आरक्षण बचाने के लिए दलीय सीमाएं तोड़ एकजुट हुए बिहार के दलित नेता
यूपी80 न्यूज, पटना
आरक्षण बचाने के लिए दलीय सीमाओं को तोड़ते हुए बिहार के अनुसूचित जाति-जनजाति के नेताओं ने एकजुटता दिखाते हुए गुरुवार को महत्वपूर्ण बैठक की। न्यायिक सेवा के गठन एवं एससी-एसटी आरक्षण को नौंवी अनुसूचि में शामिल करने जैसी महत्वपूर्ण मांग को लेकर यह बैठक पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के आवास पर हुई। बैठक की अध्यक्षता परिवहन मंत्री संतोष निराला ने की। इस बैठक के एक महत्वपूर्ण नायक बिहार सरकार के उद्योग मंत्री श्याम रजक भी हैं। बैठक में एससी-एसटी आरक्षण बचाओ मोर्चा को देशव्यापी आकार देने पर चर्चा की गई।
आरक्षित वर्ग के लोगों का कहना है कि यूपी के पिछड़ा वर्ग के नेताओं को बिहार के इन दलित नेताओं से नसीहत लेने की जरूरत है। अपने हक-हुकूक को लेकर पिछड़ा वर्ग के सभी नेताओं को एक बैनर के तले एकजुट होना चाहिए।
आरक्षण बचाओ संघर्ष मोर्चा के समन्वय समिति के सदस्य और बिहार के उद्योग मंत्री श्याम रजक का कहना है कि अन्य राज्यों के आरक्षित वर्ग के विधायकों से भी संपर्क साधा जा रहा है, ताकि आरक्षण बचाओ की लड़ाई को राष्ट्रीय स्वरूप दिया जा सके। श्याम रजक का कहना है कि संविधान से हासिल आरक्षण के अधिकार को धीरे-धीरे समाप्त करने की कोशिश की जा रही है। इसे रोकना जरूरी है।
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मोर्चा की प्रमुख मांगें:
अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूचित में रखा जाए
न्यायिक सेवा आयोग का गठन किया जाए
निजी क्षेत्र की सेवाओं में आरक्षित वर्ग के लोगों को आरक्षण दिया जाए
प्रोन्नति में आरक्षण जारी रहे
पीएम से जल्द मिलेगा प्रतिनिधिमंडल:
पीएम से मिलने के लिए मोर्चा ने 14 सदस्यीय एक प्रतिनिधिमंडल का गठन किया है। इसमें जीतन राम मांझी, श्याम रजक, ललन पासवान, संतोष निराला, भागीरथी देवी, रामप्रीत पासवान, मुनेश्वर चौधरी, स्वीटी हेम्ब्रम, डॉ.अशोक राम, शिवचंद्र राम, निरंजन राम, रवि ज्योति, सत्यदेव राम, महेश्वर हजारी।
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क्या कहते हैं पिछड़ा वर्ग के बुद्धिजीवी:
पिछले साल दिल्ली में पिछड़े वर्ग के सांसदों को एक प्लेटफॉर्म पर एकजुट करने की कोशिश करने वाली संस्था ‘वी द पीपल’ के वरिष्ठ पदाधिकारी अनिल पटेल कहते हैं कि बिहार के दलित नेता वास्तव में सैल्यूट करने के योग्य हैं। दलितों की समस्याओं के लिए दलीय सीमाओं को तोड़कर एकजुट होना बहुत ही सराहनीय कदम है। उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग के नेताओं को इससे नसीहत लेने की जरूरत है। दलित नेता अपनी समस्याओं को लेकर सदैव एकजुट एवं मुखर रहते हैं, लेकिन पिछड़ा वर्ग से आने वाले नेता पिछड़ों की समस्याओं के निदान के लिए कभी एकजुट नहीं होते हैं। विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश में यह समस्या ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में पिछड़ों के साथ लगातार हो रहे अन्याय पर पिछड़े नेताओं को तत्काल एकजुट होने की जरूरत है। उधर, अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा के प्रदेश सचिव एवं युवा सामाजिक चिंतक
इं. सुनील पटेल कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के नेता अपनी अपनी रोटियां सेंकने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं। जिस प्रकार से वर्तमान सरकार में ओबीसी और दलितों के साथ अन्याय हो रहा है, इस वक़्त तो प्रदेश के समस्त ओबीसी दलित नेताओं को लामबंद होकर एक स्वर में आवाज उठाने की जरूरत है, किन्तु कहीं न कहीं सारे नेता दलितों-पिछड़ों के अधिकार हनन पर खामोश हैं, शायद अभी चुनाव निकट नहीं हैं।