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आज़ाद ख्य़ाल सीनों में धड़कते रहेंगे चन्द्रशेखर आज़ाद

जयंती: 23 जुलाई 1906

up80.online by up80.online
July 24, 2023
in अन्य राज्य, दिल्ली, बिहार, यूपी
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चंद्रशेखर आजाद

महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद

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बलिया, 23 जुलाई

आखिरी सांस तक स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने वाले, महान क्रांतिकारी, मुकम्मल आजादी के प्रबल पक्षधर, हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के कमांडर चन्द्रशेखर आजाद Chandrashekhar Azad आज भी उन सीनों में धड़कते -फड़कते हैं, जिनमें शोषण, भ्रष्टाचार, अन्याय और अत्याचार पर आधारित शासन व्यवस्थाओं से संघर्ष करने का संकल्प, साहस और पराक्रम  जिन्दा है। बदहाल, बद्ततर और बेबस जीवन जीने के लिए विवश करने वाली सरकारों तथा सड़ी-गली जिंदगी मुहैया कराने वाली घटिया शासन व्यवस्थाओं के अन्दर घुटन महसूस करने वाले तथा बेहतर जीवन और न्याय, समानता और भाईचारा पर आधारित समाज बनाने के लिए पूरी ईमानदारी से लड़ने-जूझने वाले लोगों के लिए चन्द्रशेखर आजाद का जीवन एक दीपशिखा की तरह हैं।

चन्द्रशेखर आजाद ने ब्रिटिश साम्राज्य के क्रूर, भ्रष्ट, निर्मम और निर्लज्ज चरित्र को बहुत नजदीक से देखा था। इसके साथ ब्रिट्रिश सरकार के शासन काल में किसानों, मजदूरों, मेहनतकशों और अन्य आम भारतीयों की गरीबी, गुरूबत, दुर्दशा, जलालत और जहालत से भरी जिन्दगी का बहुत करीब से दीदार किया था। निर्धनता और कंगाली के आगोश में चन्द्रशेखर आजाद का बचपन गुजरा और गरीब परिवार में पैदा होने के कारण आजाद प्राथमिक शिक्षा भी ठीक ढंग से पूरा नहीं कर पाए। परन्तु चन्द्रशेखर आजाद ने भगतसिंह, भगवती चरण वोहरा, सुखदेव और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जो क्रांतिकारी कबीला तैयार किया, वह भारत का सबसे क्रांतिकारी, उत्कृष्ट राष्ट्रवादी के साथ-साथ बौद्धिक दृष्टि से सर्वाधिक प्रखर कबीला था। इस क्रांतिकारी कबीले ने अपनी क्रांतिकारी चेतना, बौद्धिक प्रखरता और वैचारिक प्रतिबद्धता और साहसिक कारनामों से ब्रिटिश साम्राज्य की चूल्हा-चौकी हिला दिया। इसलिए निर्मम और निर्लज्ज ब्रिटिश हुकूमत ने सर्वाधिक आक्रामकता और क्रूरता आजाद और भगत सिंह की क्रांतिकारी मंडली हिन्दूस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन के साथ दिखाई। चन्द्रशेखर आजाद और भगतसिंह की क्रांतिकारी मंडली की भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका यह है कि-असहयोग आंदोलन के निराशाजनक अवसान के बाद उत्पन्न ठहराव के दौर ( असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन के मध्य ) में इस क्रांतिकारी मंडली ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष की मशाल अद्भुत साहस और प्रखरता से जलाए रखी।

