15 जून 1971 को बजट सत्र के दौरान प्रणब मुखर्जी Pranab Mukharji ने बांग्लादेश Bangladesh की सरकार को डिप्लोमेटिक मान्यता देने की बात रखी, विदेशी समर्थन के लिए यूके व जर्मनी गए
बलिराम सिंह, नई दिल्ली
बांग्लादेश के गठन Formation of Bangladesh में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी PM Indira Gandhi के साथ-साथ उनके सहयोगी एवं विश्वास पात्र रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी Ex President Pranab Mukharji का भी विशेष योगदान रहा। 15 जून 1971 में बजट सत्र के दौरान प्रणब मुखर्जी ने ही संसद में अपनी बात रखते हुए सुझाव दिया था कि भारत को, बांग्लादेश की सरकार को डिप्लोमेटिक मान्यता दे देनी चाहिए, जो इस समय मुजीबनगर में निर्वासित है।
बता दें कि 1947 आजादी के साथ ही भारत को बंटवारा का दंश झेलना पड़ा। बंटवारा के बाद पूर्वी बांग्लादेश भी पाकिस्तान के अंतर्गत चला गया। लेकिन पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान में अत्यधिक दूरी एवं बोल-चाल की भाषा में भिन्नता की वजह से अनेक व्यावहारिक दिक्कतें पैदा हो रही थीं। 1971 आते-आते समस्याएं अत्यधिक गंभीर हो गईं। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘इंदिरा गांधी का प्रभावशाली दशक’ में उल्लेख करते हैं कि पूर्वी पाकिस्तान में मानवाधिकारों का भारी मात्रा में हनन हुआ, भयंकर व नृशंस तथा सामूहिक बलात्कार के मामले सामने आए, जिसके फलस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान के 10 लाख से अधिक लोगों ने पड़ोसी देश भारत में शरण ली। इन शरणार्थियों के लिए शिविरों तथा उनकी व्यवस्था के निर्माण पर जो व्यय आ रहा था, भारतीय संसाधनों को देखते हुए, वह अपने-आप में बहुत अधिक था। त्रिपुरा में लाखों की संख्या में आए शरणार्थियों के कारण वहां के जटिल जनजातीय राजनीतिक तंत्र की आंतरिक स्थिरता को खतरा पैदा हो गया था, क्योंकि कबीलाई व गैर कबीलाई जनसंख्या के अनुपात में भारी अंतर आ गया था। इस तरह इन इलाकों में नई तरह की समस्याओं ने सिर उठा लिया था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 30 मार्च को दोनों सदनों में पूर्वी पाकिस्तान की घटनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा:
‘पूर्वी बंगाल के लोग प्रजातांत्रिक जीवन के लिए जो संघर्ष कर रहे हैं, यह सदन उनके प्रति गहन सहानुभूति व पूर्ण एकता का प्रदर्शन करता है।भारत शांति के प्रति जो स्थायी हित रखता है, उन्हें ध्यान में रखते हुए हम मानव अधिकारों की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध हैं। यह सदन चाहता है कि उन निहत्थे लोगों पर किए जा रहे बल प्रयोग को तुरंत बंद किया जाए।‘ 15 जून 1971 में बजट सत्र के दौरान राज्यसभा में अपनी बात रखते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा,
‘भारत को, बांग्लादेश की सरकार को डिप्लोमेटिक मान्यता दे देनी चाहिए, जो इस समय मुजीबनगर में निर्वासित है।’ एक सदस्य द्वारा इस समस्या का समाधान के बारे में सवाल किए जाने पर प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘मैं एक राजनीतिक समाधान की बात कर रहा हूं, जिसका अर्थ होगा कि बांग्लादेश की स्वायत्त प्रजातांत्रिक सरकार को स्पष्ट रूप से मान्यता प्रदान की जाए। राजनीतिक समाधान का अर्थ होगा, बांग्लादेश की स्वतंत्र व प्रजातांत्रिक सरकार को भौतिक सहायता प्रदान करना।’
विदेशी समर्थन के लिए किए गए प्रयास:
प्रणब मुखर्जी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि भारत तथा संसद से मिले प्रोत्साहन के बावजूद इंदिरा गांधी पश्चिमी यूरोप तथा यूएसए के दौरे पर रवाना हो गईं, ताकि इस काम के लिए वैश्विक मत को पुष्ट किया जा सके। विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह एवं अन्य अनेक कैबिनेट मंत्रियों और आदरणीय ‘स्वतंत्र’ जयप्रकाश नारायण ने पूर्वी तथा पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका व एशियाई देशों में मिशन का नेतृत्व किया और इस तरह एक गहन डिप्लोमेटिक अभियान चलाया गया। इसके अलावा इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन की 59वीं कांफ्रेंस में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में खुद प्रणब मुखर्जी को (2 से 10 सितंबर 1971) विदेश भेजा गया। इसी के तहत प्रणब मुखर्जी को यूके और फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी भी भेजा गया।
13 दिन चला युद्ध:
3 दिसंबर, 1971 को सूर्यास्त के समय पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ हवाई हमले आरंभ कर दिए और इसी के साथ भारत-पाक के बीच 13 दिवसीय युद्ध आरंभ हुआ, पाकिस्तान को भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी के संयुक्त मोर्चे से लड़ना पड़ा। यह युद्ध बड़ी तेज गति से जीत लिया गया। ढाका के रेसकोर्स मैदान में 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के समर्पण के बाद इंदिरा गांधी ने लोकसभा में घोषणा की:
‘श्रीमान स्पीकर, मेरे पास एक ऐसी घोषणा है, जिसे सुनने के लिए सदन कब से प्रतीक्षारत था। पश्चिमी पाकिस्तान की सेनाओं ने बिना किसी शर्त के बांग्लादेश में हथियार डाल दिए हैं। अब ढाका एक स्वतंत्र देश की स्वतंत्र राजधानी है।’