बंगाल-बिहार दोनों राज्यों में भाजपा का खाता नहीं खुला, बिहार की बोचहां सीट पर लालू यादव की पार्टी के प्रत्याशी को मिली जीत
यूपी80 न्यूज, लखनऊ
बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा Shatrughan Sinha बंगाल में सिकंदर बनकर उभरे हैं। आसनसोल Asansol लोकसभा उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस TMC के उम्मीदवार एवं बालीबुड के लोकप्रिय अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने भाजपा उम्मीदवार को तीन लाख से ज्यादा वोटों से पटकनी दी है। इनके अलावा मोदी सरकार में मंत्री रहे बाबुल सुप्रियो Babul Supriyo ने भी तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर बंगाल के बालीगंज एवं मुजफ्फरपुर की बोचहां Bochahan सीट से लालू प्रसाद यादव Lalu Prasad Yadav की पार्टी के उम्मीदवार अमर कुमार पासवान Amar Kumar Paswan ने जीत का तिलक लगाया है। इन सभी सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है।
बता दें कि आसनसोल लोकसभा से 2019 में सांसद चुने गए बाबुल सुप्रियो ने बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद आसनसोल लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था और तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। ममता बनर्जी ने उन्हें बालीगंज से उम्मीदवार बनाया था और आसनसोल से सिने अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को प्रत्याशी घोषित किया था। शत्रुघ्न सिन्हा ने भाजपा प्रत्याशी अग्निमित्रा पॉल को तीन लाख से ज्यादा वोटों से हराया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस ऐतिहासिक जीत को बांग्ला नववर्ष का तोहफा बताया है।
बता दें कि भाजपा से अलग होने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को लखनऊ से उतारा था, लेकिन वह चुनाव हार गईं। उनके अलावा शत्रुघ्न सिन्हा बिहार कांग्रेस के टिकट पर पटना साहिब से चुनाव लड़े थे, लेकिन पराजय का सामना करना पड़ा था।
बोचहां में मुरझा गया राजद उम्मीदवार को मिली जीत:
मुजफ्फरपुर की बोचहां सीट से राजद उम्मीदवार अमर कुमार पासवान ने जीत हासिल की है। अमर पासवान दिवंगत विधायक मुसाफिर पासवान के पुत्र हैं। बिहार चुनाव 2020 में यहां से मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी से मुसाफिर पासवान विधायक चुने गए थे। लेकिन चुनाव के कुछ समय बाद मुसाफिर पासवान का निधन हो गया और उपचुनाव के ऐन मौके पर मुसाफिर पासवान राजद में शामिल हो गए। वीआईपी ने यहां से पूर्व कैबिनेट मंत्री रमई राम की बेटी डॉ. गीता कुमारी को और भाजपा ने बेबी कुमारी को टिकट दिया था। लेकिन दोनों प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा है। हालांकि चुनाव में वीआईपी प्रत्याशी ने भी दमखम दिखाया है। ऐसे में आने वाले समय में वीआईपी की प्रासंगिकता बनी रहेगी।