बाबा ने किसानों के साथ-साथ सामाजिक बुराईयों के खिलाफ भी राष्ट्रीय पटल पर आवाज उठायी: केपी मलिक
के.पी. मलिक, नई दिल्ली
साल 1986 में कृषि कार्यों में प्रयोग होने वाली बिजली की दरें बढ़ाए जाने और ट्रांसफार्मर ना मिलने से मुजफ्फरनगर में किसान काफी दु:खी थे। किसानों के इस दर्द को बाबा महेंद्र सिंह टिकैत ने समझा और प्रशासन के खिलाफ उनके नेतृत्व में मुजफ्फरनगर के शामली में एक बड़ा किसान आंदोलन हुआ। इसी के तहत मार्च 1987 में प्रशासन और राजनितिक लापरवाही से संघर्ष हुआ जिसमें दो किसान और पीएसी के एक जवान की मौत हो गयी। किसानों के इस आंदोलन ने बाबा टिकैत को राष्ट्रीय पटल पर लाकर खड़ा कर दिया। किसानों के मसीहा कहे जाने वाले बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गाँव में एक मध्यम वर्गीय जाट परिवार में हुआ था। बाबा महेंद्र सिंह टिकैत बालियान खाप के चौधरी थे।
बिजली से शुरू हुई लड़ाई:
गौरतलब है कि जनवरी 1987 में जब बिजली दरों में प्रति हार्स पावर बीस रुपये की बढ़ोत्तरी की गई, तब बाबा टिकैत के नेतृत्व में भारी संख्या में किसानों ने शामली के करमूखेडी बिजलीघर को घेर लिया था। आठ दिनों तक उनकी घेरेबंदी चलती रही थी और घेरा तब टूटा जब तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने फैसला वापस लेने का एलान कर दिया था। वर्ष 1988 में भी उन्होंने मेरठ कमिश्नरी में कई दिनों तक प्रदर्शन किया था। इसके बाद बाबा टिकैत की अगुवाई में आन्दोलन इस कदर मजबूत हुआ कि प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को खुद सिसौली गांव में पहुंच कर पंचायत को संबोधित करते हुए किसानो की मांगों को मानने को मजबूर होना पड़ा था।
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इस आन्दोलन के बाद बाबा टिकैत की छवि मजबूत हुई और देशभर में घूम घूम कर उन्होंने किसानों के हक़ के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया। कई बार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी धरने प्रदर्शन किये गये। उनके आंदोलन की यह खासियत रही कि उनके आन्दोलन हमेशा राजनीति से दूर रहे और इसी खासियत के चलते वह निर्विवादित रूप से किसानों के सर्वमान्य मसीहा बन गए। बाबा टिकैत ने खाप व्यवस्था को समझा और ‘जाति’ से अलग हटकर सभी बिरादरी के किसानों के लिए काम करना शुरू किया। इसी क्रम में उन्होंने 17 अक्टूबर 1986 को किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक गैर राजनीतिक संगठन ‘भारतीय किसान यूनियन’ की स्थापना कर दी।
सामाजिक समस्याओं के खिलाफ आवाज उठायी:
किसानों के लिए लड़ाई लड़ते हुए अपने पूरे जीवन में बाबा टिकैत अनेकों बार महीनों जेल में रहे लेकिन उनके समर्थकों ने उनका साथ हर जगह निभाया। उनकी एक आवाज और एक इशारे पर देश के किसान किसी भी संघर्ष और त्याग के लिए तुरंत तत्पर मिलते थे। अपने पूरे जीवन में उन्होंने विभिन्न सामाजिक बुराइयों जैसे दहेज़, मृत्युभोज, अशिक्षा और भ्रूण हत्या जैसे मुद्दों पर भी आवाज उठायी। बाबा टिकैत की पंचायतों और संगठन में जाति धर्म को लेकर कभी भेदभाव नहीं दिखता था। जाट समाज के साथ ही अन्य कृषक बिरादरी भी उनके साथ उनके समर्थन में होती थी। बाबा टिकैत ने खाद, पानी और बिजली जैसी समस्याओं को जोरदार तरीके से रखना शुरू किया तो सरकार के पसीने छूटने लगे और उसका असर यह हुआ कि किसान यूनियन की टोपी देखते ही सरकारी अधिकारियों के हाथ-पांव फूल जाते थे और वह सबसे पहले किसान की समस्याओं का निपटारा करने की कोशिश करते थे।
बाबा टिकैत का एक किस्सा आइडियल जाट के नाम से बहुत प्रसिद्ध है। उस समय उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी। बात साल 2008 की हैं। मुजफ्फरनगर में सिसौली गांव को पूरे भारत के जाटों की ताकत का गढ़ माना जाने लगा था। हुआ यह कि बघरा विधानसभा से विधायक और राज्यसभा के पूर्व सांसद हरेन्द्र मलिक के पुत्र विधायक पंकज मलिक ने अधिकारी की बदसलूकी से नाराज होकर उस अधिकारी के साथ मारपीट कर दी थी। मायावती सरकार ने पंकज मलिक और उनके चार साथियों पर कई संगीन धारायें लगाकर उसके तीन साथियों को गिरफ्तार कर लिया था। अधिकारियों द्वारा बाबा टिकैत को अप्रत्यक्ष रूप से स्थानीय स्तर पर कमजोर करने के लिए जाट विधायक से जुड़े उसके साथियों