राजीव ओझा, वाराणसी
काव्या पब्लिकेशन्स अवधपुरी भोपाल से प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार राजेश पटेल Rajesh Patel की पुस्तक एक निहत्थी क्रांति ” तू जमाना बदल Tu Jamana Badal “ पाठकों को चुनार विधान सभा क्षेत्र से विधायक रहे यदुनाथ सिंह Yadunath Singh के व्यक्तित्व, कृतित्व से परिचित कराती है।
किसी नामचीन शख्सियत के जीवनवृत्त को लिपिबद्ध करना दुधारी तलवार पर चलने जैसा जटिल काम होता है। इसमे लेखक को पक्षपाती होने से भी बचना होता है और मिथ्या यशोगान से भी बचना होता है।
इस पुस्तक का अध्ययन करने के बाद मैं कह सकता हूं कि लेखक ने अपनी कलम के कौशल से खुद को उपरोक्त दोनों स्थितियों से बचाने में सफल सिद्ध किया है। जैसे मूर्ति शिल्पी अनगढ़ पत्थर को तराश कर देवी देवता की मूर्ति बनाता है, वैसे ही लेखक ने यदुनाथ सिंह के अनगढ़ किरदार Yadunath Singh को अपने शब्द शिल्प से तराश कर उनके व्यक्तित्व, कृतित्व का खुबसूरत शब्द चित्र पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है।
लेखक ने यदुनाथ सिंह Yadunath Singh के छात्र जीवन से विधायी जीवन तक की यात्रा को सरल ,सुग्राह्य , बोधगम्य भाषा में लिपिबद्ध किया है। यह पुस्तक पाठकों को आरंभ से अंत तक बांधे रखती है। पुस्तक में लेखक ने उनके साथ मर मिटने को कृत संकल्पित संघर्ष के साथियों, सहपाठियों, उनके परिवार के सदस्यों से संवाद कर, उनकी डायरी, परिवार और मित्रों को जेल से भेजे गये पत्रों से हासिल जानकारी को सिलसिलेवार तरीके से लिपिबद्ध किया है।
लेखक ने यदुनाथ सिंह के व्यक्तित्व, कृतित्व के उस पक्ष को रेखांकित किया है जिससे लोग अब तक अनभिज्ञ थे। यदुनाथ सिंह की आम छवि जनसामान्य में एक हंथछूट , स्पष्टवादी , जुझारू नेता की रही है। लेखक ने इस पुस्तक में उनके राजनीतिक दृष्टिकोण, जनसरोकारों के प्रति उनकी कार्य शैली, उनके फक्कड़ स्वभाव, जुझारू तेवर, उनके बेदाग चरित्र को रेखांकित किया है।
लेखक ने यदुनाथ सिंह द्वारा आपातकाल और सामान्य काल में जनता जनार्दन के हक हुकूक के लिये सत्ता से टकराने के सबब जेल यात्रा के दौरान लिखे उनके पत्रों से जिन अंशों को इस पुस्तक में शामिल किया है वह लेखकीय कौशल का आईना है। लेखक द्वारा चयनित पत्रांश यदुनाथ सिंह के राजनैतिक, सामाजिक, पारिवारिक चिंतन से , प्रकारांतर से उनके वैदुष्य से पाठकों को परिचित कराते हैं। कुछ का जिक्र करना प्रासंगिक है। वाराणसी जिला जेल से 24 सितंबर 1970 को लिखे पत्र में यदुनाथ सिंह लिखते हैं ” देश की बोलचाल की भाषा हिन्दी राष्ट्रीय भाषा हो। इंसानियत के नाम पर कानून बने। हिन्दू-मुसलमान में, छोटी जाति एवं बड़ी जाति में फर्क न हो। जमीन, रेलगाड़ी, जहाज, डाक-तार, बैंक, फैक्ट्री ऐसी आवश्यक सेवाएं प्राइवेट न हों। इसके लिये मैं लड़ता रहूंगा।”
31जनवरी1971 को जेल से लिखे एक अन्य पत्र मे वह लिखते हैं-
” जनवादी बनिए, किसी पार्टी से संबन्ध न रखो क्योंकि चुनाववादी सभी नेता स्वार्थी होते जा रहे हैं। समय है देश को बदलने का, भ्रष्टाचार को कुचलने का और ईमानदारी पर चलने का।”
अपने पिता को जिला जेल चौकाघाट से लिखे एक पत्र में वह लिखते हैं ।
” पूज्य पिताजी, आप लोगों को भी मैं जनता की इकाई के रूप में समझता हूं। जनता की प्रत्येक इकाई की तरक्क़ी उसी समय हो सकती है जब देश में 18 वर्ष तक के हर बच्चों की गारंटी ली जाए। कोई बेरोजगार न रहे।”
पुस्तक यदुनाथ सिंह के अनगढ़ किरदार को तराश कर शिवत्व प्रदान करते हुए उनके जिस किरदार को जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत करती है वह एक आदर्श जननायक का किरदार है , जो वह थे भी।
बीबीसी के उत्तर प्रदेश हेड रहे श्री रामदत्त त्रिपाठी जी ने इस किताब की भूमिका लिखी है। श्री त्रिपाठी पत्रकारिता के क्षेत्र में आने के पहले समाजवादी आंदोलनों से जुड़े थे। आपातकाल के दौरान यदुनाथ सिंह जी व श्री त्रिपाठी एक ही जेल में थे। प्रख्यात पत्रकार श्री प्रभात रंजन दीन जी ने लेखक राजेश पटेल के बारे में अपने अनुभवों को लिखा है। जेपी विश्वविद्यालय सारण छपरा के पूर्व कुलपति प्रो. हरिकेश सिंह जी ने लिखा है ‘राजनीति के अघोरी संत थे यदुनाथ सिंह’। जब पूरी किताब पढ़ी तो इनका कथन सत्य साबित हुआ।
(यह पुस्तक और इसका किंडले संस्करण (e book) अमेज़न पर उपलब्ध है।** गूगल पर भी ई बुक उपलब्ध है। लेखक का संपर्क सूत्र- फ़ोन 7909081514, व्हाट्सएप्प 9471500080, ईमेल rajeshpateljournlist@gmail.com)
पढ़ते रहिए www.up80.online राजनीतिक योद्धा थे यदुनाथ सिंह: हृदय नारायण दीक्षित