यूपी80 न्यूज, लखनऊ
जनगणना किसी देश या देश के एक सुपरिभाषित हिस्से के व्यक्तियों के एक विशिष्ट समय पर जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक आँकड़ा एकत्र करने, उसके संकलन, विश्लेषण और प्रसारित करने की प्रक्रिया है। यह जनसंख्या की विशेषताओं पर भी प्रकाश डालती है।
भारतीय जनगणना दुनिया में किये जाने वाले सबसे बड़े प्रशासनिक अभ्यासों में से एक है। दशकीय जनगणना का संचालन महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त का कार्यालय, गृह मंत्रालय द्वारा किया जाता है। ब्रिटिश हुकूमत ने पहली बार 1872 में जातिवार जनगणना कराया जो 1931 तक होती रही।
भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने जातिगत जनगणना Caste Census को संवैधानिक मुद्दा बताते हुए सामाजिक न्याय के लिए नीति बनाने हेतु आवश्यक बताते हुए कहा कि सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना संवैधानिक व लोकतांत्रिक है। स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1951 तक प्रत्येक जनगणना के लिये तदर्थ आधार पर जनगणना संगठन की स्थापना की गई थी। जनगणना का कार्य जनगणना अधिनियम 1948 के प्रावधानों के तहत किया जाता है।
इस अधिनियम को बनाने हेतु विधेयक भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा पेश किया गया था। भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना संघ का विषय है। यह संविधान की सातवीं अनुसूची के क्रमांक 69 में सूचीबद्ध है। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना, समानुपातिक हिस्सेदारी, लेटरल इंट्री व कॉलेजियम के मुद्दे पर उठ रही मांगों को दबाने के लिए धार्मिक मुद्दों को तूल दिया जा रहा है। संविधान के अनुच्छेद-15(4),16(4) व 16(4-ए) की मूल भावना के अनुसार जातिगत आधार पर जनगणना आवश्यक है। निषाद ने कहा कि सरकार भालू, शेर, मगरमच्छ, घड़ियाल, डॉल्फिन सहित विभिन्न जानवरों आदि की गणना करती है, तो पिछडों की गणना कराने से पीछे क्यों हट जाती है? जानवरों व किन्नरों की गणना कराई जाती है तो ओबीसी की क्यों नहीं?