यूपी 80 न्यूज़, बेल्थरा रोड
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।
देश की जंग-ए-आज़ादी में बलिया जिले के क्रांतिकारियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। इनमें जनपद के चरौंवा (बेल्थरारोड) के क्रांतिकारी भी शामिल थे। इन्हीं क्रांतिकारियों की शहादत की याद में प्रतिवर्ष 25 अगस्त को चरौंवा शहीद स्मारक पर बलिदान दिवस मनाया जाता है।
सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 25 अगस्त चरौंवा गांव के चार क्रांतिकारी अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। जिसमें मकतुलिया मालिन, मंगला सिंह, खर बियार व शिवशंकर सिंह जैसे अमर शहीद शामिल हैं।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब अंग्रेज हुक्मरानों द्वारा विशेषाधिकार युक्त सर्वोच्च शासक नेदर सोल और मार्क्स स्मिथ के नेतृत्व में फौज की टुकड़ी जल मार्ग से बलिया पहुंची थी। इसका एक दस्ता कैप्टन मूर की देखरेख में चरौवा गांव भी पहुंचा। कैप्टन मूर ने गांव के सरपंच राम लखन सिंह के यहां एक चौकीदार भेजकर उन्हें क्रांतिकारियों को सौंपने का संदेश भेजा। उसके आदेश पर चौकीदार सरपंच के यहां जा पहुंचा। जब सरपंच ने उससे वहां आने का कारण पूछा तो उनसे कैप्टन मूर का संदेश उन्हें सुनाया। उसका संदेश सुनकर सरपंच गुस्से से तमतमा गए तथा उसे ऐसा करारा तमाचा जड़ा कि उसके कान से खून टपकने लगा। सरपंच के इस आचरण की जानकारी जब कैप्टन मूर को हुई तो वह बौखला गया। इसके बाद वह अपनी फौज के साथ चरौंवा गांव की तरफ कूंच कर गया। वहां पहुंच कर उसने पूरे गांव को चारों तरफ से घेर लिया। अंग्रेजों के हाथों में मशीनगन होने के बावजूद वहां के ग्रामीण उनसे भयभीत नहीं हुए। उन्होंने हाथों डंडे लेकर अंग्रेजों को ललकारा। क्रांतिकारियों के इस तेवर से अंग्रेजों में खलबली मच गई। इसी दौरान मकतुलिया मालिन ने कैप्टन मूर के सिर पर एक हांडी से हमला बोल दिया। मकतुलिया मालिन के इस अदम्य साहस से कैप्टन मूर आक्रोशित हो गया तथा उन्हें मशीनगन की गोलियों से छलनी कर दिया। मकतूलिया मालिन के शहीद हो जाने पर कैप्टन मूर ने उनका शव घाघरा नदी में फेंकवा दिया। इस घटना के बाद अंग्रेजों ने ग्रामीणों पर गोलियां चलानी शुरू कर दी।
गांव के क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच जबरदस्त युद्ध प्रारम्भ हो गया। ग्रामीणों ने अपने लाठी के दम पर कई अंग्रेजों को जख्मी कर दिया। इस लड़ाई में मकतुलिया मालिन के अलावा खर बियार, मंगला सिंह व शिवशंकर सिंह भी शहीद हो गए। क्रांतिकारियों के शहीद हो जाने पर फिरंगियों ने गांव में जमकर लूटपाट की। गांव के कन्हैया सिंह, राधा किशुन सिंह, दशरथ सिंह, कपिलदेव सिंह, बृज बिहारी सिंह, मृगराज सिंह, शम्भू सिंह, श्रीराम तिवारी, कमला स्वर्णकार व हरिप्रसाद स्वर्णकार आदि लोगों ने अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। अंग्रेजों ने उन्हें जेल में बंद कर दिया। इन्ही चरौंवा के शहीदों की याद में प्रत्येक वर्ष 25 अगस्त को चरौंवा में शहीद मेला लगता है। इस दौरान क्षेत्र के लोग वहां बने शहीद स्मारक पर उनको श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। रविवार को शहीद स्मारक पर लोगों का जमावड़ा लगेगा तथा उनके द्वारा शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित की जाएगी।