केशव प्रसाद मौर्य ने मजदूरों के हित में बताया तो अखिलेश यादव ने मजदूर विरोधी करार दिया
यूपी80 न्यूज, लखनऊ
जब कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से पूरा देश जूझ रहा है। बीमारी की रोकथाम के लिए देश में लॉकडाउन लागू है। ऐसे दौर में योगी सरकार ने औद्योगिक संगठनों को तीन साल के लिए श्रम कानून से राहत दे दी है। सरकार के इस फैसले से रोजी-रोटी की मार झेल रहे मजदूरों की स्थिति और अधिक दयनीय होने की बात की जा रही है। इस मामले को लेकर विपक्ष हमलावर हो गया है।
योगी सरकार के फैसला के अनुसार अब अगले तीन साल तक प्रदेश में कोई श्रम कानून लागू नहीं होगा। ऐसी स्थिति में मजदूर अपने अधिकारों को लेकर फैक्ट्री मालिकों पर दबाव नहीं डाल सकते हैं।
-12 घंटे तक काम करवाने की छूट
-अब ओवरटाइम की जगह घंटे के हिसाब से मजदूरी देने का प्रावधान
-यूपी में 40 प्रकार के श्रम कानून हैं, इनमें से केवल 8 को ही बरकरार रखा जा रहा है।
-15 हजार रुपए से कम आय वाले के वेतन से कटौती नहीं
-ट्रेड यूनियन 1926 एक्ट से भी उद्योगों को छूट देने का फैसला। अब ट्रेड यूनियन की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है।
-श्रमिक संगठनों का आरोप है कि बगैर नोटिस के कभी भी नौकरी जा सकती है। हालांकि इसे लेकर अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं है।
-ऐसी स्थिति में ग्रेजुएटी से बचने के लिए ठेके पर मजदूरों को हायर करने की प्रथा बढ़ेगी
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सत्ता पक्ष की दलील:
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि यह अध्यादेश मजदूरों व राज्य के हित में है। हमने मजदूरों के हितों को ध्यान में रखते हुए निवेश के नए रास्ते खोले हैं।
विपक्ष का आरोप:
उधर, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है, “यूपी की बीजेपी सरकार ने इस अध्यादेश के द्वारा मजदूरों को शोषण से बचाने वाले ‘श्रम-कानून’ के अधिकांश प्रावधानों को 3 साल के लिए स्थगित कर दिया है। ये बेहद आपत्तिजनक व अमानवीय है। श्रमिकों को संरक्षण न दे पाने वाली गरीब विरोधी बीजेपी सरकार को तुरंत त्यागपत्र दे देना चाहिए।”
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