एसएन सिंह, बलिया
वर्ष 2023 अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष मनाया जा रहा है। मिलेट्स के अंतर्गत ज्वार, बाजरा, मडुवा, सावां, कंगनी, जीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू फसलें आती हैं। ये फसलें परंपरागत हैं। मिलेट्स के अंतर्गत मडुआ औषधीय फसल है। कृषि विशेषज्ञ एस.एन.सिंह SN Singh से बातचीत में उन्होंने मड़ुआ Maduwa की खेती के बारे में विस्तार से चर्चा की।
मिलेट्स एक ऐसी परम्परागत फसल है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी कम लागत में औसत उत्पादन देने की क्षमता रखती है। इसमें सूखा शीत सहन करने तथा कीट एवं रोग प्रतिरोधी क्षमता अधिक पाई जाती है। परिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में भी इसका विशेष योगदान है। इस फसल की अपनी विशेषता है कि इसे उगाने हेतु कम पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
हृदय रोग के लिए लाभकारी है मड़ुआ (रागी) :
रागी का उत्पादन हमारे देश के अतिरिक्त नेपाल, चीन, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, जिंबाब्वे आदि देशों में भी होता है। भारत में इसकी खेती मुख्यता कर्नाटक 932 हेक्टेयर उत्तराखंड 140 तमिलनाडु 135 हेक्टेयर महाराष्ट्र 125 आदि राज्यों में की जाती है। पोषक तत्वों का विवरण ऊर्जा 328 किलो कैलोरी, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, मैग्नीशियम, सोडियम, थायोमीन, नायसीन, रिब्र, रिबोफ्लेबीन बच्चों गर्भवती महिलाओं के लिए एक आदर्श भोजन है। ह्रदय रोग में लाभकारी इसकी प्रोटीन दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन के समान है।
रागी Ragi के 100 ग्राम मात्रा में 344 मिलीग्राम के लगभग कैल्शियम पाया जाता है। कैल्शियम की इतनी मात्रा किसी अनाज में नहीं पाई जाती। कैल्शियम के प्रभाव से उच्च रक्तचाप, मधुमेह, घेघा रोग से सुरक्षा मिलती है। तथा हड्डियां मजबूत होती हैं। रागी पोषक तत्व एवं औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण हमारे लिए अत्यंत ही उपयोगी है। कुछ परिवार जिन्हें मोटे अनाज की पौष्टिकता के संबंध में जानकारी है, वह अपनी जरूरत के अनुसार इसकी खेती करते हैं। तथा अपने आहार में किसी न किसी रूप में इनको सम्मिलित करते हैं। रागी की खेती को विलुप्त होने से बचाया जाए। इसके संबंध में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है ताकि इसकी खेती एवं उपयोग को बढ़ावा मिल सके।
उत्पादन तकनीक
भूमि दोमट तथा मटियार दोमट
उन्नतिशील बीज की किस्में बीएल 149, 146 315, 324, पंत रानी चौरी 1, 2, केएम 13, 65, पीईएस 110
बीज की मात्रा चार से पांच किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
नर्सरी डालने का उपयुक्त समय जून का प्रथम सप्ताह है। एक किलो बीज 125 वर्ग मीटर अर्थात एक विश्वा क्षेत्र में डाला जाएगा।
20 से 25 दिन की नर्सरी रोपाई हेतु उपयुक्त होती है।
उर्वरक प्रबंध कार्बनिक खाद 100 कुंतल प्रति हेक्टेयर, रोपाई के समय डीएपी 66 किलोग्राम/ हेक्टेयर यूरिया 28 किलोग्राम/हेक्टेयर, पोटाश 30 किलोग्राम/ हेक्टेयर।
35 दिन बाद यूरिया की टॉप ड्रेसिंग 55 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से।
रोपाई लाइन से लाइन 20 से 25 सेमी
पौध से पौध 10 सेमी, 2 पौधे एक स्थान पर लगाना चाहिए।
उत्पादन लगभग 150 दिन में फसल पककर तैयार हो जाती है।
कृषि विशेषज्ञ एस एन सिंह ने बताया कि इसकी मड़ाई आधुनिक मशीन विवेक मिलेट थ्रेसर से की जा सकती है। इसकी पैदावार 22 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।