1857 से 72 साल पहले अंग्रेजों ने सरेआम तिलका मांझी Tilka Manjhi को दी थी फांसी
बलिराम सिंह, नई दिल्ली
1857 की क्रांति से 80 साल पहले बिहार के जंगलों से ब्रिटानिया हुकूमत के खिलाफ बिगुल बजा था और इस बिगुल की शुरूआत एक आदिवासी नायक Tribal Warrior ने की। उस आदिवासी नायक का नाम था जबरा पहाड़िया। बाद में इस युवक को अंग्रेजों ने तिलका मांझी नाम दिया। अर्थात 1857 में मंगल पांडेय की शहादत से 72 साल पहले तिलका मांझी Tilka Manjhi को फांसी की सजा हुई।
महान लेखिका महाश्वेता देवी जी ने तिलका मांझी Tilka Manjhi के जीवन और उनकी क्रांति पर एक उपान्यास ‘शालगिरर डाके’ की रचना की। तिलका मांझी Tilka Manjhi का जन्म 11 फरवरी 1750 को बिहार Bihar के सुल्तानगंज में ‘तिलकपुर’ नामक गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार Santhal tribal family में हुआ था। उनका असली नाम ‘जबरा पहाड़िया’ था। अंग्रेजों ने इन्हें तिलका मांझी नाम दिया। इनके पिता का नाम सुंदरा मुर्मू था।
तिलका ने बचपन से आदिवासी समाज की भूमि, जंगली पेड़ों और संपत्तियों को अंग्रेजों द्वारा लूटते हुए देखा था। इसके खिलाफ अक्सर अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी समाज आवाज उठाता था, लेकिन बड़े जमींदार और अंग्रेज इन्हें दबा देते थे। अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ धीरे-धीरे आदिवासी समाज की नाराजगी बढ़ती गई। आदिवासी समाज ने इन्हें तिलका मांझी के नेतृत्व में धीरे-धीरे विद्रोह की आवाज तेज करना शुरू कर दिया। उन्होंने अन्याय और गुलामी के खिलाफ जंग छेड़ दिया।
देश सेवा के लिए एकजुटता का आह्वान:
तिलका मांझी ने भागलपुर में स्थानीय लोगों में राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए स्थानीय सभाएं करने लगे। आदिवासी समाज को जाति-धर्म से ऊपर उठकर एकजुट होने का आह्वान किया।
गरीबों में बांट दियें अंग्रेजी खजाना:
वर्ष 1770 में बिहार में भीषण अकाल पड़ने पर तिलका मांझी ने अंग्रेजी खजाना को लूट लिया और उसे गरीबों में बांट दिया। तिलका मांझी के इस कार्य से आदिवासी समाज उनसे जुड़ गया और अंग्रेजों के खिलाफ ‘संथाल हुल’ विद्रोह (आदिवासियों का विद्रोह) शुरू किया। उन्होंने अंग्रेजों के साथ-साथ स्थानीय जमींदारों और ठेकेदारों के खिलाफ भी आवाज उठाया।
कलेक्टर की हत्या:
तिलका मांझी ने 13 जनवरी 1784 में ताड़ के पेड़ पर चढ़कर घोड़े पर सवाल अंग्रेज कलेक्टर अगस्टस क्लीवलैंड को जहर बुझे तीर से मार कर मौत के घाट उतार दिया। कलेक्टर की हत्या से अंग्रेज सरकार की चूलें हिल गईं। तिलका मांझी को पकड़ने के लिए आदिवासी समाज में फूट डालने की रणनीति अपनाई। अंग्रेजों ने कुछ गद्दारों को अपने साथ मिला लिया। इन्हीं में से एक गद्दार की सूचना पर अंग्रेजों ने तिलका मांझी के ठिकाने पर हमला किया, लेकिन वह बच निकलें और छापमार युद्ध शुरू किया।
पहाड़ की घेराबंदी:
अंग्रेजों ने तिलका मांझी को पकड़ने के लिए पहाड़ की घेराबंदी शुरू की और पहाड़ की ओर जाने वाले सभी रास्तों को रोक दिया। राशन सामग्री को भी रोक दिया। अंत में मजबूर होकर तिलका मांझी को पहाड़ों से नीचे आकर मैदान में लड़ना पड़ा और इस तरह से अंग्रेज सैनिक उन्हें पकड़ने में कामयाब हुए। अंग्रेजों ने उन्हें घसीटते हुए भागलपुर ले गए और उन्हें 13 जनवरी 1785 को फांसी दी। लेकिन बिहार के जंगलों से शुरू हुआ यह विद्रोह 1857 आते-आते पूरे देश में फैल गया और 1857 के बाद भारत की सत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी से छीनकर ब्रिटिश सरकार खुद अपने हाथों में ले ली।
चंद्रप्रकाश जगप्रिय द्वारा लिखी गई प्रसिद्ध कविता:
अमरवीर बलिदानी तिलका
के छेलै ? कहियों तें कक्का।
तिलका तिलके मांझी छेलै
तीर-धनुष सें जे कि खेलैं
प्रजाविरोधी पर गुस्सावै
अंग्रेज ते कुछुवों नै भावै।
क्लीवलैंड के काल छेलै ऊ
देशभक्ति के भाल छेलै ऊ
पकड़ैलै तें हांसै छेलै
भलैं निकट ही फांसी छेलै।
आजादी के पहलों सैनिक
ई समझै में केकरा की दिक।
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