महाराजा सुहेलदेव ने 11वीं शताब्दी में विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी की सेना को हराया था
यूपी80 न्यूज, बहराइच
11वीं शताब्दी के प्रतापी शासक एवं पराक्रमी योद्धा महाराजा सुहेलदेव की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहराइच में 4.20 मीटर ऊंचा महाराजा सुहेलदेव के भव्य स्मारक का वर्चुअल शिलान्यास किया। इस स्मारक के अलावा ऐतिहासिक चित्तौरा झील का विकास किया जाएगा। झील के तट पर घाट और छतरी का निर्माण किया जाएगा। इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि ये आधुनिक और भव्य स्मारक और ऐतिहासिक चित्तौरा झील का विकास आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा। इस अवसर पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उपस्थित थें।
पीएम मोदी ने कहा कि अपने पराक्रम से मातृभूमि का मान बढ़ाने वाले राष्ट्रनायक महाराजा सुहेलदेव की जन्मभूमि और ऋषियों की तपोभूमि बहाराइच की इस पुण्यभूमि को मैं नमन करता हूं। इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि महाराजा सुहेलदेव को इतिहास में वो स्थान नहीं मिला, जिसके वो हकदार थे। भारत का इतिहास वो नहीं है जो भारत को गुलाम बनाने वाले और गुलामी मानसिकता रखने वाले लोगों ने लिखा है।
इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि एक हजार साल के बाद यह पहला अवसर है जब कोई सरकार महाराजा सुहेलदेव की जयंती इस तरह मना रही है। उन्होंने घोषणा की कि देश में जहां भी वीरों की स्मृति होगी, भाजपा सरकार उन स्थलों का विकास करेगी।
बहराइच और श्रावस्ती को बड़ी सौगातें:
महाराजा सुहेलदेव की अश्वरोही मुद्रा में कांस्य प्रतिमा की स्थापना, विशिष्ट अतिथि गृह, पर्यटक आवास गृह एवं कैफेटेरिया का निर्माण, चित्तौरा झील के तट पर घाट एवं छतरी का निर्माण, सामाजिक महोत्सव के लिए हाल/लान का निर्माण और बच्चों के लिए पार्क एवं जिम का निर्माण की घोषणा की गई।
बता दें कि इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में महाराजा सुहेलदेव के सम्मान में डाक टिकट जारी करने के साथ ही ट्रेन भी चलाई जा चुकी है।
बहराइच का पौराणिक महत्व:
बहराइच महाराजा सुहेलदेव की कर्मस्थली रही है। इसके अलावा पौराणिक धर्म ग्रंथों के मुताबिक बहराइच को ब्रह्म ने बसाया था। यहां सप्त ऋषि मंडल का सम्मेलन भी कराया गया था। चित्तौरा झील के तट पर त्रेता युग के मिथिला नरेश महाराजा जनक के गुरु अष्टावक्र ने वहां तपस्या की थी।
महमूद गजनवी के भांजे को हराया था:
11वीं शताब्दी में महान संत बालार्क ऋषि के शिष्य एवं श्रावस्ती के राजा महाराजा सुहेलदेव ने थारु बंजारा सहित अनेक जाति समूहों और राजाओं का समूह बनाकर कौडियाला नदी के तट पर चित्तौरा के युद्ध में 15 जून 1033 को विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार मसूद गाजी का उसकी सेना सहित संहार किया। स्थानीय लोकगीतों में महाराजा सुहेलदेव के शौर्य और पराक्रम की वीरगाथा लोगों को रोमांचित करती है।
बहराइच निवासी दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार एवं डॉ.राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के अकादमिक सलाहकार रह चुके अरुण कुमार पांडेय कहते हैं कि महाराजा सुहेलदेव जनपद बहराइच सहित पूरे तराई क्षेत्र की प्रेरणा हैं। उन्हें गुरु निष्ठा, धर्म निष्ठा, राष्ट्र निष्ठा, शौर्य एवं बलिदान का प्रतिरूप माना जाता है। लोक कथाओं के माध्यम से उनकी पुण्यकीर्ति जनमानस में व्याप्त है। स्मारक की घोषणा से लोगों का आत्मबल बढ़ा है। पर्यटन केंद्र विकसित होने से बहराइच का सौंदर्य व कीर्ति राष्ट्रीय स्तर पर फैलेगी।