गोष्ठी में ‘बंद होती पाठशाला और खुलती मधुशाला’, पर गंभीर चर्चा हुई
यूपी 80 न्यूज़, मऊ
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर जन संस्कृति मंच और राहुल सांकृत्यायन सृजनपीठ, भुजौटी के संयुक्त तत्वावधान में एक विचारगोष्ठी एवं काव्य-संध्या का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता जन संस्कृति मंच के अध्यक्ष मनोज सिंह ने की। गोष्ठी का विषय था ‘बंद होती पाठशाला और खुलती मधुशाला’, जिसमें शिक्षा के बदलते स्वरूप और समाज में आ रही सांस्कृतिक गिरावट पर गंभीर चर्चा हुई।

मनोज सिंह ने प्रेमचंद के लेखन में निहित यथार्थवाद को रेखांकित करते हुए कहा कि वे एक ऐसे विवेक की तलाश कर रहे थे जिससे समतामूलक और सहिष्णु समाज का निर्माण हो सके। उन्होंने ‘गबन’ उपन्यास का हवाला देते हुए स्त्री शिक्षा पर प्रेमचंद की दूरदृष्टि को याद किया। उन्होंने ऊधम सिंह, रतन थियम, अरुणेश नीरन और अजय कुमार को श्रद्धांजलि भी दी।
डॉ. जयप्रकाश धूमकेतु ने प्रेमचंद को शिक्षक रूप में याद करते हुए उनके अंतिम यात्रा के प्रसंग का उल्लेख किया और बताया कि बनारस में उन्हें साहित्यकार से अधिक अध्यापक के रूप में जाना जाता था। रामावतर सिंह ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली में प्राइवेट स्कूलों की बढ़ती महंगाई को चुनौती बताया।
अजीम खाँ ने कहा कि सरकारी स्कूलों में गरीब तबके के बच्चे पढ़ते हैं, ऐसे में स्कूलों का मर्ज होना शिक्षा के अधिकार का हनन है। रामजी सिंह ने प्रेमचंद की ‘कर्मभूमि’ के अमरकांत का उदाहरण देते हुए कहा कि शिक्षा का असली उद्देश्य सेवा और सरलता है, न कि केवल डिग्रियां।
डॉ. तेजभान ने प्रेमचंद के शिक्षक जीवन और शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला। फखरे आलम ने सरकारी संस्थाओं के निजीकरण पर चिंता जताई और सुधार की बात कही। डॉ. रामशिरोमणि ने आज की शिक्षा व्यवस्था पर व्यंग्य किया कि विद्यालय खोलने वालों की भी योग्यता तय होनी चाहिए।
द्वितीय सत्र में काव्य-पाठ हुआ, जिसमें सुरेन्द्र सिंह चांस ने ‘खामोशी से ढूंढ़ रही वो राज पुरानी’, कृष्णदेव ‘घायल’ ने ‘रोज नया-नया सपना देखावत हवे’ और ‘बेहया के समझाईं कैसे’ जैसी रचनाएं प्रस्तुत कीं।
कार्यक्रम का संचालन धनञ्जय ने किया। इसमें लक्ष्मी चौरसिया, विजय कुमार, ओमप्रकाश ‘रंजन’, अमर बहादुर, मरछू राम प्रजापति, सत्यम आदि की उपस्थिति रही।