे आने लगे। इसे भारतीय राजनीति में साइलेंट रिवॉल्यूशन / मूक क्रांति का दौर भी कहा गया, यानी चुपचाप क्रांति होना। शीर्ष अदालत के निर्णय की बाध्यता को ध्यान में रखते हुए मण्डल जी ने 52 प्रतिशत ओबीसी की जातियों के लिए सरकारी सेवाओं में 27 प्रतिशत कोटा की सिफारिश के साथ अन्य और 39 सिफारिशें कीं। जिसमें से अभी तक मात्र 2 सिफारिशें-1.सरकारी सेवाओं में ओबीसी को 27 प्रतिशत कोटा और 2.केन्द्रीय व उच्च शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत कोटा।
लोकतांत्रिक मूल्यों से देश के बड़े समुदाय को और बेहतर तरीके से जोड़ने वाले इस नेता का निधन 13 अप्रैल, 1982 को पटना में हो गया। उनकी इच्छा के मुताबिक ही उनका अंतिम संस्कार पैतृक गांव मुरहो में किया गया। इस तरह बीपी मंडल की कहानी खत्म तो हुई लेकिन पिछड़े वर्ग से आने वाले युवा उन्हें एक नायक की तरह हमेशा याद करते रहेंगे।
बीपी मंडल व वीपी सिंह को मिले भारत रत्न:
भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता लौटन राम निषाद कहते हैं कि केन्द्र व राज्य सरकारों के द्वारा 25 अगस्त को सामाजिक न्याय दिवस के रूप में घोषित किया जाना चाहिए। बीपी मण्डल व वीपी सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना के आंकड़े जल्द से जल्द जारी किये जाने चाहिए। ओबीसी, एससी, एसटी के लिए “रिजर्वेशन इन प्रमोशन” लागू करने के साथ इनका बैकलॉग पूरा करने का कदम उठाया जाना चाहिए। सरकारी उपक्रमों व संस्थानों के निजीकरण के कारण ओबीसी, एससी, एसटी का प्रतिनिधित्व प्रभावित हो रहा है, इसलिए निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(साभार: लौटन राम निषाद, भारतीय ओबीसी महासभा, राष्ट्रीय प्रवक्ता)