बलिराम सिंह, बलिया/लखनऊ
सुभासपा SBSP प्रमुख एवं उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर Omprakash Rajbhar के पुत्र डॉ.अरविंद राजभर Dr Arvind Rajbhar घोसी Ghosi लोकसभा चुनाव हार गए हैं। पिछले सात सालों में अरविंद राजभर की यह तीसरी हार है। इससे पहले वह 2017 में बलिया की बांसडीह Bansdih विधानसभा सीट और 2022 में वाराणसी की शिवपुर Shivpur विधानसभा सीट से चुनाव हार गए थे।
घोसी में 1.60 लाख वोटों से हार:
घोसी लोकसभा चुनाव में अरविंद राजभर को सपा प्रत्याशी राजीव राय Rajeev Rai ने लगभग 1 लाख 60 हजार वोटों से हराया है। राजीव राय को 503131 वोट मिले हैं, जबकि अरविंद राजभर को 340188 वोट और बसपा प्रत्याशी बालकृष्ण चौहान को 209404 मत मिले। मजे की बात यह है कि घोसी में मूल निवासी समाज पार्टी की प्रत्याशी लीलावती राजभर Lilawati Rajbhar को 47 527 वोट मिले। अर्थात राजभर वोट कई जगहों पर बंट गया।
शिवपुर, वाराणसी में 27 हजार से हार:
2022 के विधानसभा चुनाव में सपा और सुभासपा गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर अरविंद राजभर वाराणसी की शिवपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे। लेकिन उन्हें भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं योगी सरकार के मंत्री अनिल राजभर Anil Rajbhar ने लगभग 27 हजार वोटों से हरा दिया। अनिल राजभर को 1 लाख 15 हजार वोट मिले थे, जबकि अरविंद राजभर 88 हजार वोट पाकर भी हार गए। बसपा प्रत्याशी रवि मौर्य को 41 हजार वोट मिले थे।
2017 में बांसडीह में तीसरे स्थान पर:
2017 में भाजपा और सुभासपा गठबंधन के तहत अरविंद राजभर बांसडीह से चुनाव लड़े थे। लेकिन उनके विजय रथ को खुद भाजपा की बागी उम्मीदवार केतकी सिंह Ketaki Singh ने रोक दिया। हालांकि केतकी सिंह भी सपा प्रत्याशी राम गोविंद चौधरी Ram Govind Chaudhary से महज 2 हजार से कम वोटों से हार गईं। हालांकि चुनाव बाद केतकी सिंह दोबारा भाजपा में शामिल हो गईं और 2022 के चुनाव में भाजपा, निषाद पार्टी गठबंधन की प्रत्याशी के तौर पर केतकी सिंह ने रामगोविंद चौधरी को हरा दिया।
बार-बार क्यों हार रहे हैं अरविंद राजभर?
अब सवाल है कि आखिर अरविंद राजभर बार-बार चुनाव क्यों हार जा रहे हैं। 2017 की अपेक्षा 2022 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की सीटें तो 4 से बढ़कर 6 हो गईं, लेकिन अरविंद राजभर को सफलता नहीं मिली। अपने परंपरागत वोटों को सहेजने के लिए कुछ महीने पहले ओमप्रकाश राजभर ने मऊ से पुराने कार्यकर्ता बिच्छे लाल राजभर BichheLal Rajbhar को विधान परिषद सदस्य MLC बनाया, बावजूद इसके राजभर वोट बिखर गए और अरविंद राजभर हार गए। हालांकि इस हार को लेकर सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर की एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें ओमप्रकाश राजभर कह रहे हैं कि सहयोगी पार्टी भाजपा का वोट उन्हें ट्रांसफर नहीं हुआ।
पूर्वांचल की राजनीति को करीब से जानने वाले बलिया जनपद के वरिष्ठ पत्रकार अनूप हेमकर Anoop Hemkar
अरविंद राजभर की हार के लिए खुद ओमप्रकाश राजभर के पुराने बयानों को जिम्मेदार मानते हैं। अनूप हेमकर कहना है कि ओमप्रकाश राजभर के पुराने बयानों से सवर्ण मतदाता नाराज थे। हालांकि इस नाराजगी को दूर करने के लिए उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने अरविंद राजभर से माफी भी मंगवाया था, बावजूद इसके लोग नहीं पसीजे। उन्होंने कहा कि भाजपा के कार्यकर्ता भी अरविंद राजभर के लिए मन से नहीं लगे।
दैनिक जागरण के उप संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार एवं सच्ची बातें खरी-खरी वेबसाइट के सीईओ मिर्जापुर निवासी राजेश पटेल Rajesh Patel कहते हैं, “जनता का मूड बदल चुका है। राजभर ने जिस सम्मान की बात करके अपने समाज के लोगों को जागरूक करते हुए अपने पक्ष में कोशिश जरूर की। लेकिन लोगों ने देखा कि यह अपने भले के लिए उसी सम्मान को गिरवी रखते जा रहे हैं। बार-बार गठबंधन बदलने से इनकी वैचारिक प्रतिबद्धता पर समाज में ही सवाल उठने लगे। ऐसा नहीं है कि यह 2024 के चुनाव में ही हुआ। ओमप्रकाश राजभर के बेटे 2017, 2022 का भी चुनाव इसी कारण से हारे। सबसे बड़ा नकारात्मक असर इनके बड़बोलेपन का इनकी राजनीति पर पड़ा है। दरअसल खुद इनके समाज ने ही इनकी बातों को गंभीरता से लेना बंद कर दिया।“
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रवक्ता मनोज सिंह Manoj Singh कहते हैं,
“ओमप्रकाश राजभर के तीखे बयान ही उनके पुत्र की हार केे जिम्मेदार हैं। वह नेताओं की बजाय पूरे समाज पर तीखी टिप्पणी करने लगते हैं। इनकी स्थिर विचारधारा की बजाय प्रतिक्रियावादी विचारधारा है, जिसे लोग नहीं भूलते हैं। इसके अलावा भाजपा के कार्यकर्ता भी जोश से प्रचार में नहीं जुटे। उनके चुनाव चिन्ह् का भी असर पड़ा। इसके अलावा घोसी के मतदाताओं का मूड सामाजवादी रहा है। यह कम्यूनिस्ट विचार धारा की धरती रही है। दारा सिंह चौहान के समय से ही आम जनता में इनके प्रति नकारात्मक भाव पैदा हो गया, जिसकी वजह से ये हार गए।”