बलिराम सिंह
देश की सर्वाधिक ताकतवर प्रधानमंत्रियों में से एक इंदिरा गांधी Indira Gandhi ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल Emergency लागू किया। आपातकाल के दौरान आम नागरिकों के अधिकारों का हनन किया गया। मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया। विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी क्यों लगाई और उन्हें यह सलाह किसने दी व इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार द्वारा गठित शाह कमीशन के सामने इंदिरा गांधी के करीबी व तत्कालीन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने क्या कहा, इसके बारे में दिवंगत राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी President Pranab Mukharji ने अपनी पुस्तक ‘इंदिरा गांधी का प्रभावशाली दशक’ में साफ तौर पर उल्लेख किया है। आप भी पढ़िए,,
शाह कमीशन Shah Commission के सम्मुख सिद्धार्थ शंकर रे Siddhartha Shankar Ray के साक्ष्य के अनुसार (जिसे जनता सरकार द्वारा आपातकाल की ‘अतिरेको’ की छानबीन के लिए स्थापित किया गया), उन्हें 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी के निवास स्थान पर बुलवाया गया। वे 1, सफदरजंग रोड पहुंचे और इंदिरा गांधी से भेंट की, जिन्होंने कहा कि उन्हें कुछ ऐसी रिपोर्ट मिली है, जो यह सूचित करती हैं कि देश किसी संकट की ओर जा रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि सारी अनुशासनहीनता व कानून की अवमानना को देखते हुए लग रहा है कि कुछ सशक्त सुधारात्मक कदम उठाने ही होंगे। सिद्धार्थ बाबू ने शाह कमीशन को बताया कि इंदिरा गांधी, पहले भी दो-तीन अवसरों पर, उनसे कह चुकी थीं कि भारत को ‘शॉक ट्रीटमेंट Shock treatment’ की आवश्यकता थी और किसी अप्रत्याशित व कठोर शक्ति का सामने आना अनिवार्य था।
उन्होंने शाह कमीशन को याद करते हुए बताया (12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की घोषणा से पूर्व) कि ऐसे ही एक अवसर पर उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा था कि वे पहले से तैयार नियमों व कानूनों की मदद ले सकते थें, उन्होंने श्रीमती गांधी को यह भी बताया कि वे किस तरह कानून की हदों में ही रहते हुए पश्चिम बंगाल की न्याय व कानून संबंधी समस्याओं को हल करने में सफल रहे थे। सिद्धार्थ बाबू के अनुसार, इसके बाद इंदिरा गांधी ने उस शाम होने वाली जयप्रकाश नारायण Jai Prakash Narayan की सार्वजनिक सभा की इंटेलीजेंस रिपोर्ट पढ़कर सुनाई।
रिपोर्ट में लिखा था कि
जयप्रकाश नारायण एक अखिल भारतीय आंदोलन का आरंभ करने जा रहे थे, जिसमें समानांतर प्रशासकीय नेटवर्क तथा अदालतों की स्थापना की जानी थी, सशस्त्र बलों से जुड़े लोगों व पुलिस से आग्रह किया गया था कि उन्हें जो भी आदेश मिले, उन्हें गैरकानूनी मानते हुए, उनकी अवहेलना कर दें। सिद्धार्थ बाबू ने कहा कि इंदिरा गांधी को पूरा यकीन था कि देश कोलाहल व निरंकुशलता की ओर जा रहा था। तब उन्होंने इंदिरा गांधी से विचार करने के लिए कुछ समय मांगा और उसी शाम पांच बजे लौटकर उन्हें कहा कि वे यह विचार कर सकती थीं।
इंदिरा गांधी के प्रभावशाली सलाहकारों में से एक थे सिद्धार्थ शंकर रे:
1969 में कांग्रेस में आई दरार के समय से ही सिद्धार्थ बाबू, इंदिरा गांधी के निकटतम लोगों में से रहे थे और एक समय में तो वे उनके सर्वाधिक प्रभावशाली परामर्शदाताओं में से एक माने जाते थे। इंदिरा गांधी विविध विषयों पर उनसे परामर्श लिया करतीं। 1970 के दशक से 1975 के अंत तक उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की नीतियों को प्रभावित करते आए थे।
बाद में पलटी मार गए सिद्धार्थ शंकर रे:
प्रणव मुखर्जी अपनी पुस्तक में लिखते हैं,
एक रोचक, किंतु आश्चर्यजनक न लगने वाली बात यह भी है कि जब एक बार आपातकाल की घोषणा हो गई, तो बहुत से लोग आगे आकर दावा करने लगे कि आपातकाल की घोषणा का विचार उन्होंने ही दिया था और तब भी बहुत आश्चर्य नहीं हुआ, जब शाह कमीशन बैठा तो यही लोग एकदम पलटा खा गए। उन्होंने न केवल इस प्रक्रिया में शामिल होने से इंकार किया, बल्कि अपने-आप को निर्दोष साबित करते हुए सारा दोष इंदिरा गांधी के माथे मढ़ दिया। सिद्धार्थ बाबू भी कोई अपवाद नहीं थे।
शाह कमीशन के सामने साक्ष्य पुस्तक ‘इंदिरा गांधी का प्रभावशाली दशक’ से)