ठीक ढंग से शिक्षा पूरी न कर पाने के कारण और सतही दृष्टि से चन्द्रशेखर आजाद को समझने वाले प्रायः उनके सांगठनिक कौशल, साहस और पराक्रम से परिपूर्ण व्यक्तित्व तथा बलिदानी चरित्र की खुले कंठ से प्रशंसा करते हैं, परन्तु उनकी बौद्धिक और वैचारिक प्रखरता के प्रति उत्साह नहीं दिखाते हैं। जबकि- चन्द्रशेखर आज़ाद हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के बौद्धिक रूप से प्रखर भगतसिंह, भगवती चरण वोहरा, सुखदेव और शचीन्द्रनाथ सान्याल जैसे क्रांतिकारी साथियों से पूरी क्षमता, दक्षता और प्रखरता से प्रत्येक विषय पर बहस करते थे। जबरदस्त और गरमागरम बहस के उपरान्त ही क्रांतिकारी मंडली द्वारा कोई प्रस्ताव पास किया जाता था। चन्द्रशेखर आजाद एक अद्वितीय संगठनकर्ता थे और उन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के बीच एक महत्वपूर्ण सूत्रधार की भूमिका निभाई। 1925 मे हुए काकोरी कांड के बाद हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का सांगठनिक ढांचा लगभग बिखर गया था। क्योंकि- काकोरी कांड के बाद हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारियों पर ब्रिटिश हुकुमत ने बहुत निर्ममता से दमन चक्र चलाया। परन्तु चन्द्रशेखर आजाद ने त्याग, बलिदान, कर्मठ्ता और अपनी अद्वितीय सांगठनिक क्षमता तथा दक्षता से हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में फिर एक ऐसी क्रांतिकारी मंडली गठित, प्रेरित और सक्रिय की। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारियों ने न केवल अंग्रेजों के विरुद्ध हथियारबंद प्रतिरोध किया, बल्कि इस क्रांतिकारी मंडली ने अंग्रेजी सरकार पर सर्वाधिक प्रखर वैचारिक और सैद्धान्तिक हमला किया। चन्द्रशेखर आज़ाद की क्रांतिकारी मंडली अपने साहसिक कृत्यों और क्रांतिकारी विचारों के लिए भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिपिबद्ध रहेगी और आजाद ख्याल सीनों में चन्द्रशेखर आज़ाद और उनके साहसिक कारनामे धड़कते रहेंगे।

पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी की पाँचवी और सबसे छोटी संतान चन्द्रशेखर आज़ाद के मन में अपने देश को आजाद कराने की धुन, तडप और बेचैनी बचपन में ही पैदा हो गई थी। महज चौदह वर्ष की उम्र में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में वह एक अहिंसावादी सत्याग्रही के रूप में शामिल हो गये। इस आन्दोलन में चन्द्रशेखर आज़ाद गिरफ्तार हो गये। गिरफ्तारी के उपरान्त अदालती सवाल-जवाब में आजाद ने उत्तर दिया–मेरा नाम आजाद हैं, पिता का नाम – ‘स्वतंत्र ‘ तथा निवास स्थान- जेलखाना है। नृशंस अंग्रेज मजिस्ट्रेट कोमल बालक के इस उत्तर को सहन नहीं कर सका और बालक चन्द्रशेखर को 15 बेंत लगाने की सजा सुनाई। सटा-सट बेंत पड़ने लगें और प्रत्येक वार पर आजाद के मुख से ‘ वन्दे-मातरम और महात्मा गांधी की जय ही निकला। इस दृश्य को देखने वालों की रूह कांप गई। कोमल बालक मुर्च्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा। इन बेतों का आघात चन्द्रशेखर आज़ाद के शरीर से अधिक आत्मा पर लगा। इस अमानवीय दंड ने चन्द्रशेखर आज़ाद को गांधीवादी अहिंसक आंदोलन से विमुख कर दिया और हिंसात्मक क्रांति की तरफ अग्रसर हो गये। लाख कोशिशों के बावजूद भी अंग्रेजी सरकार  चन्द्रशेखर आजाद को उनकी आजाद प्रियता को अलग नहीं कर पाई। काकोरी षड्यंत्र, सांडर्स हत्याकांड, दिल्ली षड्यंत्र से लेकर दर्जनों घटनाओं में चन्द्रशेखर आज़ाद को प्रमुख षडयंत्रकारी माना गया, परन्तु जिवित रहते हुए आजाद को कभी पुलिस स्पर्श नहीं कर पाई। अंतिम समय भी अपनी जीवन लीला आजाद ने अपनी पिस्तौल से चली गोली से ही किया। अपनी आखिरी सांस तक आजाद ने अपनी आजाद प्रियता बरकरार रखी। अपने बौद्धिक, वैचारिक और साहसिक हिंसात्मक संघर्ष के कारण भारतीय इतिहास के पन्नों में आदर के साथ याद किए जाते रहेंगे।

विचारक
राजनीतिक विचारक मनोज सिंह प्रवक्ता

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता

बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।

 

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