मायावती को खुश करने के लिए सपा ने राजपूतों को टिकट नहीं दिया
लखनऊ, 16 जुलाई
भाजपा के खिलाफ सिंहासन पर कब्जा करने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन हुआ, लेकिन इस गठबंधन का लाभ सिर्फ और सिर्फ बहुजन समाज पार्टी को मिला। बहुजन समाज पार्टी जीरो से उठकर सीटों तक पहुंच गई, जबकि समाजवादी पार्टी पूर्व की तरह पांच सीटों पर ही सीमित रह गई। खास बात यह है कि कल तक जो राजपूत बिरादरी समाजवादी पार्टी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही थी, वह भी दूर हो गई, या यह कहें कि समाजवादी पार्टी ने खुद राजपूतों से दूरी बना ली। इसका एक ज्वलंत उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सांसद पुत्र नीरज शेखर का इस्तीफा देना है।
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विधानसभा चुनाव 2017 के बाद उत्तर प्रदेश की बदली राजनीति पर नजर डालें तो साफ तौर पर दिखता है कि भाजपा को हराने के लिए अखिलेश यादव ने हर संभव कोशिश की। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की चौखट पर गुलदस्ता लेकर गए। गोरखपुर, फूलपुर एवं कैराना संसदीय क्षेत्र में होने वाले उपचुनाव में फतह हासिल करने के लिए निषाद पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल से समझौता किया। फलस्वरूप यह गठबंधन एक विजेता के तौर पर उभरा। राजनीतिक पंडित आंकलन करने लगे कि लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में यह गठबंधन नया गुल खिलाएगा। लेकिन मोदी के आभा मंडल के सामने यह गठबंधन टिक नहीं सका।
बसपा मुखिया ने सपा को राजपूतों से दूर कर दिया!
मजे की बात तो यह है कि बसपा सुप्रीमो ने अपने वोट बैंक को सहेजने और ब्राह्मणों को खुश करने के लिए हर संभव कोशिश की। उन्होंने आठ ब्राह्मण प्रत्याशियों को टिकट दिया, लेकिन दूसरी ओर सवर्णों में सबसे ज्यादा राजपूतों में पैठ रखने वाली समाजवादी पार्टी ने केवल दो राजपूतों को ही टिकट दिया। कहा जाता है कि मायावती की डर से अखिलेश यादव ने ये कदम उठाया।
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युवा तुर्क के तौर पर लोकप्रिय पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सांसद पुत्र नीरज शेखर को भी पार्टी ने नजरअंदाज कर दिया। बलिया से पार्टी ने राजपूत उम्मीदवार की बजाय ब्राह्मण उम्मीदवार सनातन पांडेय को टिकट दिया। हालांकि कहा जाता है कि बलिया से नीरज शेखर अथवा उनकी पत्नी को टिकट मिलना तय था, लेकिन ऐन मौके पर उनका टिकट काट दिया गया, जिसकी वजह से नीरज शेखर नाराज चल रहे थे।
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राजा भैया पहले ही दूर जा चुके हैं:
यूपी के राजपूत युवाओं के बीच सबसे लोकप्रिय प्रतापगढ़ के कुंडा से विधायक राजपूत विधायक रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया से अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव की बहुत ज्यादा करीबी थी, लेकिन पिछले साल राज्यसभा चुनाव के मौके पर बसपा प्रत्याशी के समर्थन को लेकर दोनों नेताओं में दूरी बढ़ गई। राजा भैया ने बसपा प्रत्याशी की बजाय भाजपा प्रत्याशी को वोट दिया।
मुसलमानों को भी दूर करने की कोशिश:
गठबंधन तोड़ने के बाद मायावती ने अखिलेश यादव पर मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट न देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव ने धुव्रीकरण के डर से मुसलमानों को टिकट देने से मना किया था।
शहरी एवं असुरक्षित सीटें सपा को दी गईं:
लोकसभा चुनाव में मिली हार को लेकर समाजवादी पार्टी के समर्थक यहां तक कहते हैं कि बसपा ने गठबंधन में दबाव बनाकर सर्वाधिक सुरक्षित और जीताऊ सीटें अपने पास रख ली और चुनौतीपूर्ण एवं शहरी सीटें समाजवादी पार्टी के हवाले कर दी, जहां पर भाजपा का बर्चस्व था।
बलिया जनपद से संबंध रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अनूप हेमकर कहते हैं, “बसपा सुप्रीमो मायावती के झटके से अभी सपा उबर भी नहीं पायी थी कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर ने सपा को चरखा दांव लगाकर चित्त कर दिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती से संबंध बनाने को लेकर राजा भैया विरोध का झंडा बुलंद ही कर रहे थे कि अब सपा के विरुद्ध विरोध में नया नाम पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर का जुड़ गया है। सपा चंद्रशेखर के नाम के सहारे राजपूत मतों को साधती रही है, लेकिन अब वह चंद्रशेखर के नाम का भी उपयोग नहीं कर पाएगी। सपा के पास अभी भी ओमप्रकाश सिंह, अरविंद सिंह गोप सरीखे राजपूत नेता हैं, लेकिन इनका प्रभाव अपने निर्वाचन क्षेत्र में स्वजातीय लोगों तक ही सीमित माना जाता है। अखिलेश के सखा रहे नीरज के पास धोखेबाजी की दास्तान सुनाने के लिए बहुत कुछ है।”
हालांकि अनूप हेमकर यह भी कहते हैं कि नीरज शेखर से गठबंधन को कोई झटका लगने वाला नहीं है, क्योंकि शेखर का प्रभाव राजपूत वर्ग पर ही है। इस समाज ने विधानसभा चुनाव में सपा के उम्मीदवारों को कभी भी समर्थन नहीं किया। उधर, नीरज शेखर को वीरेंद्र सिंह मस्त से जूझना होगा, जो भाजपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष हैं और भाजपा व संघ में मजबूत पकड़ रखते हैं।