भारत में महिलाओं की मुक्तिदाता के तौर पर लोकप्रिय हैं माता सावित्रीबाई फुले
बलिराम सिंह, 3 जनवरी
माता सावित्री बाई फुले, जिन्हें आधुनिक भारत में महिलाओं का मुक्तिदाता के तौर पर जाना जाता है। माता सावित्रीबाई फुले को कवयित्री, अध्यापिका, शिक्षाविद् के अलावा एक समाज सुधारक के तौर पर भी जाना जाता है। अनेक बाधाओं के बावजूद माता सावित्री बाई फुले का स्त्रियों को शिक्षित करने में अतुलनीय योगदान रहा। आज माता सावित्रीबाई फुले की जयंती है।
ये माता सावित्रीबाई फुले की तपस्या का ही फल है कि आज देश की महिलाएं चांद तक पहुंचने में सफलता हासिल की हैं। जीवन के अंतिम समय में माता सावित्रीबाई फुले ने प्लेग से पीड़ित एक बच्चे को पीठ पर लादकर अस्पताल ले गईं, जिसकी वजह से माता सावित्रीबाई फुले भी बीमार हुईं और उनका निधन हो गया।
माता सावित्रीबाई फुले ने अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों, शिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह जैसी सामाजिक बुराईयों के खिलाफ अभियान शुरू किया।
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जीवन परिचय:
आपका जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव नामक गांव में हुआ था। 9 साल की उम्र में ही आपकी शादी पूना के ज्योतिबा फुले के साथ हो गया। ज्योतिबा फुले केवल तीसरी कक्षा तक पढ़े थे।
पिता ने ज्योतिबा फुले को घर से निकाला:
ज्योतिबा फुले दलित समाज से थे। उनका मानना था कि दलित और महिलाओं की आत्मनिर्भरता, शोषण से मुक्ति और विकास का रास्ता शिक्षा के जरिए शुरू होता है।
सावित्रीबाई जब ज्योतिबा फुले के लिए खाना लेकर खेत में आती थी, उस दौरान ज्योतिबा फुले उन्हें पढ़ाते थे, लेकिन जब यह बात उनके पिता को मालूम हुई तो उन्होंने उन्हें घर से निकाल दिया। उनके पिता सामाजिक रूढ़िवादिता और डर की वजह से ये कदम उठाया।
1848 में पुणे में बालिका विद्यालय की स्थापना:
माता सावित्री बाई फुले ने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 1848 में पुणे में बालिका विद्यालय की स्थापना की। स्कूल में 9 लड़कियों ने दाखिला लिया। कुछ ही दिनों में लड़कियों की संख्या में वृद्धि हो गई।
स्कूल जाते समय लोग अंडा-सड़े टमाटर, गोबर फेंकते:
स्कूल खोलने के बाद माता सावित्री बाई को अनेक कठिनाइयों से जूझना पड़ा। समाज के निचले तबके से होने की वजह से लोग रास्ते में उन्हें गालियां देते, सड़े टमाटर, अंडे, कचरा, गोबर इत्यादि फेंकते थें और जान से मारने की धमकी देते थे। इसकी वजह से उनकी साड़ी रोजाना खराब हो जाती थी। इस समस्या से निपटने के लिए माता सावित्री बाई फुले अपने बैग में एक अतिरिक्त साड़ी लेकर जाती थी। एक स्कूल जाते समय पहनकर जाती थीं और साड़ी खराब होने पर स्कूल में जाकर दूसरी साड़ी पहन लेती थी।
गुंडे को सबक सिखाया:
एक बदमाश माता सावित्री बाई का रोजाना पीछा करता था और उन्हें गालियां व जान से मारने की धमकी देता था। एक दिन सावित्री बाई फुले ने उससे भीड़ गईं और उसे कई थप्पड़ जड़ दिया। इस घटना के बाद किसी ने सावित्री बाई फुले के साथ बदतमीजी नहीं की।
महज चार साल में 18 स्कूल खोलें:
माता सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा फुले ने 1 जनवरी 1848 से 15 मार्च 1852 के बीच लड़कियों के लिए 18 विद्यालय खोलें।
मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा पर भी जोर:
उन्होंने 1849 में पूना में ही मुस्लिम महिलाओं एवं बच्चों के लिए एक स्कूल खोला।
16 नवंबर 1852 में ब्रिटिश सरकार ने सम्मानित किया:
माता सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा फुले के सामाजिक कार्य से प्रसंन्न होकर ब्रिटिश सरकार ने 16 नवंबर 1852 में दोनों पति-पत्नी को शॉल भेंटकर सम्मानित किया।
महिला मंडल का गठन:
महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए उन्होंने 1852 में ‘महिला मंडल’ का गठन किया और भारतीय महिला आंदोलन की पहली अगुआ बनी।
बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना:
विधवाओं और उनके बच्चों की देखरेख के लिए 1853 में ‘बाल हत्या प्रतिबंधक गृह’ की स्थापना की।
मजदूरों के लिए रात्रि पाठशाला:
मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए 1855 में उन्होंने ‘रात्रि पाठशाला’ की स्थापना की।
विधवाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाया:
उस समय विधवाओं के सिर को जबरदस्ती मुंडवा दिया जाता था, सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने इस अत्याचार का विरोध किया और नाइयों के साथ काम कर उन्हें तैयार किया कि वो विधवाओं के सिर का मुंडन करने से इंकार कर दे, इसी के चलते 1860 में नाइयों ने हड़ताल कर दी कि वे किसी भी विधवा का सर मुंडन नही करेगें, ये हड़ताल सफल रही। सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने अपने घर के भीतर पानी के भंडार को दलित समुदाय के लिए खोल दिया। सावित्रीबाई फुले के भाई ने इन सब के लिए ज्योतिबा की घोर निंदा की, इस पर सावित्रीबाई ने उन्हें पत्र लिख कर अपने पति के कार्यो पर गर्व किया और उन्हें महान कहा।
सत्यशोधक समाज की स्थापना:
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने 24 सितम्बर,1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। सावित्रीबाई फुले ने विधवा विवाह की परंपरा शुरू की और सत्यशोधक समाज द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर 1873 को संपन्न किया गया था और यह शादी बाजूबाई निम्बंकर की पुत्री राधा और सीताराम जबाजी आल्हट की शादी थी। 1876 व 1879 में पूना में अकाल पड़ा था तब ‘सत्यशोधक समाज‘ ने आश्रम में रहने वाले 2000 बच्चों और गरीब जरूरतमंद लोगों के लिये मुफ्त भोजन की व्यवस्था की।
28 नवंबर 1890 में महात्मा ज्योतिबा फुले के निधन के पश्चात माता सावित्रीबाई फुले ने सत्यशोधक समाज के कारवां को आगे बढ़ाया। उन्होंने 1893 में सास्वाड़ में आयोजित सत्यशोधक सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। 1897 में पुणे में प्लेग का प्रकोप फैल गया। लोगों की मदद के लिए माता सावित्रीबाई फुले ने मरीजों के लिए अस्पताल खोला। प्लेग से पीड़ित एक बच्चे को उन्होंने अपनी पीठ पर लादकर अस्पताल ले गईं। जिसकी वजह से माता सावित्रीबाई फुले भी बीमार हो गईं और 10 मार्च 1897 में उनका निधन हो गया।
जीवन परिचय, एक नजर:
जन्म: 3 जनवरी 1831
निधन: 10 मार्च 1897
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