Pratapgarh प्रतापगढ़ के गोविंदपुर-परसठ Govindpur-Parsath की जातीय हिंसा ; पत्रकारों-पुलिस की संदिग्ध भूमिका
ब्रजेंद्र प्रताप सिंह (प्रतापगढ़ के गोविंदपुर से लौटकर)
22 मई 2020 को जिला प्रतापगढ़ Pratapgarh के थाना कोतवाली पट्टी के ग्राम गोविंदपुर, धूईं, परसद में जातीय हिंसा हुई। पिछड़ी जाति OBC के लोगों (पटेल) के कुछ घर जला दिए गए। कुर्मियों (पटेलों) के खेत में ऊँची जाति के सामंत किस्म के लोग जानवर छोड़ दे रहे थे। इसका दबा विरोध काफी दिनों से चल रहा था। 22 मई को एक-दो जानवरों को खेत के मालिक ने दौड़ा लिया। बस दबंग भड़क गए। पड़ोसी मजरों तक पटेलों को दौड़ाकर मारा। हमला बोल दिया। घर में घुसे। मारपीट, लूटपाट, छेड़छाड़ की। मवेशी जिंदा फूंक दिए। सबसे भीतर के कमरे में सोई महिला की छाती पर झपट्टा मारा। 3 माह का बच्चा माँ की छाती में चिपका था…दूध पीता हुआ अधसोया सा था। दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह माँ का आँचल में। उस दुधमुहे को दबंगों ने उठाकर फेंक दिया। वो कुएं की देहरी पर गिरा। महिला का ब्लाउज फाड़ दिया। वो बच्चे की तरफ भागी…उनमे से एक ने उसकी छाती ऐसी नोची की खून टपक पड़ा और जो जहां मिला उसे लाठी डंडों से पीटा गया। सिर फ़टे, इज्जत लुटी। एक युवक ने बचते बचाते वीडियो वायरल किया, पुलिस को फोन किया। पुलिस आई मगर यह तांडव न रुका। दरोगा – सिपाही की मौजूदगी में बर्बरता हुई। इसके बाद गांव में पटेल बिरादरी के नेताओं का जमघट लगा है। कुछ आंसू पोछने गए, कुछ शोहरत बटोरने। अब वहां पुलिस का पहरा है।
मुख्य धारा की मीडिया गई नहीं, इसलिए जाना जरूरी था…
29 मई 2020 की सुबह आदतन किसान नेता चौधरी चरण सिंह Ch Charan Singh को श्रद्धाजंलि दी। दोपहर में कुर्मी क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारी युवा इंजीनियर सुनील पटेल के साथ हम निकले। पड़ोसी हैं इसलिए हक के साथ उनकी कार में लिफ्ट मांगी। उनके दूसरे साथी डॉ हरिश्चंद्र पटेल भी वहां भोजन सामग्री, दवाएं और आर्थिक मदद के लिए ड्राफ्ट लेकर आ गए थे।
पढ़ते रहिए www.up80.online आपबीती: दबंगों ने छेड़छाड़-मारपीट की, घसीटते हुए बाहर लाएं, पुलिस मौन रही
दरोगा की दबंगई, पेशबंदी देखिए:
इस गांव की सीमा पर तैनात पुलिस इंस्पेक्टर सुशील कुमार सिंह और उनके साथ मौजूद सब इंस्पेक्टर बच्चन राम और अन्य सिपाहियों ने गांव के अंदर घटना स्थल तक जाने से रोक दिया। इंस्पेक्टर ने कहा कि कोई गाँव के अंदर नहीं जा सकता। मैंने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार से मान्यताप्राप्त पत्रकार हूँ। अगर जिला मजिस्ट्रेट का ऐसा कोई आदेश हो कि पत्रकार घटना स्थल पर नहीं जाएगा तो दिखाया जाए। इंस्पेक्टर एक घण्टे तक धमकाते रहे, जलील करने की कोशिश की, मुकदमे की धमकी देते हुए वीडियो ग्राफी कराते रहे और कहा कि जो मैं कह रहा हूँ, होगा वही। तब तक गांव की पीड़ित महिलाएं भी पुलिस बैरिकेडिंग तक आ गईं। डॉ पटेल ने मेरे हाथों में चेक और ड्राफ्ट पकड़ाया। मैंने उन्हें आर्थिक मदद का ड्राफ्ट और कुछ भोजन सामग्री वहीं पर दी। मैंने फिर निवेदन किया कि मुझे घटना स्थल तक जाने दें। इंस्पेक्टर ने मेरे कान के पास आकर कहा कि क्यों जेल जाना चाहते हो, ऊपर से आदेश है। अंदर गए तो मुकदमें के लिए तैयार रहना। मैंने कहा कि पहचान पत्र की फोटो ले लीजिए। लाठी मत तानिये और विधि सम्मत जो भी करना हो वह कीजिये। मैं घटना स्थल तक जाऊंगा जरूर। मीडिया पर बन्दिश का कोई आदेश दिखा देंगे तो यहीं से लौट जाऊंगा।
