Slogans of Manyavar Kanshiram
बलिराम सिंह, नई दिल्ली
राजनीति में नारों का खास महत्व होता है। नारा यदि लोगों के दिलों-दिमाग पर छाने वाला हो तो सत्ता दिला सकती है। इन नारों से सरकारें बनती हैं और गिरती भी हैं। मान्यवर कांशीराम Kanshiram इसे बखूबी जानते थे। उन्होंने इनका खूब इस्तेमाल किया।
प्रस्तुत है कांशीराम जी के महत्वपूर्ण नारे:
1.जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी
2.जो बहुजन की बात करेगा, वही दिल्ली में राज करेगा
3.ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया ,,,,, बाकी सब हैं डीएस4
4.तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार।
बसपा की स्थापना के शुरूआती दिनों से लेकर 2007 से पहले तक कांशीराम और उनके समर्थक इन नारों का खूब इस्तेमाल करते थे।
5.मिले मुलायम-कांशीराम, हवा हो गए जय ,,,,
90 के दशक में जब भाजपा कार्यकत्र्ता जय श्री राम का नारा लगाते थें, तो उनके जवाब में यह नारा गढ़ा गया था।
6.चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर
2007 के विधानसभा चुनाव में सपा के खिलाफ यह नारा गढ़ा गया था-
चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर
हालांकि बाद में मायावती Mayawati ने इन नारों को बदल दिया और नया नारा दिया:
सर्वजन के सम्मान में, बीएसपी मैदान में
हाथी नहीं गणेश है,
ब्रह्मा, विष्णु, महेश है।
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कांशीराम, जीवन परिचय:
जन्म: 15 मार्च, 1934, पंजाब के रोपड़
अब इसे चन साहिब कहा जाता है। चन का अर्थ होता है घर और साहिब कांशीराम के लिए उपाधि के तौर पर इस्तेमाल होता है
1957 में पहली सरकारी नौकरी- सर्वे ऑफ इंडिया में
1958 में पुणे में एक्सप्लोसिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैबोरेटरी में बतौर रिसर्च असिस्टेंट
यहीं पर वह बाबा साहेब और ज्योतिबा फुले के विचारों को करीब से जाना और यहीं से उनके कायांतरण की शुरूआत हुई और इसके बाद उन्होंने प्रण किया। घरवालों को भेजे गए खत में उन्होंने लिखा:
अब कभी घर नहीं आऊंगा
कभी अपना घर नहीं खरीदूंगा
गरीबों, दलितों का घर ही मेरा घर होगा
सभी रिश्तेदारों से मुक्त रहूंगा
किसी के शादी, जन्मदिन, अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होऊंगा
कोई नौकरी नहीं करूंगा
जब तक बाबा साहब अंबेडकर का सपना पूरा नहीं हो जाता, चैन से नहीं बैठूंगा
कांशीराम ने इन प्रतिज्ञाओं का पालन किया और वह अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हुए
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14 अप्रैल 1973 को बामसेफ (ऑल इंडिया बैकवर्ड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लाईज फेडरेशन) का गठन किया।
6 दिसंबर 1978 को डीएस 4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) का गठन
1984 में बसपा की स्थापना
कांशीराम 1984 में पार्टी के गठन से देश के विभिन्न हिस्सों में घूमघूमकर लगातार पिछड़े, दलितों, आदिवासियों व अल्पसंख्यकों के बीच अभियान चलाते रहे। कांशीराम ने इन समुदायों के कर्मचारियों के बीच डीएस 4 के जरिए अपना आधार बनाया।
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