केके वर्मा , लखनऊ
लखनऊ के विधि विश्वविद्यालय के अंबेडकर सभागार में कल भाजपा कार्यसमिति की बैठक हुई, जिसका फोकस सुधार में कम विपक्ष को कोसने में ही ज्यादा रहा। कहते हैं, खुद सुधरो, जग सुधर जायेगा। बैठक में भाजपा के 3000 सदस्य शामिल हुए। इनमें पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तमाम वरिष्ठ नेता, मंत्री, पदाधिकारी और सदस्य शामिल हुए। हालांकि इस मौके पर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए कहा- “सरकार से संगठन बड़ा होता है। “
अमूमन कार्यसमिति की बैठक में पार्टी का खराब प्रदर्शन, आने वाले चुनाव और पार्टी के संगठन को मजबूत करने के विषयों पर चर्चा होती है। भाजपा की बैठक से लोगों को यही उम्मीद थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पार्टी सुधार पर बात करने की बजाय विपक्ष के सेट नैरेटिव की काट ढूंढने में लगी रही। बैठक राजनीतिक रैली लगी। आत्ममंथन से ज्यादा दूसरों पर चिंतन करती रही। कार्यसमिति की बैठक में पार्टी वैसे भी ज्यादा चर्चा नहीं कर सकती थी। वो भी तब जब मंच पर तमाम वरिष्ठ नेता और वक्ता हों। पार्टी की बैठक शुरु से लेकर अंत तक एक राजनीतिक रैली की तरह नजर आई।
पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा हों या मुख्यमंत्री योगी, सभी ने भाजपा की बैठक में विपक्ष पर चर्चा की। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी पार्टी को नसीहत देने के बजाय अखिलेश यादव को नसीहत दे डाली। किसी नेता ने लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन पर खास चर्चा नहीं की। आत्ममंथन जैसा कुछ किया ही नहीं जबकि कार्यसमिति की बैठक में इसकी उम्मीद ज्यादा थी। पार्टी से जुड़े तमाम महत्वपूर्ण सवालों को छोड़ कर विपक्ष पर चर्चा हुई है। भाजपा की हार का ठीकरा विपक्ष पर फोड़ा गया। प्रस्ताव में कहा गया कि विपक्ष के झूठे प्रचार के कारण चुनाव में सफलता नहीं मिली। विपक्ष का काम ही है कि आपकी राह में रोड़ा अटकाए, वर्ना विपक्ष क्यो कहलाये। विपक्ष के आरक्षण, महिलाओं को पैसे, संविधान बदलाव को हार का कारण बताया। राहुल गांधी को हिंदू विरोधी करार दिया गया। बताया गया कि बीजेपी ओबीसी और एससी के आरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। ज्योतिबा फुले को पथ प्रदर्शक के रूप में दर्शाया गया। प्रस्तावों में भाजपा ने पुरानी बातें ही दोहराई हैं। विपक्ष के मुद्दों का जवाब दिया गया।
आंकड़ों के मकड़जाल से यूपी में खराब प्रदर्शन पर परदा डालने की कोशिश की गई। 2027 विधानसभा चुनाव के लिए ठोस योजना नहीं बनाई गई। घिसे-पिटे अंदाज में कार्यकर्ताओं को जनता के बीच जाने का आदेश दिया गया। उन बातों की चर्चा तो दूर जिक्र भी नहीं किया गया जिनसे लोकसभा चुनाव में नुकसान हुआ था। पार्टी में भितराघात, पार्टी के परंपरागत वोटरों का दूर होना, विवादित बयानों सहित ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर चर्चा की उम्मीद थी। सहयोगी दलों का वोट ट्रांसफर क्यों नहीं हुआ, इन सारे महत्वपूर्ण विषयों पर कोई चर्चा नहीं हुई।
जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए भी कोई प्रयास नहीं किया। उनसे एक बार फिर हार पर माथा न पीटकर तीसरी बार सरकार बनाने और सरकारी योजनाओं का प्रचार करने को कहा गया। भाजपा में बढ़ रहे भितराघात पर कोई चर्चा नहीं हुई। लोकसभा चुनाव के दौरान तमाम नेताओं ने पार्टी का विरोध किया। बदलापुर विधायक का भी वीडियो वायरल हुआ। नेता और विधायक ही नहीं उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कैबिनेट बैठक में नहीं जा रहे हैं। कल उन्होंने साफ कर दिया कि संगठन सरकार से बड़ा है। भाजपा की जमीनी पकड़ हर दिन कमजोरी होती नजर आ रही है। लोगों का पार्टी से विश्वास कम हो रहा है। बैठक में खोता जनाधार वापस पाने की कोई बात नहीं की गई।