इस पर इन्स्पेक्टर बोले, जाओ करो नेतागीरी…धमकी देकर बेरिकेडिंग खोल दी तो मैं पैदल ही घटना स्थल के लिए चल दिया।
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पुलिस की मिलभगत:
इस आगजनी/ बर्बरता की रिपोर्ट स्थानीय पुलिस ने 8 दिनों तक दर्ज नहीं की। जबकि हमलावर पक्ष की रिपोर्ट भी लिखी और पीड़ितों में से कई को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। तथ्यों की पड़ताल में यह सामने आया कि कुछ महिलाएं और लड़कियां कई दिनों हवालात में रखी गईं। बाद में पीड़ित परिवारों की जाति के कुछ सांसद – विधायक और दूसरे लोग गांव गए तो पुलिस ने हवालात में अवैध रूप से बंद की गईं लड़कियों को छोड़ दिया। इसके बाद भी गोविंदपुर के पीड़ित पक्ष की रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। गोविंदपुर गांव की सीमाओं पर पुलिस का पहरा लगा दिया गया। जो भी लोग पीड़ितों से सहानुभूति जताने गए, उनके खिलाफ अलग अलग धाराओं में मुकदमे दर्ज कर दिए गए। मुख्य धारा की मीडिया से जुड़े पत्रकार एक हफ्ते में इन पीड़तों के पास नही गए।
मंत्री पर भी संदेह, डीएम – एसपी झांकने नहीं गए:
पीड़ितों ने इस जातीय बर्बरता के पीछे उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री पर मिलीभगत के आरोप लगाए हैं। जिले के एसपी और डीएम का पीड़ितों के पक्ष में कोई वैधानिक कदम न उठाया जाना इस आरोप को और बल दे रहे हैं। मंत्री के खिलाफ लगातार सोशल मीडिया पर आरोप लग रहे हैं। पुलिस ने जातीय टिप्पणियों पर कुछ लोगों के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज की हैं। पीड़ित पटेल जाति के लोग और हमलावर जाति के लोगों की टिप्पणियों, बयानों से समाज में जातीय वैमनस्यता फैल रही है। यह दूसरे गांवों से होते हुए अन्य जिलों तक भी पहुँच रही है। इस दौरान भी जातीय गुस्सा उबाल मारने के खतरे बढ़ गए हैं।
जांच के नाम पर सिर्फ खेल, एफआईआर के नाम पर बरगला रहे:
जातीय हिंसा की इस भयानक घटना के 8 दिनों बाद भी 30 मई तक गोविंदपुर के पीड़ितों की रिपोर्ट नहीं लिखी गई। हकीकत ये है कि घटनास्थल तक न जिले के पुलिस कप्तान गए न ही जिलाधिकारी।
कुएं की सजावट देखकर गांव के लोगों की फितरत दिखेगी:
गाँव में भारी दहशत है।बर्बरता की तस्वीरें, लोगों में खौफ देखा जा सकता है। बताऊं कि जिस कुएं की तरफ तीन माह के बच्चे को दबंगों ने फेंका था। उस कुएं में वहीं की लड़कियों/ महिलाओं में रंग भरे हैं। लाल, गुलाबी, पीले… तमन्नाओं के रंग से कुएं को सजा रखा है। उसी से पटेलों कि बस्ती पानी पीती है। दबंगों ने घरों का सामान, साइकिल और आटा, बर्तन सब इसी कुएं में फेंके हैं। मेरी तस्वीर में यह सच आपको दिखेगा।
हैंडपम्प तोड़े, खेत सूखे:
दबंगों ने इस बस्ती के हैंडपम्प तोड़ दिए। उखाड़ नहीं सके तो पाइप काट दिए। सहन में लगे कटहल के पेड़ पर सामन्तों की क्रूरता दिखी। एक युवती के वक्ष स्थल पर दराती लेकर दबंग ने हमला बोलना चाहा तो बुढ़िया मां बीच में आ गई। उसे जमकर पीटा। डराया। कटहल के फलों को वक्ष की तरह काटने हुए इस दबंग ने कहा…ज्यादा बोलेगी तो पूरे मोहल्ले की लड़कियों का यही ”खतना” कर दूँगा। खता सिर्फ इन औरतों की इतनी है कि ये गरीब, पिछड़ी जाति की हैं और खेतों में जानवर जाने से मना कर रही थीं।
हमारी तरह घर बनाओगी मादरचो….
