सदियों की रूढ़िवादितां को दूर करने के लिए ‘आरक्षण के जनक’ father of reservation को अनेक आलोचनाओं का सामाना करना पड़ा
Reservation for backward, scheduled castes and scheduled tribes came into effect on 26 July 1902 in Kolhapur.
यूपी80 न्यूज, नई दिल्ली
संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ.भीम राव अंबेडकर Dr Bhim Rao Ambedkar के आदर्श एवं छत्रपति शिवाजी महाराज Chhatrapati Shivaji Maharaj के वंशज कोल्हापुर रियासत के राजा छत्रपति शाहूजी महाराज Chhatrapati Shahuji Maharaj ने दिन 26 जुलाई 1902 में अनुसूचित जाति-जनजाति एवं पिछड़ों को सरकारी सेवाओं में भागीदारी हेतु आरक्षण की नींव रखी थी। इसलिए शाहूजी महाराज को ‘आरक्षण का जनक’ भी कहा जाता है।
हालांकि शाहूजी महाराज के लिए आरक्षण Reservation को लागू करना आसान नहीं था। जिस दौर में उन्होंने आरक्षण को अपने रियासत में लागू करने का आदेश पारित किया, उसी दौर में महाराष्ट्र में एक ऐसे नेता बाल गंगाधर तिलक Bal Gangadhar Tilak का उदय हुआ, जो स्वराज की बात तो करते थें और ‘गरम दल Garam Dal’ की अगुवाई भी कर रहे थे, लेकिन उन्होंने आरक्षण का पुरजोर विरोध भी किया।
शाहूजी महाराज ने क्यों लागू किया आरक्षण:
17 मार्च 1884 को कोल्हापुर Kolhapur की रियासत संभालने के बाद शाहूजी महाराज ने देखा कि अछूतों The untouchables को अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाता था। जिससे उनका उचित इलाज नहीं हो पाता था। अत: उन्होंने सबसे पहले शासनादेश जारी किया कि किसी भी अछूत को ससम्मान अस्पताल में भर्ती व इलाज किया जाए और इसका उल्लंघन करने पर कर्मचारी को नौकरी से निकाल देने की सजा तय की गई। उन्होंने पाया कि उनके दरबार में 71 उच्च पदों में से 60 ब्राह्मण और 11 अन्य जातियों के लोग हैं। इसी तरह निजी सेवा में 52 में से 45 ब्राह्मण पदाधिकारी थे। इस स्थिति को देखते हुए उन्होंने दरबार में पदों पर समाज के सभी तबकों को प्रतिनिधित्व व काम करने का मौका देने के लिए 26 जुलाई 1902 में आरक्षण का प्रावधान किया।
वंचित वर्ग के लिए छात्रावास व छात्रवृत्ति की व्यवस्था:
शाहूजी महाराज ने वंचित वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए छात्रावास का निर्माण कराया व छात्रवृत्ति का प्रावधान किया।
किसानों के लिए तोपें दान की:
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारत में कच्चे लोहे का आयात रूक गया। जिसकी वजह से किसानों को दिक्कत होने लगी और इसका प्रतिकूल असर खेती पर पड़ने लगा। इस समस्या से उबरने के लिए शाहूजी महाराज उस जमाने की प्रसिद्ध कंपनी किर्लोस्कर को अपने राज्य की सभी तोपें दान कर दी, ताकि इन लोहे की तोपों को गलाकर इनसे लोहे के हल बनाए जा सकें। शाहूजी महाराज के इस पहल से किसानों को हल मिल गए और फसल अच्छी होने लगी।
जब 1887 में अकाल और हैजे की बीमारी ने रियासत की कमर तोड़ दी तो उस दौरान शाहूजी ने 1887 में किसानों के लिए रोजगार के विशेष अवसर प्रदान किए। किसानों का लगान माफ किया। सस्ते दामों में अनाज और बुआई के लिए भी उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराए।
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