कभी माउथ कैंसर से पीड़ित रहे शरद पवार ने विपक्ष को दी ताकत
नई दिल्ली, 26 नवंबर
79 साल का एक बुजुर्ग, जो कभी माउथ कैंसर से पीड़ित था। लेकिन उम्र के इस पड़ाव में भी इस व्यक्ति ने बारिश में भिंगते हुए चुनाव प्रचार किया और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इसने अपनी पार्टी को 54 सीटों पर जीत दिलाने में कामयाब रहा। हम बात कर रहे हैं नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार की।
अनेक उतार-चढ़ाव के बावजूद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने साबित कर दिया कि यह मराठा टाइगर अभी जिंदा है और मोदी-शाह की जोड़ी को कड़ी चुनौती देने में सक्षम है। ये शरद पवार की ही काबिलियत थी कि भतीजा अजीत पवार के भाजपा खेमे में जाने के बावजूद अपने सभी विधायकों को एक-एक कर एकजुट किया और सोमवार को एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के 162 विधायकों को मीडिया के सामने लाकर दमखम दिखाया।
आज जब देश की पूरी राजनीति नरेंद्र मोदी और अमित शाह के ईर्द-गिर्द घूम रही है और ये जोड़ी केंद्र से लेकर हर राज्य में अपनी धमक बढ़ाती जा रही है, वहीं पर महाराष्ट्र का यह बूढ़ा मराठा टाइगर इन मोदी-शाह की जोड़ी के विजय रथ को रोक दिया है। शरद पवार ने न केवल भाजपा के बढ़ते कदम को रोका है, बल्कि यह चुनौती भी दी है कि यह कर्नाटक अथवा हरियाणा नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र है और हम छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज हैं।
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नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार ने विपक्ष को वो ताकत दी है, जिसकी विपक्ष को लंबे समय से दरकार थी। जिस मोदी-शाह की जोड़ी के सामने केजरीवाल, ममता बनर्जी और नीतीश कुमार जैसे धुरंधर नेता टिक नहीं पाए, आज उसी जोड़ी के सामने 79 साल का यह बुजुर्ग चट्टान की तरह खड़ा हो गया है। हालांकि असली फैसला बुधवार को होगा, जब महाराष्ट्र विधान सभा में फ्लोर टेस्ट होगा।
उच्चतम न्यायालय के आदेश पर बुधवार, 27 नवंबर को फ्लोर टेस्ट होगा। यह टेस्ट ओपेन होगा। विधान सभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाएगा।
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पवार का करिश्माई व्यक्तित्व:
ये शरद पवार का करिश्माई व्यक्तित्व ही है, कि कभी वह यशवंत राव चव्हाण व युवा तुर्क के तौर पर लोकप्रिय रहे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के करीबी रहें। भतीजा अजीत पवार के भाजपा संग उपमुख्यमंत्री का पद ग्रहण करने के बावजूद उन्होंने शिवसेना और कांग्रेस का भरोसा जिंदा किया। अपने सारे विधायकों को एकजुट किया।
कभी सोनिया गांधी का किया था विरोध:
ये शरद पवार ही हैं, जो कभी विदेशी मूल के नाम पर सोनिया गांधी का खुलकर विरोध करते हुए कांग्रेस छोड़ दिया और बाद में उन्हीं की छत्रछाया में मनमोहन सरकार में कैबिनेट मंत्री बनें।
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