ओबीसी की जाति जनगणना की मांग को लेकर वेबीनार का आयोजन
यूपी80 न्यूज, लखनऊ
“यदि ओबीसी की जाति-जनगणना नहीं हुई तो 2021 की जनगणना का विरोध होगा।“ ओबीसी महासभा द्वारा आयोजित ओबीसी की जाति जनगणना सीरीज के तीसरा वेबीनार (शिक्षण संस्थानों में ओबीसी आरक्षण के साथ खिलवाड़ विषय पर केंद्रित रहा) के दौरान यह मांग की गई। वेबिनार की अध्यक्षता महाराष्ट्र के प्रमुख सामाजिक एक्टिविस्ट नागेश चौधरी ने की। प्रोग्राम में मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर लक्ष्मण यादव और लोकसभा टीवी चैनल के पत्रकार राजेश्वर जायसवाल ने संबोधित किया। साथ ही पूर्व आईएएस राकेश वर्मा के साथ जेएनयू के पूर्व छात्र नेता, ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट फोरम के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्तमान में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के डिजिटल मीडिया के प्रमुख डॉ अनूप पटेल सहित कई वक्ताओं ने संबोधित किया।
डॉ.अनूप पटेल ने कहा कि आज के वेबिनार के दौरान भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन में ओबीसी वर्ग के नायकों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। उन्होंने कहा कि 1980 में बीपी मंडल के नेतृत्व में मंडल कमीशन का गठन किया गया। मंडल कमीशन में पिछड़े वर्ग के हितों के लिए कई सारी सिफारिशें सरकार को सौंपी। लेकिन केंद्रीय सरकार ने मंडल कमीशन की केवल 2 सिफारिशें ही लागू की। इसके तहत केंद्रीय नौकरियों में 27 परसेंट ओबीसी के लिए आरक्षण व शिक्षण संस्थानों में ओबीसी अभ्यर्थियों के लिए 27 परसेंट आरक्षण। उन्होंने कहा कि 1990 में मंडल कमीशन आने के बाद जैसे ही राजनैतिक सामाजिक चेतना फैल रही थी, वैसे ही आरक्षण विरोधी ताकतें कमंडल का राग छेड़ दिया। परिणामस्वरूप ओबीसी वर्ग अपना खुद का नुकसान कर बैठा।
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ओबीसी की वर्तमान स्थिति:
डॉ.अनूप पटेल कहते हैं कि 2020 के आंकड़ों के अनुसार 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में यदि ओबीसी वर्ग के शिक्षकों के आंकड़ों पर नजर डालें तो केवल 9 ओबीसी वर्ग के प्रोफेसर कार्यरत हैं, जबकि 260 पद खाली हैं। इसी तरह एसोसिएट प्रोफेसर के 544 पदों में सिर्फ 31 पदों पर ओबीसी वर्ग के शिक्षक कार्यरत हैं और 513 पद रिक्त हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर के 2178 पदों में मांत्र 1267 पद भरे गए हैं और 911 पद खाली हैं। देश के किसी भी यूनिवर्सिटी में अभी तक ओबीसी वर्ग का कोई वीसी नहीं हुआ है। इसके अलावा मंडल कमीशन के लागू होने के साथ ही सुपर स्पेशलिटी संस्थानों में ओबीसी आरक्षण को डिबार कर दिया गया। यह ओबीसी वर्ग के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी थी।
इन कठिनाइयों से गुजर रहे हैं ओबीसी छात्र:
पीएचडी प्रोग्रामों में ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों की उपस्थिति भी नगण्य होती जा रही है।
-यदि ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थी इंटरव्यू देते हैं तो रिजल्ट में नॉट फाउंड सूटेबल का क्लाज लगा देते हैं और इस तरीके से शिक्षण संस्थानों से ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को बाहर कर दिया जाता है।
-वर्तमान सरकार द्वारा प्रस्तावित न्यू एजुकेशन पॉलिसी से ओबीसी वर्ग को काफी नुकसान हेागा। निजीकरण को बढ़ावा देने से शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था पर कुठाराघात होगा।
-वर्तमान में ओबीसी कैटेगरी का कट ऑफ सामान्य वर्ग से ज्यादा आ रहा है, जो कि चिंता का विषय है। ऐसे में 50 परसेंट सामान्य वर्ग और 10 परसेंट आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का आरक्षण यानी 60 परसेंट आरक्षण देश के सवर्ण वर्गों के लिए अघोषित रूप से आरक्षित कर दिया गया।
ओबीसी वर्ग को आपस में लड़ाने का प्रयास:
डॉ.अनूप पटेल कहते हैं कि वर्तमान सरकार द्वारा देश में ओबीसी वर्ग को आपस में लड़ाने का प्रयास किया जा रहा है। ओबीसी आरक्षण को तीन भागों में विभाजित करने की योजना चल रही है। हालांकि जस्टिस रोहिणी कमीशन कई बार यह बता चुका है कि उसके पास आंकड़ों का अभाव है। आंकड़े तब आएंगे जब ओबीसी की जाति जनगणना होगी। इसलिए सबसे पहले ओबीसी महासभा की मांग है कि जब तक ओबीसी की जाति जनगणना नहीं होगी, तब तक जाति जनगणना के आंकड़े जारी ना की जाए।
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