वंचितों, शोषितों के अधिकारों के लिए पेरियार ने स्व सम्मान आंदोलन चलाया
लखनऊ, 17 सितंबर
क्या आपको मालूम है कि आधुनिक युग के पैगंबर पेरियार ई.वी.रामास्वामी ने 1925 में कांग्रेस को भून डालने की प्रतिज्ञा ली थी? 1925 से पहले पेरियार ई.वी.रामास्वामी कांग्रेस में थे। लेकिन 1925 के कांजीवरम अधिवेशन में पेरियार के विचारों के खिलाफ कई प्रस्ताव पास किए गए। लेकिन पेरियार झुके नहीं, बल्कि उन्होंने तमिलनाडु में कांग्रेस को भून डालने की प्रतिज्ञा की। इस प्रतिज्ञा के साथ ही उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कह दिया।
पेरियार का जन्म 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु के इरादे नगर में एक समृद्ध व्यापारी के परिवार में हुआ था। ये कन्नडिका जाति (गडरिया) के थे, जो बाद में नायकर कहलाए। इनकी माता का नाम चिन्नामथाई अमाल था।
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कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद पेरियार ने आडंम्बर पर चोट करने, तमिल भाषा, साहित्य एवं संस्कृति में स्वाभिमान जाग्रत करना, धर्म व ईश्वर के नाम पर चल रहे पुरोहितों के शोषण को समाप्त करने के लिए स्व-सम्मान आंदोलन शुरू किया।
स्व सम्मान आंदोलन के जरिए जातिविहीन समाज का निर्माण करना तथा उसकी प्राप्ति के लिए जाति और उससे सम्बद्ध संस्थाएं यानि धर्म रीतिरिवाज और परंपराओं की आलोचना करना था। इस प्रकार यह आंदोलन पूर्णरूप से ईश्वर विरोधी व ब्राह्मण विरोधी माना गया, क्योंकि समाज में असमानता जातिवादी, वर्ण व्यवस्था धर्मवाद, आडंबरवाद सभी इन्हीं के आधार पर तथा इन्हीं के द्वारा किया जाता है। यह आंदोलन वेद, पुराण और मनु कानून को केवल पापों की कहानी मात्र मानना है। इसने तमिल प्रदेश और संस्कृति को राजनैतिक और सामाजिक आयाम दिया है।
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1920 में रामास्वामी कांग्रेस के मंत्री बने। तत्पश्चात आपको इरादे नगर का चेयरमैंन बनाया गया। रामास्वामी का मुख्य उद्देश्य समाज के ऐसे व्यक्तियों की सेवा करना था, जो गरीब हैं, शोषित हैं। वे सदैव सोचते थे कि सामाजिक न्याय, समानता और व्यक्तित्व के विकास के लिए शोषितों को समुचित अवसर प्राप्त हो।
गुरुकुल में समानता के लिए आवाज उठायी:
1922 में तमिलनाडु के तिरूनेकेली जिले के सरमा देवी स्थान पर एक गुरुकुल का निर्माण किया गया। यहां ब्राह्मण जाति के छात्रों के लिए विशेष भोजन बनता था और अन्य छात्रों के लिए निम्न कोटि का भोजन परोसा जाता था। रामास्वामी ने इसका विरोध किया। महात्मा गांधी ने भी रामास्वामी का साथ दिया।
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केरल के वैकुम स्थित शिव मंदिर का रास्ता शूद्रों के लिए भी खोला गया:
केरल स्थित इस शिव मंदिर के आसपास स्थित सड़कों पर शूद्रों और अछूतों को आने-जाने पर मनाही थी। इस आंदोलन में पेरियार को दो बार जेल जाना पड़ा। इस आंदोलन में उनकी पत्नी ने भी साथ दिया। अंतत: रास्ता खोल दिया गया। तत्पश्चात पेरियार को वैकुम वीर की उपाधि से सुशोभित किया गया।
साभार: शोषित समाज के क्रांतिकारी प्रवर्तक