यूपी 80 न्यूज़, लखनऊ
“जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है।
घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं,
ढाल बनकर माँ की दुआएँ आ गईं।”
इस प्रसिद्ध नज्म को गाने वाले मशहूर शायर मुनव्वर राना अब नहीं रहे। रविवार रात उनका निधन हो गया। वह 71 वर्ष के थे। राना की बेटी सोमैया ने बताया कि उनके पिता का रविवार देर रात लखनऊ के संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में निधन हो गया। वह काफी समय से गले के कैंसर से पीड़ित थे। एक सप्ताह से एसजीपीजीआई में इलाज जारी था।
मुनव्वर राना को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए 2014 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। राना के परिवार में उनकी पत्नी, पांच बेटियां और एक बेटा है। मशहूर शायरों में शुमार मुनव्वर राना की नज्म ”मां” का उर्दू साहित्य जगत में एक अलग स्थान है। 1952 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली में जन्मे मुनव्वर राना की शायरी बेहद सरल शब्दों पर आधारित हुआ करती थी, जिसने उन्हें आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को मशहूर शायर मुनव्वर राना के इंतकाल पर शोक जताया। उन्होंने कहा कि उन्होंने उर्दू साहित्य और कविता में समृद्ध योगदान दिया। मोदी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ”मुनव्वर राना जी के निधन से दुखी हूं। उन्होंने उर्दू साहित्य और कविता में समृद्ध योगदान दिया। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दिवंगत शायर को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा,
‘तो अब इस गांव से रिश्ता हमारा खत्म होता है…फिर आंखें खोल ली जाएं कि सपना खत्म होता है।
श्री यादव ने कहा, देश के जाने-माने शायर मुन्नवर राना का निधन अत्यंत हृदय विदारक। दिवंगत आत्मा की शांति की कामना।