लखनऊ, 14 अप्रैल
संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ.भीम राव आंबेडकर ने अकेले भारत की 85 फीसदी आबादी को जो अनमोल तोहफा दे गए, आज उस तोहफा को देश के 258 सांसद भी नहीं बचा पा रहे हैं। सरकारी नौकरियों में आरक्षण के तहत अपने अधिकारों को पाने के लिए आज भी आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को एड़ी-चोटी एक करनी पड़ रही है।
भारतीय लोकतंत्र का मंदिर कहा जाने वाला संसद के लोकसभा में आरक्षित वर्ग के 258 सांसद हैं। इनमें से 120 सांसद ओबीसी, 86 सांसद अनुसूचित जाति और 52 सांसद अनुसूचित जनजाति के हैं। देश का कानून बनाने वाले इन सांसदों में से यदि हम आरक्षण को लेकर बोलने वाले सांसदों पर नजर डालें तो इनकी संख्या इतनी कम है कि ये उंगलियों पर नजर आते हैं।
फिलहाल संसद में आरक्षित वर्ग के अधिकारों को लेकर आरक्षण पर बोलने वाले नेताओं में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के सांसद, अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल, सपा के कुछ सांसद, लालू यादव की पार्टी राजद के सांसद मनोज झा (सवर्ण), तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन की पार्टी द्रमुक, कांग्रेस के कुछ चुनींदा नेता ही नजर आते हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती भी आरक्षण को लेकर बोलती रहती हैं, लेकिन उनका फोकस मुख्यत: अनुसूचित जाति के अधिकारों पर ही रहता है। विशेष तौर पर मायावती की यह आवाज सोशल मीडिया तक ही सीमित है।
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हालांकि आरक्षित वर्ग के अधिकांश सांसद ऑफ रिकार्ड आरक्षण को लेकर मुखर होकर बातें तो करते हैं लेकिन जिस महत्वपूर्ण जगह पर इन्हें अपनी बात रखनी चाहिए, वहां पर ये मौन हो जाते हैं। हालांकि इनमें से कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो कुछ खास जातियों के लिए तो बात करते हैं, लेकिन पूरे आरक्षित वर्ग की समस्याओं को उचित फोरम पर उठाने से कतराते हैं।
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तीन साल पहले वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने आरक्षण को लेकर थोड़ा सख्त लहजे में कहा था कि एक अकेला बाबा साहब आंबेडकर ने यहां के करोड़ों दलितों, करोड़ों आदिवासियों एवं करोड़ों ओबीसी के लिए आरक्षण को प्रतिपादित किया। आज उसी आंबेडकर के कारण इतने दलित नेता, इतने आदिवासी नेता, इतने पिछड़े नेता पैदा हुए, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इन्हीं नेताओं के सामने आरक्षण लूट गया। आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को सरकारी नौकरियों के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।
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