यूपी80 न्यूज, मऊ/गोरखपुर
पिछले कुछ सालों में देश में राजनीति का स्वरूप तेजी से बदल है। राजनीति में विरोध के स्वर को पुलिस की लाठियों के जरिए दबाने की कोशिश हो रही है। वर्तमान में तो सोशल मीडिया पर विरोधी विचार भी आपको हवालात तक पहुंचा दे रहा है। ऐसे दौर में आज के राजनीतिज्ञों को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू Jawahar Lal Nehru से जरूर नसीहत लेने की जरूरत है। लोकतंत्र में विरोध का भी सम्मान होना चाहिए।
बात 1962 के चुनाव के दौर की है। उस दौरान मऊ के एक छात्र नेता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू गोरखपुर विश्वविद्यालय में काला झंडा दिखा दिया था। बावजूद इसके पं. जवाहर लाल नेहरू ने नाराज होने की बजाय संयम का परिचय दिया और उस छात्र नेता को मंच पर बुला कर माइक के जरिए भाषण कराया।
गोरखपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे राधेश्याम सिंह के अनुसार 1962 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू गोरखपुर आए थे। गोरखपुर में बड़ा खाली मैदान विश्वविद्यालय परिसर में नेहरू जी के संबोधन के लिए पंत भवन के पास ही चबूतरे का निर्माण कराया गया। मऊ निवासी कलपनाथ राय Kalpanath Rai निडर छात्र नेता थे। उन्होंने छात्रों की मांगों को लेकर पं.नेहरू को काला झंडा दिखा दिया।
काला झंडा दिखाने के बाद पंत भवन के पोर्टिको में पुलिसकर्मियों ने कल्पनाथ राय को पीटना शुरू कर दिया। जब हंगामे की जानकारी नेहरू तक भी पहुंची तो उन्होंने मामले को शांत कराते हुए कल्पनाथ राय को अपने पास बुलाया और विरोध की वजह पूछी। इसके बाद उन्होंने कल्पनाथ राय को मंच देकर माइक पर अपनी बात कहने की इजाजत दे दी।
तत्पश्चात कल्पनाथ राय ने नेहरूजी के सामने अंग्रेजी में ओजस्वी भाषण दिया। उनके भाषण से नेहरू जी काफी प्रभावित हुए और छात्र नेता की मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया। इस घटना के कुछ समय बाद कल्पनाथ राय कांग्रेस में शामिल हुए और फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बने। कल्पनाथ राय द्वारा कराए गए विकास कार्यों की वजह से ही आज भी उन्हें पूर्वांचलवासी ‘विकास पुरुष’ के तौर पर याद करते हैं।