17 साल की लड़की को सिपाही के हाथ में रखा बांस का बेंत दिखाते हुए एक एक दबंग ने धमकाते हुए कहा था कि यही लट्ठ ऐसी जगह डाल दूंगा कि बच्चा पैदा करने लायक नहीं बचोगी मादरचो… यह हल्ला मचाते हुए दबंगों ने सामने के घर में लगे नए बिजली के बॉक्स, टाइल्स, टीवी, पंखे इसलिए तोड़ और नोच दिए कि मड़ई की जगह पक्के घर में सुहागरात मनाओगे… गांव की औरतों ने मुझे जो बताया वह सब मैं लिखकर मर्यादा से बाहर नहीं आना चाहता।
आंख बेशर्म होती तो उसके छाती के घाव दिखाता आपको:
एक महिला रोती हुई पांव पर गिर पड़ी। साहब बलात्कार से ज्यादा हुआ है हमारे साथ…बस ”वही” रहा गया था करने को। तभी बगल में खड़ी बूढ़ी औरत ने उसका आँचल हटाने को कहा…बोली दिखा इनको पाव भर हल्दी लेपनी पड़ी है उसकी छाती पर… नाखून से नोचने का घाव हैं… आंख लजा गई, भर आईं।
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देखिए जाकर वहाँ, खेत सूख गए हैं, आंखे गीली हैं…
पीड़ित किसानों के सब्जी के खेत इसलिए सूख रहे हैं कि गांव के मर्द पुलिस के खौफ से भागे हैं और पम्पिंग सेट चलाने के लिए डीजल लाने वाला कोई नहीं। एक युवती सायकिल से डीजल लाई तो उसे एक सिपाही ने ही फेंक दिया। रोते हुए लोगों की आंख का पानी देखने के लिए वहां कोई तो जाए।
इस जातीय हिंसा के समाचार भी देश की कथित मुख्य धारा की मीडिया ने सिर्फ पुलिस की एफआईआर के आधार पर ही लिखे। वह भी जिले स्तर पर ही कवर किए गए। यह भी पीड़ितों के साथ अन्याय की तरह है।
जीरो FIR के आदेश हैं, 8 दिन में रिपोर्ट नहीं:
सुप्रीम कोर्ट कई बार आदेश दे चुका है कि पीड़ितों की प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) हर हाल में दर्ज की जाए। जीरो एफआईआर का भी प्रावधान है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ खुद भी कह चुके हैं कि एफआईआर दर्ज हो। डीजीपी ने थाने में रिपोर्ट दर्ज न होने की बढ़ती शिकायतों के आधार पर पुलिस कप्तानों के दफ्तर में ही एक विशेष सेल बनाकर रिपोर्ट दर्ज किए जाने की व्यवस्था की है। इसके बाद भी गोविन्दपुर गाँव के पीड़ितों की रिपोर्ट न लिखना पुलिस की भूमिका को संदेह में लाती है। हमलावर पक्ष की तरफ से इसी पुलिस ने 11 नामजद और 50 अन्य लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करके कई लोगों को जेल भेज दिया है। इस पूरे मामले में पुलिस का ख़ुफ़िया विंग भी खामोश है। थाने मे बनी शांति समिति की बैठक तक नहीं बुलाई गई है। बर्बर जातीय हिंसा के घटना स्थल तक न डीएम गए न एसपी। मीडिया पर कोतवाल सुशील कुमार सिंह ने पाबन्दी लगा रखी है।
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कौन लगा रहा मुख्यमंत्री की साख पर बट्टा:
प्रतापगढ़ में हुई जातीय हिंसा ने कुर्मी समाज समाज सहित पिछड़ी जाति के लोगों के अंदर मौजूदा सत्ता के शीर्ष नेतॄत्व के खिलाफ नाराजगी बढ़ाने का काम किया है। मुख्यमंत्री तक न पहुँच पाना सरकार के तंत्र पर भी सवाल उठाती है और पहुचाने वालों की नीयत पर भी।
मुझे कई पढ़े लिखे नौजवान पट्टी में एक चाय की दुकान पर मिले। दो जोड़ा आलू की टिकिया भी उनके संग खाई। इनका कामन सेंस गजब का था। बोले, प्रतापगढ़ की जातीय घटना पर अखबार के मसखरे भी खामोश हैं, यानी कहीं कुछ बड़ा हो रहा है जो मुख्यमंत्री तक नहीं पहुँचने दिया जा रहा है। गृह सचिव अवनीश अवस्थी की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा भी कि अरे पत्रकार गवर्न करने वाली बॉडी के नेता भी वही और पुलिस की नकेल भी।
जनता का मांग पत्र भी खबर बन सकता है:
पीड़ित पक्ष के कुछ समझदार युवाओं ने चलते चलाते वाट्सएप पर एक मांग पत्र भी भेजा। इसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
इनका कहना है कि प्रतापगढ़ के डीएम और एसएसपी और इंसपेक्टर सुशील कुमार सिंह पर सख़्त करवाई की जाए।
गोविंदपुर गाँव में हुई इस बर्बरता की पूरी जांच सीबीआई से हो।
मंत्री और अधिकारियों की भूमिका वास्तविक रूप में सामने आये। पीड़ितों के परिजनों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कराने के साथ ही मुआवजा दिया जाए।
दूसरी जाति के प्रतिनिधि मंडल भी जाएंगे
इस गाँव से लौटते वक्त मैं एक चौपाल नुमा बैठक के सामने रुका। रानीगंज के पास। घटना का जिक्र किया। पहले सब संकोच में थे, बताया पत्रकार हूँ। तो बोले कि एक जाति पर हमला हुआ है तो दूसरी जातियों के प्रतिनिधि मंडल जाकर भी तो जायजा लें। हमला तो हमला है, आज पटेलों पर हुआ, कल तेलियों पर होगा या परसों काछियों पर…कानून की नजर में तो सब बराबर हैं।