शिवसेना अलग, जेडीयू से खटास, झारखंड में अलग चुनाव लड़ेंगी एलजेपी व आजसू
नई दिल्ली, 12 नवंबर
दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी का इन दिनों अपने सहयोगियों से खटास बढ़ता जा रहा है। अटल व आडवाणी युग में जिन सहयोगी दलों से बीजेपी के मधुर संबंध थें, आज उन्हीं से संबंधों में खटास आ गया है। हालात ऐसे हैं कि अधिकांश सहयोगी दल अब अन्य जगह अपना ठौर तलाश रहे हैं।
मौजूदा राजनीतिक दौर में एनडीए में बिखराव बढ़ता जा रहा है। देश के हर हिस्से में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के बीच मनमुटाव है। कुछ जगहों पर खुल कर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है तो कुछ जगहों पर अप्रत्यक्ष तौर पर सहयोगियों को नजरअंदाज करने का सिलसिला शुरू है। ऐसे हालात में सवाल उठता है कि क्या बीजेपी के बढ़ते जनाधार की वजह से उसे सहयोगियों की जरूरत नहीं है अथवा सहयोगियों के साथ ठीक से समन्वय नहीं हो पा रहा है।
फिलहाल बीजेपी के सहयोगी दलों शिवसेना, जेडीयू, एलजेपी, आजसू जैसी पार्टियों से मनमुटाव चल रहा है। कुछ पार्टियां खुलकर बीजेपी का विरोध कर रही हैं तो कुछ पार्टियां मौके का इंतजार कर रही हैं।
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फिलहाल बीजेपी की सबसे प्रमुख सहयोगी दल शिवसेना एनडीए से अलग हो गई है। बीजेपी और शिवसेना की दोस्ती पिछले तीन दशक से चली आ रही थी। हालांकि राजनीतिक पंडित भले ही मौजूदा दौर के लिए शिवसेना की महात्वाकांक्षा को जिम्मेदार बता रहे हैं, लेकिन दोनों दलों के बीच खटास का दौर काफी पहले शुरू हो गया था। केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु को शिवसेना से बीजेपी में शामिल कराना शिवसेना के नेताओं को चिढ़ाना जैसा था। इसके अलावा विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर भी दोनों दलों के बीच खटास पैदा हुआ। देवेंद्र फड़नवीस व शिवसेना के नेताओं के बीच कभी मधुर संबंध नहीं दिखे। जानकारों का यह भी कहना है कि यदि 24 साल पहले 1995 में 176 सीट होने के बावजूद 67 सीटों वाली बसपा की नेता मायावती को बीजेपी मुख्यमंत्री बना सकती थी तो फिर महाराष्ट्र में बीजेपी को क्या समस्या थी?
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झारखंड में अलग चुनाव लड़ेंगी एलजेपी व आजसू:
बीजेपी की सहयोगी पार्टी एलजेपी झारखंड विधानसभा का चुनाव अलग लड़ेगी। सोमवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने इसकी घोषणा की। इसी तरह बीजेपी की अन्य सहयोगी पार्टी आजसू के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो ने भी बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
जेडीयू-बीजेपी में दूरियां बढ़ी:
मौजूदा दौर में जेडीयू और बीजेपी के संबंध भी बेहतर नहीं है। बिहार में सत्ता में होने के बावजूद बीजेपी के नेताओं ने पिछले दिनों आई बाढ़ के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली। गिरिराज सिंह, संजय पासवान, सुब्रमण्यम स्वामी जैसे भाजपा नेताओं के बयानों से दोनों पार्टियों के रिश्तों में और कड़वाहट आई। ऐसा लगता है कि जैसे शीर्ष नेतृत्व ने इन नेताओं को नीतीश कुमार के खिलाफ बोलने के लिए खुली छूट दे रखा है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों दलों के एक साथ लड़ने पर फिलहाल संशय बरकरार है।
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बीजेपी-अपना दल (एस):
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की दो सहयोगी पार्टियों सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी (भासपा) एवं अपना दल (एस) थीं। फिलहाल भासपा उत्तर प्रदेश सरकार से अलग हो गई है, हालांकि योगी सरकार में अपना दल (एस) शामिल है, लेकिन 10 विधायकों एवं दो सांसदों के बावजूद केवल एक राज्यमंत्री दिए जाने और केंद्र में अनुप्रिया पटेल के मंत्री न बनाए जाने से पार्टी कार्यकर्ताओं को मलाल है। पार्टी कार्यकर्ताओं से बातचीत में अनुप्रिया पटेल और उनके पति आशीष पटेल के मंत्री न बनाए जाने की टीस साफ दिखती है।
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इंडियन जस्टिस पार्टी:
इंडियन जस्टिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदित राज ने 2014 के चुनाव से पूर्व अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया और पश्चिमी दिल्ली से बीजेपी के सांसद बनें। लेकिन इस बार उनका पत्ता काट दिया गया। मजबूर होकर उन्हें कांग्रेस की शरण में आना पड़ा।
विशेषज्ञों की राय:
जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने एनडीए से अलग होते घटक दलों पर सवाल उठाते हुए समन्वय समिति के गठन की मांग की है।
पीटीआई (भाषा) के वरिष्ठ पत्रकार अनूप हेमकर कहते हैं कि अटल जी जब राजग मुखिया रहे तो वह सभी सहयोगी दलों को एक साथ लेकर चलते थे। विश्वास का वातावरण रहता था। भाजपा अब अटल जी वाली भाजपा नहीं रही। अब वह मोदी व शाह की भाजपा हो गई है। सहयोगियों को पर्याप्त सम्मान नहीं दिया जा रहा है। यही कारण है कि सहयोगी दल भाजपा से किनारा करते जा रहे हैं।
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लखनऊ हाई कोर्ट के अधिवक्ता एवं सामाजिक जानकार नंदकिशोर पटेल कहते हैं कि राष्ट्र के निर्माण में क्षेत्रीय दलों की भी अतुलनीय भूमिका होती है। क्षेत्रीय असंतुलन की वजह से इन दलों का उभार हुआ है। वाजपेयी सरकार में इन दलों के हितों का ध्यान रखा जाता था, लेकिन मौजूदा दौर में ऐसा लगता है कि प्रचंड बहुमत की वजह से भाजपा अपने सहयोगी दलों को नजरअंदाज कर रही है।
हालांकि इससे इतर द एशिन एज के विशेष संवाददाता एवं पिछले 10 सालों से बीजेपी की रिपोर्टिंग कर रहे शशि भूषण कहते हैं, “फिलहाल बीजेपी काफी ताकतवर हो गई है और उसके जरिए कई क्षेत्रीय दलों को जीत हासिल हुई है। ऐसे में बीजेपी अपना नुकसान करके क्षेत्रीय दलों को खुश करने की स्थिति में नहीं है।“