दोहरी जिंदगी नहीं जीते थे अरुण जेटली: वीरेंद्र सचदेवा
वीरेंद्र सचदेवा, 25 अगस्त
अरुण जेटली जी का निधन एक अपूरणीय क्षति है। लगभग 13 माह में भारतीय जनता पार्टी ने अपने पांच शीर्ष नेताओं अटल जी, मनोहर पारिकर जी, अनंत कुमार जी, सुषमा स्वराज जी व अरुण जेटली जी को खो दिया है। देश के लिए व पार्टी के लिए भी यह बड़ा नुकसान है।
वर्तमान पीढ़ी में जो कार्यकत्र्ता आज पार्टी में काम कर रहे हैं, उनका किसी ना किसी रूप में अरुण जी से संबंध रहा है या यूं कहें कि वह किसी न किसी रूप से अरुण जी से प्रभावित होते रहे हैं। अरुण जी बहुत बड़े वकील, कुशल संगठनकत्र्ता, ओजस्वी वक्ता, एक कठोर प्रशासनिक अधिकारी तो थे ही, सही मायनों में सच्चे दोस्त भी थे। उनके अनेक रूपों को स्मरण करना हम सबके लिए एक अमूल्य निधि है।
दोहरी जिंदगी नहीं जीते थे अरुण जेटली:
अपनी किसी भी समस्या के लिए कभी भी अरुण जी के पास जाना और उसका निराकरण होना, यह अरुण जी के पास जाकर ही संभव होता था। उनका स्वभाव हंसमुख था। परंतु वह अपने लिए गए निर्णय पर हमेशा अडिग रहते थे और अगर उनकी किसी से कोई नाराजगी है तो वह छुपाते नहीं थे, दोहरी जिंदगी नहीं जीते थे, अच्छे और बुरे की रेखा को परिभाषित कर अपना नजरिया स्पष्ट कर देते थे।
डीडीसीए के अध्यक्ष के रूप में दिल्ली क्रिकेट को उनके जैसा अद्भुत प्रभावशाली अध्यक्ष मिल नहीं सकता, उन्होंने कोटला मैदान का मेकओवर ही नहीं किया, उन्होंने क्रिकेट खेलने वाले खिलाड़ियों को प्रोत्साहित भी किया। उनके कार्यकाल में दिल्ली क्रिकेट में लगातार सुखद हुए। आज कोटला मैदान जिस भव्य रूप में दिखाई देता है यह अरुण जी की ही देन है।
पार्टी के लिए संकटमोचक थे अरुण जेटली:
भारतीय जनता पार्टी अटल जी, आडवाणी युग और आज नरेंद्र मोदी युग में काम कर रही है परंतु इन तीनों युगों में अगर किसी एक नेता की स्वीकार्यता सबके बीच में थी तो वो जेटली जी ही थे, पार्टी ने उन्हें जो भी दायित्व दिया, उन्होंने उसे कुशलता से निर्वाहित किया, उनके नेतृत्व में कई राज्यों में हमारी सरकार बनी और संसद में वह हमेशा सरकार के लिए ट्रबल शूटर या यूं कहें संकटमोचक के रूप में हमेशा रहते थे। उनके तर्कों का जवाब विपक्ष के किसी नेता के पास नहीं था। उनकी कार्यशैली के सभी लोग कायल थे। आप याद कीजिए वह समय जब गुजरात में श्रीमान नरेंद्र मोदी और श्री अमित शाह जी पर शहराबुद्दीन हत्याकांड, इशरत जहां और हरेन पांड्या जैसे झूठे मुकदमों के दम पर यूपीए सरकार प्रताड़ित कर रही थी तो अरुण जी अकेले थे जो ना केवल कानूनी रूप से व राजनैतिक रूप से भी आप दोनों के लिए कवच बन कर सामने आए ।
अरुण जी खाने के बेहद शौकीन थे, चाहे वह छोले भटूरे हो अमृतसरी नान हो कबाब या चिकन हो वह अपने हाथ और मुंह को रोक नहीं पाते थे और यही स्वभाव उनका उनके लिए कष्ट का कारण भी बना। अरुण जी को पश्मीना शॉल महंगी घड़ियां, चप्पल और अच्छे कपड़ों का बेहद शौक था। आज उनका जाना भाजपा के साथ-साथ समाज और देश के लिए भी बहुत बड़ी क्षति है और उसे पूरा करना आने वाले वर्षों में मुझे तो असंभव लगता है।
सदस्य, केंद्रीय सुशासन विभाग, भाजपा
सदस्य, डीडीसीए
यह भी पढ़िये: भारत ने डॉक्टर्स पैदा किए और पाकिस्तान ने जेहादी: सुषमा स्वराज