बलिराम सिंह, घोसी/लखनऊ
घोसी Ghosi लोकसभा सीट से भाजपा की सहयोगी पार्टी सुभासपा प्रत्याशी डॉ.अरविंद राजभर Dr Arvin Rajbhar को लेकर तीन वरिष्ठ नेताओं की प्रतिष्ठा दाव पर लगी थी। लेकिन चुनाव में करारी शिकस्त के साथ ही इन नेताओं की प्रतिष्ठा भी धूमिल हो गई। इस हार से राजनीतिक गलियारों में कई सवाल खड़े हो गए हैं।
पूर्वांचल की चर्चित लोकसभा सीट घोसी में मऊ जनपद की चार विधानसभा सीटों के अलावा बलिया जनपद की एक सीट रसड़ा भी शामिल है। रसड़ा में खुद सुभासपा का मुख्यालय है। ऊत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री अरविंद शर्मा Minister AK Sharma का पैतृक क्षेत्र मऊ, दारा सिंह चौहान Dara Singh Chauhan का राजनैतिक कार्य क्षेत्र मऊ और ओमप्रकाश राजभर Omprakash Rajbhar की पार्टी का मुख्यालय घोसी संसदीय क्षेत्र में ही है। अरविंद राजभर की जीत के लिए उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के अलावा इन तीनों नेताओं ने खूब पसीना बहाया, लेकिन परिणाम आशा के विपरीत रहा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी नौकरशाह रहे एवं उत्तर प्रदेश सरकार में ऊर्जा एवं नगर विकास विभाग जैसे प्रमुख विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे अरविंद कुमार शर्मा का पैतृक गांव मऊ है। लोकसभा चुनाव से पहले अरविंद शर्मा का एक पांव लखनऊ रहता था तो दूसरा पांव आजमगढ़ मंडल की आजमगढ़, घोसी और बलिया में रहता था। उन्होंने घोसी संसदीय क्षेत्र में अनेक परियोजनाओं का शुभारंभ किया, बावजूद इसके अरविंद राजभर की हार से कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
घोसी से सांसद रहे वर्तमान कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान ने पिछले साल घोसी विधानसभा से उपचुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके चौहान मतदाताओं को साधने के लिए दारा सिंह चौहान को योगी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। लेकिन चुनाव परिणाम देख कर ऐसा लगता है कि दारा सिंह चौहान भी मतदाताओं को साधने में असफल रहे। घोसी से बसपा उम्मीदवार बाल कृष्ण चौहान को मिले 209404 कुछ इसी ओर संकेत कर रहा है।
योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री एवं सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर की पार्टी का मुख्यालय रसड़ा में है। बावजूद इसके उनके पुत्र की हार यह साबित कर रही है कि ओमप्रकाश राजभर अपने गढ़ को ही बचाने में विफल रहे। हालांकि ओमप्रकाश राजभर के इस तर्क में भी दम है कि चुनाव चिन्ह को लेकर उनके मूल मतदाताओं में दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो गई, जिसकी वजह से मूलनिवासी समाज पार्टी की उम्मीदवार लीलावती राजभर को 47527 वोट मिले। चूंकि सुभासपा प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह छड़ी है, जबकि लीलावती राजभर का चुनाव चिन्ह हॉकी था। आम तौर पर दोनों चिन्ह एक जैसे हैं। ओमप्रकाश राजभर ने कहा है कि अब चुनाव आयोग से दूसरा चुनाव चिन्ह जारी करने का आवेदन करेंगे।
पढ़ते रहिए www.up80.online पार्ट 1: आखिर बार-बार क्यों हार जा रहे हैं ओमप्रकाश राजभर के ‘लाल’?
घोसी संसदीय क्षेत्र की राजनीति को बेहद करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुरेश पटेल कहते हैं,
“भाजपा ने अपना गढ़ मजबूत करने के लिए ही दारा सिंह चौहान को पार्टी में शामिल किया था एवं ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से गठबंधन किया था, लेकिन इनका कोई वर्चस्व काम नहीं आया। समूचे पूर्वांचल में भाजपा को करारी हार मिली है। इन लोगों का अपने पीछे स्वयं की जातियों का कोई आधार नहीं रह पाया है। इनकी दल-बदलू नीति भी इसमें आड़े आ रही है। उधर, सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर का बड़बोलापन एवं पार्टी के दूसरे कार्यकर्ताओं को तवज्जो न देकर अपने ही बेटे को आगे बढ़ाना भी मतदाताओं की नाराजगी का कारण बनी है। इसी वजह से ऊर्जा एवं नगर विकास मंत्री एके शर्मा के विकास का जादू भी नहीं चल पाया।”