कृष्ण कांत, नई दिल्ली
देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है।” – प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह
15 साल से प्रचारित इस झूठ को आज नरेंद्र मोदी ने भी आगे बढ़ाने की कोशिश की। क्या मनमोहन सिंह ने कभी ऐसा कहा था? इस कथन की सच्चाई क्या है?
मनमोहन सिंह का यह कथित बयान 18 साल पुराना है। 9 दिसंबर 2006 को उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल को संबोधित किया था। उसी के बाद यह कथित बयान चर्चा में आया था।
उस समय प्रधानमंत्री विकास परिषद के डि फेक्टो अध्यक्ष हुआ करते थे। इस हैसियत से बैठक में डॉ मनमोहन सिंह ने भाषण दिया था। कुछ समय पहले लल्लनटॉप के पत्रकार को मनमोहन सिंह के इस भाषण का लिखित वर्जन हासिल हुआ। प्रधानमंत्री का हर भाषण प्रधानमंत्री कार्यालय में सुरक्षित रहता है।
प्रधानमंत्री का यह कथित बयान उस भाषण के एक अंश को संपादित करके निकाला गया था। पूरा पैराग्राफ इस तरह है:
“मेरा मानना है कि हमारी सामूहिक प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं- कृषि, सिंचाई – जल संसाधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश, और सामान्य बुनियादी ढांचे के लिए आवश्यक सार्वजनिक निवेश की जरूरतें, साथ ही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कार्यक्रम, अल्पसंख्यक और महिलाएं और बच्चों के लिए कार्यक्रम। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए योजनाओं को पुनर्जीवित करने की ज़रूरत है। हमें नई योजना लाकर ये सुनिश्चित करना होगा कि अल्पसंख्यकों का और खासकर मुस्लिमों का भी उत्थान हो सके, विकास का फायदा मिल सके। इन सभी का संसाधनों पर पहला हक़ है। केंद्र के पास बहुत सारी जिम्मेदारियां हैं, और ओवर- ऑल संसाधनों की उपलब्धता में सबकी ज़रूरतों का समावेश करना होगा।”
इस कथन को एडिट किया गया और ऐसे प्रसारित किया गया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। भाषण में कहीं नहीं कहा गया है कि देश के संसाधनों पर पहला हक किसी एक समुदाय का है। डॉ मनमोहन सिंह एससी, एसटी, ओबीसी, महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों की बात कर रहे थे। उन्होंने उसी संदर्भ में कहा कि संसाधन पर पहला हक इनका होना चाहिए, जिनमें मुस्लिम भी शामिल हैं। वे सभी वंचित तबकों के उत्थान की बात कर रहे थे।
हैरानी की बात ये है कि मनमोहन सिंह का ये बयान 2006 का है लेकिन ज्यादातर मीडिया में ये 2010 में छपा। 4 साल बाद। आप इस बयान को खोजेंगे तो एनडीटीवी, टाइम्स आफ इंडिया, जागरण, बीबीसी और अन्य कई वेबसाइट पर यह बयान 2010 में छपा हुआ मिलेगा। लेकिन मनमोहन के बयान का पूरा पैराग्राफ किसी खबर में नहीं है।
असली पैराग्राफ ये था: “I believe our collective priorities are clear: agriculture, irrigation and water resources, health, education, critical investment in rural infrastructure, and the essential public investment needs of general infrastructure, along with programmes for the upliftment of SC/STs, other backward classes, minorities and women and children. The component plans for Scheduled Castes and Scheduled Tribes will need to be revitalized. We will have to devise innovative plans to ensure that minorities, particularly the Muslim minority, are empowered to share equitably in the fruits of development. They must have the first claim on resources. The Centre has a myriad other responsibilities whose demands will have to be fitted within the over-all resource availability.”
10 दिसंबर, 2006 को पीएमओ ने इस बारे में स्पष्टीकरण भी दिया था, लेकिन उसे किसी ने सुनने पढ़ने की जहमत नहीं उठाई।
मेरा निष्कर्ष है कि यह बहुत बड़े पैमाने पर हुआ एक फेक न्यूज स्कैंडल था कि सेकुलर, प्रोग्रेसिव, लोकतांत्रिक मूल्यों वाले पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की भी आंख पर पट्टी बंध गई। यहां तक कि कई बार आपसी बहसों में मेरे दोस्तों ने इस बयान को कोट किया और मैं चुप रह गया।
18 साल से ये झूठ प्रसारित हो रहा है। संसद में भाजपा के मंत्री भी इसे दोहरा चुके हैं। आज तो देश के प्रधानमंत्री ने भी इसे आगे बढ़ाया।
मनमोहन सिंह ने गलती की। उन्होंने फेक न्यूज के सरगनाओं का फन कुचलने की बात नहीं सोची। 18 साल पुराना ये झूठ उसी समय दफन कर दिया गया होता तो आज ये दिन न देखना पड़ता!
साभार: वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण कांत के फेसबुक पेज से