और अन्य जाट युवकों को गिरफ्तार करके जेल में डालना शुरू कर दिया। इससे जाटों और सरकार के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई। गुस्साए जाट समुदाय एक स्वर में ऐलान कर दिया कि पंकज मलिक की गिरफ्तारी नहीं होने देंगे। इस मामले को लेकर मुजफ्फरनगर के सर छोटूराम जाट डिग्री कालेज के मैदान में पंचायत रखी गई। जिसमें मुख्य राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह, चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत, विधायक चौधरी हरेन्द्र मलिक और तमाम जाट नेता एक मंच पर देखे गए थे। मेरी समझ के अनुसार वह आखिरी मौका था जब तमाम राजनीतिक दलों के जाट नेताओं को एक मंच पर एक साथ देखा गया था। अपनी एक विशेष शैली में बात करने वाले बाबा टिकैत ने तमाम नेताओं के बोलने के बाद कहा कि ‘भाई वह मायावती सुन ले और सरकार भी सुन ले टैम देख कर ठीक दस मिनट में म्हारे बालकों कू यहाँ म्हारे धोरे ला दो नही तो ग्यारहवीं मिनट में हम सारे जेल तोड़ के खुद ले आवेंगे’। बाबा की बात सुनकर सारा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट और बाबा के नारों से गूंज उठा था। पत्रकारों और एलआईयू के माध्यम से बाबा की बात प्रशासन के कानों तक पहुंची तो अधिकारियों में हड़कंप मच गया। प्रशासन ने तुरंत फैसला लेते हुए पंकज के तीनों साथियों को रिहा किया था, ये थी बाबा टिकैत की ताकत।
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बाबा की फिर है जरूरत:
आज ये चीजें सुनने में असंभव लगती हैं। आज जो किसान की दुर्गति हो रही है और उसकी स्थिति दयनीय है। आज अगर बाबा टिकैत जिंदा होते तो किसानों की इस लड़ाई को आगे लेकर जाते और शायद किसान की इतनी दुर्दशा नहीं होती। किसानों को अपनी ताकत दोबारा बनानी होगी। वरना मंडी-फंडी, बिचौलिए और सरकारी तंत्र के शोषण के मकड़जाल से बाहर आना बहुत ही मुश्किल है।
बाबा के यहां हाजिरी देते थे राजनीतिज्ञ:
पश्चिम उत्तर प्रदेश के तमाम राजनीतिक दल बाबा के आगे पीछे घूमते थे। हालांकि उनका संगठन भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक था। लेकिन फिर भी अगर बाबा हल्का सा इशारा कर देते तो चुनाव की दिशा ही बदल जाया करती थी। इसी वजह से अधिकतर जनप्रतिनिधि बाबा के वहां हाजिरी देंते थे। सियासी लोग उनसे करीबी बनाने का बहाना ढूँढ़ते रहते थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर कई अन्य केंद्रीय कद्दावर नेता भी बाबा के यहाँ आते रहते थे। लेकिन उनके लिए किसानों की समस्याए और लड़ाई राजनीति से ऊपर रहती थी। बाबा टिकैत किसानों की न सुनने वाले नेताओं के खिलाफ सीधे लाठी की बात कर दिया करते थे।
बाबा ने पीएम से कहा किसानों की भलाई के लिए कुछ ठोस कर दीजिए:
बाबा जब तक जिए किसानों के लिए जिए, अपने अंतिम समय में जब उनका स्वास्थ्य बेहद ख़राब था अपने अंतिम समय तक किसानो के हितों के लिए संघर्ष करते रहे। बीमारी की अवस्था में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उन्हें सरकारी खर्च पर दिल्ली में इलाज कराने को कहा तो वो ठहाके लगाकर हंस पड़े और प्रधानमंत्री जी से कहा कि उनकी हालत ठीक नहीं है और पता नहीं कब क्या हो जाए। लेकिन उन्होंने कहा कि अगर केंद्र उनके जीते जी सरकार किसानों की भलाई के लिए कुछ ठोस कर दे तो इस आखिरी समय में वह राहत महसूस कर सकेंगे और उन्हें दिल से धन्यवाद देंगे। ऐसे भाव और विचार थे किसानों के मसीहा सिद्ध पुरुष महात्मा टिकैत के।
76 साल की उम्र में सदा के लिए सो गया किसानों का यह योद्धा:
15 मई 2011 को 76 वर्ष की उम्र में बीमारी के कारण बाबा महेंद्र सिंह टिकैत की म्रत्यु हो गयी और किसानों की लड़ाई लड़ने वाला ये योद्धा हमेशा के लिए शांत हो गया। आज मैं बाबा की पुण्यतिथि पर उनको हृदय से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और बड़े अफ़सोस के साथ कहना चाहता हूँ कि अपने जीवन भर किसानो के हक़ की लड़ाई लड़ने वाले बाबा टिकैत के जाने के बाद सरकारों ने भी किसानो से मुँह मोड़ लिया। अब किसान आस लगाये बैठे हैं कि जल्द कोई महात्मा टिकैत सरीखा कोई नए बाबा का उदय होगा और सरकारें किसान की सुध लेंगी। (वरिष्ठ पत्रकार केपी मलिक, राजनीतिक संपादक, दैनिक भास्कर)
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