दुर्गेश कुमार, पटना
ईमानदारी से ज्यादा जरुरी नैतिकता है। ईमानदार होना अर्थात दुर्लभ गुण वाले व्यक्ति की खोज है। सिर्फ़ पैसे के मामले में ईमानदारी आपको ईमानदार होने का गुण नहीं है। आपको रिश्ते के प्रति भी ईमानदार होना चाहिए। यह रिश्ता पुत्र का, भाई का, मित्र का, प्रेमिका का, सेवक का, नेता का, कार्यकर्त्ता का, नागरिक का हो सकता है। आपको अपने प्रत्येक दायित्व का निर्वहन ईमानदारी से करना होता है। ऐसे कई मानकों पर आप खरे उतरते हैं तो जीवन सफल हो जाता है।
कैकयी पुत्र भरत के प्रति ईमानदार थी लेकिन पति दशरथ के प्रति ऐसा करने में असफल रही थी। भरत, लक्ष्मण राम के प्रति ईमानदार थे, उर्मिला और सीता अपने प्रियतम लक्ष्मण और राम के प्रति ईमानदार थी। हनुमान अपने स्वामी राम के प्रति भक्ति के ईमानदार उदाहरण है। तब इन्हें दुनिया आदर्श के रुप में याद करती है।
रावण अपने भाई विभीषण के प्रति ईमानदार नहीं था। बाली सुग्रीव के प्रति बेईमान था। मंथरा अपने स्वामी के प्रति ईमानदार नहीं थी। इन सबका हश्र क्या हुआ, कहने की ज़रुरत नहीं है।
कोई भी रिश्ता विश्वास की बुनियाद पर टिका होता है। विश्वास टूटा तो रिश्ता टूट जाता था। विश्वास की हत्या जीव हत्या की तरह ही पीड़ादायक होती है। जिनका आप पर विश्वास हो उनकी पीड़ा को समझना चाहिए।
अमित शाह की आप लाख आलोचना कीजिए लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रति अमित शाह की ईमानदारी, गांधी परिवार के प्रति अहमद पटेल की ईमानदारी का अन्यत्र उदाहरण नहीं मिलता है।
ठीक वैसे ही जनता के प्रति नीतीश कुमार की ईमानदारी का उदाहरण कोई दूसरे मुख्यमंत्री में नहीं दिखता है। न क्रोनी कैपेटलिज्म न व्यक्तिगत भ्रष्ट्राचार न किसी को दुर्भावना से तंग करना यह सब नैतिकता भरी ईमानदारी है। नीतीश कुमार सत्य हरिश्चंद्र तो नहीं है किंतु नैतिकता की कसौटी पर ईमानदारी की बात की जाए तो नीतीश अपने समय के सूर्य हैं।
नीतीश कुमार की पार्टी भी चुनाव लड़ती है। धन भी खर्च करती है। लोहिया के सिद्धांतों के अनुसार ही जेडीयू धन की जरूरत समझती है। क्षेत्रीय दलों में जेडीयू एकमात्र ऐसी पार्टी है जहां टिकट नहीं बेचा जाता है। नीतीश लोहिया के सच्चे वारिस हैं। इसलिए दिल्ली को चुनौती देने के लिए उनमें हिम्मत है।
राजनीतिक कार्यकर्त्ता को भी यह ध्यान रखना चाहिए। धन लोलुपता ठीक नहीं है, धन ज़रुरत भर ही चाहिए। राजनीति में रिश्ते के प्रति कामदार, ईमानदार और वफादार होना चाहिए। इन सबके बिना सफलता मुश्किल है। किसी की तत्काल सफलता आदर्श उदाहरण नहीं हो सकता। बरसात में उगे जलीय पौधे तुरंत ही नष्ट हो जाते हैं। उनकी जीवटता को दुनिया सलाम करती है जो बंजर जमीन पर धूप में भी छांव देते हैं।
विश्वास की हत्या जीव हत्या है।