नई दिल्ली
“महोदय, व्यक्तिगत जीवन में हिन्दू Hindu या मुसलमान Muslim होना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन सामाजिक जीवन में हिन्दू और मुसलमान की भावना को लाना, यह साम्प्रदायिकता है और यह धर्मनिरपेक्ष भावनाओं के विपरीत है। महात्मा गांधी Mahatma Gandhi ने कोई ऐसी संस्था नहीं बनायी, जिसमें उन्होंने हिन्दू नाम का समावेश किया हो।
मैं कांग्रेस के दोस्तों से और अन्य मित्रों से कहना चाहता हूं कि जिसके जीवन की कल्पना थी, धर्म निरपेक्ष समाज के स्थापना की, उस पं. जवाहरलाल नेहरू Pt Jawahar Lal Nehru ने दो अवसरों पर दो बात कही। एक बार वे नेपाल यात्रा में गए तो उनसे कहा गया पशुपतिनाथ के मंदिर में दर्शन के लिए जाइए। क्या कहा पं.नेहरू ने? मैं मंदिर नहीं जाऊंगा, क्योंकि हर मानव मेरे लिए एक मंदिर है। दूसरी बात, 1957 के चुनाव के दौरान लखनऊ में एक मीटिंग में भाषण करते समय उनसे एक सवाल पूछा गया कि गो रक्षा के बारे में आपके क्या विचार हैं? चुनाव की मीटिंग में भाषण करते समय पं. नेहरू ने कहा अगर वह मानव की बहबूदी के लिए नहीं हैं तो हमारे लिए गाय और किसी दूसरे जानवर में कोई फर्क नहीं है। नए समाज के जो रचयिता होते हैं, नए समाज के जो बनाने वाले होते हैं, वे समाज की धाराओं के विपरीत भी जाना सीखते हैं और जाने का साहस करते हैं।
मैं भी पं.तारकेश्वर पांडेय Pt Tarkeshwar Pandey से और आपसे इस बात के लिए सहमत हूं कि हमारा इतिहास गौरवपूर्ण है। इस दृष्टि से वेदों में, पुराणों में, मुझे गौरव की अनुभूति होती है। मैं कहता हूं कि अतीत पर गौरव होना एक बात है, संस्कृति की मर्यादा को रखना एक बात है, लेकिन अतीत के अनुरूप स्वस्थ भविष्य की कल्पना करना और उसके आधार पर भविष्य को संजोना, यह बुद्धिमानी की बात है, लेकिन अतीत के पीछे हमेशा दौड़ना, यह प्रतिक्रियावादी बात है।
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धर्म religion वह है जो समाज को धारण करे। समाज को धारण वही कर सकता है जो समाज के विकास के लिए, प्रगतिशील कदम उठाने के लिए, हर समय तत्पर हो, क्योंकि जो कोई समाज स्थिर रहना चाहता है, वह समाज बर्बादी की ओर जाएगा, वह समाज ढलान की ओर जाएगा, वह समाज नीचे की ओर जाएगा। समाज स्थिर नहीं रख सकता है, क्योंकि समाज गतिशील है। भारतीय समाज को अगर आप गतिशील बनाना चाहते हैं, अगर इसको ठीक करके गंगा Ganga को गंगा रखना चाहते हैं तो याद दखिए, ये पुराने श्लोकों को उद्धत करना छोड़ दीजिए। उनको याद रखिए, उनसे प्रेरणा लीजिए।“
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने 29 नवंबर 1966 को राज्यसभा में ‘बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (अमेंडमेंट) बिल, 1965’ पर आपनी बात रखते हुए यह बात कही थी।
साभार: एमएलसी यशवंत सिंह व धीरेंद्र नाथ श्रीवास्तव द्वारा संपादित पुस्तक (राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर- संसद में दो टू )