यूपी80 न्यूज, लखनऊ
अंग्रेजी हुकूमत, जमींदार व ठेकेदारों के चुंगल से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए बिरसा मुंडा Birsa Munda ने क्रांति का आह्वान किया था। 15 नवंबर 1875 में झारखंड के उलिहातू Ulihatu गांव में जन्मे बिरसा मुंडा एक क्रांतिकारी के अलावा सामाजिक योद्धा भी थे।
शस्त्र उठाने से पहले बिरसा मुंडा Birsa Munda ने एक सामाजिक योद्धा Social Warrior के तौर पर झारखंड के आदिवासी समाज Tribal Society को सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति दिलाने का अभियान चलाया। उन्होंने जीवों की बलि, मंदिरा सेवन व मांस के इस्तेमाल पर करारा हमला किया। बिरसा मुंडा के इस सामाजिक लड़ाई की वजह से झारखंड का आदिवासी समाज उन्हें भगवान का दर्जा दिया।
झारखंड के चालकद शहर में 1897 में सूखा, 1898 में हैजा और शीतला महामारी फैल गई और चारो ओर हहाकार मच गया। 1899 में अकाल पड़ गया। दु:ख की इस घड़ी में अंग्रेजी सरकार व जमींदारों ने कुछ नहीं किया, लेकिन बिरसा मुंडा Birsa Munda और उनके सहयोगियों ने जनता की खूब सेवा की।
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अलग राज्य की स्थापना जरूरी:
इस दौरान बिरसा मुंडा समझ गए कि आदिवासी समाज को शोषण से मुक्त करने के लिए अलग राज्य की स्थापना जरूरी है। लेकिन उनकी इस राह में सरकार, जमींदार व ठेकेदार मुख्य तौर पर अड़चन हैं। उन्होंने पहाड़ियों के बीच डोमबारी को अपना मुख्यालय बनाया और एक प्रशिक्षित दल का गठन किया। 24 दिसंबर 1899 को उन्होंने खुंटी थाने पर सशस्त्र हमला किया। 27 दिसंबर को तीन लोग, 6 जनवरी 1900 को इंटका डीह में दो पुलिस वाले, 7 जनवरी को खुशी में एक पुलिस वाले को मार दिया गया।
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इन हत्याओं से सरकार की नींद खुली और 8 जनवरी 1900 को छोटा नागपुर से सेना की दो कंपिनयां खूंटी भेजी गईं। अंग्रेजी सेना के गोला-बारुद और हथियारों के आगे आदिवासी समाज केवल धनुष-वाण से लड़ता रहा। इस लड़ाई में काफी तादाद में आदिवासी शहीद हो गए। अंग्रेजी हुकूमत ने उनके पकड़ने पर 500 रुपए का ईनाम रखा। 3 मार्च 1900 को बिरसा मुंडा पकड़े गए। उन्हें रांची लाया गया। उन पर मुकदमा चला। हैजा फैलने की वजह से 25 वर्ष की उम्र में ही 9 जून 1900 में उनकी मृत्यु हो गई।
क्या बिरसा मुंडा को जहर दिया गया:
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बिरसा मुंडा को जहर दिया गया था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सर सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने असेंबली में यह मामला उठाया था।
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