ट्रेनिंग के दौरान यूपी पुलिस को पढ़ाई जाती है महान क्रांतिकारी की गौरवगाथा
यूपी80 न्यूज, मेरठ
आज 10 मई 10 May है। आज से लगभग 163 साल पहले 1857 में आज ही के दिन मेरठ में 1857 India Revolt की क्रांति का बिगुल बजा और इस क्रांति के जनक थे कोतवाल धन सिंह गुर्जर Kotwal Dhan Singh Gurjar। धन सिंह गुर्जर मेरठ के कोतवाल थे। भारी-भरकम शरीर, बड़ी-बड़ी मूंछे, लंबा-चौड़ा कद, बुलंद आवाज वाले धनसिंह का उन दिनों मेरठ और आसपास के इलाकों में काफी रौब था।
1857 की क्रांति India Revolt के दौरान कोतवाल धन सिंह गुर्जर Kotwal Dhan Singh Gurjar के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ मेरठ में बागी सैनिकों और बागी पुलिस फोर्स का एक साझा मोर्चा तैयार किया गया। धन सिंह गुर्जर मेरठ के पास खुर्द पांचली गांव के रहने वाले थे। स्थानीय होने के नाते उनके नेतृत्व में कई गांवों के लोग इस क्रांति में शामिल हुए। क्रांतिकारियों ने रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी। तत्पश्चात कैदी भी क्रांति में शामिल हो गए। इससे पहले बागियों ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।
सुनियोजित थी क्रांति:
मेरठ में क्रांति को पूरी सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया। 10 मई को सभी सैनिकों ने एक साथ मेरठ में सभी स्थानों पर विद्रोह कर दिया। ठीक उसी समय सदर बाजार की भीड़ जो पहले से ही हथियारों से लैस होकर इस घटना के लिए तैयार थी, ने भी अपनी क्रांतिकारी गतिविधियां शुरू कर दीं।
कोतवाल धन सिंह गुर्जर Kotwal Dhan Singh Gurjar ने बड़ी चतुराई से अंग्रेजों के वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया। क्रांति के दौरान ये पुलिस कर्मी वहीं बैठे रहें। दूसरी तरफ उन्होंने क्रांति के समर्थक सिपाहियों को क्रांति में अग्रणी भूमिका निभाने का गुप्त आदेश दिया।
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ग्रामीणों के संपर्क में:
धन सिंह गुर्जर अपने गांव पांचली और आसपाल के गुर्जर बाहुलय गांव घाट, नंगला, गगोल इत्यादि गांवों की जनता के सीधे संपर्क में थे। धन सिंह का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में गूजर क्रांतिकारी रात में मेरठ पहुंच गए। मेरठ की क्रांति में स्थानीय गुर्जर समाज की विशेष भूमिका रही।
धन सिंह कोतवाल भी एक किसान परिवार से थें, उनके पिता पांचली गांव के मुखिया थे। अत: अंग्रेजों द्वारा वसूले जा रहे लगान से धन सिंह कोतवाल भी आहत थे।
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पांचली गांव को तोप से उड़ाया:
मेरठ में क्रांति का मुख्य केंद्र पांचली गांव हो गया था। यहां के गुर्जर अंग्रेजों की आंखों में खटकने लगे थे। अत: क्रांति का दमन और लोगों के अंदर दहशत फैलाने के लिए अंग्रेजों ने 4 जुलाई 1857 की सुबह पांचली गांव पर हमला करने की रणनीति बनायी। यह जानकारी कोतवाल धन सिंह गुर्जर को मिल गई थी। उन्होंने गांव के लोगों को अन्यत्र जाने की सलाह दी। गांव की महिलाओं, बच्चों व बुजुर्गों को अन्यत्र भेज दिया गया। लेकिन गांव के युवक अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए डंट गए।
4 जुलाई को सुबह चार बजे पांचली गांव पर एक अंग्रेजों ने तोपों से हमला किया। पूरे गांव को तोप से उड़ा दिया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी दे दी गई। हालांकि कुछ इतिहासकारों के मुताबिक 80 लोगों को फांसी दी गई। इसके बाद उनका कुछ पता नहीं चला। इसी तरह ग्राम गगोल के 9 लोगों को फांसी दी गई और पूरे गांव को नष्ट कर दिया गया। धन सिंह कोतवाल का जन्म मेरठ के पांचली खुर्द में 27 नवंबर 1814 को हुआ था। इनके पिता का नाम जोधा सिंह और माता का नाम मनभरी देवी था।
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अंग्रेजों ने धन सिंह गुर्जर को दोषी ठहराया:
क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया। कमेटी ने इसके लिए मुख्य तौर पर कोतवाल धन सिंह गुर्जर को दोषी ठहराया। कमेटी का मानना था कि यदि कोतवाल अपने कर्तव्य को ठीक से निभाये होते तो संभवत: मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था।
पुलिस ट्रेनिंग का हिस्सा कोतवाल की गौरवगाथा:
यूपी पुलिस ने इस शहीद की गौरव गाथा को अपने पुलिस ट्रेनिंग का हिस्सा बना दिया है। यूपी पुलिस के जवानों व अधिकारियों को कोतवाल धन सिंह गुर्जर की कुर्बानी के बारे में पढ़ाया जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार विजय गुर्जर Vijay Gurjar कहते हैं कि कोतवाल धन सिंह गुर्जर भारतीय इतिहास के बहादुर योद्धाओं की श्रेणी में स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं, लेकिन बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि इस वीर योद्धा की गौरवगाथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित रह गई। देश के हर युवा की जुबां पर इस बहादुर योद्धा की गौरव गाथा होनी चाहिए। अखिल भारतीय गुर्जर महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नेपाल सिंह कसाना कहते हैं कि बाबा धन सिंह गुर्जर जी बलिदान सदियों तक याद रखा जाएगा। उनकी गौरव गाथा से युवाओं को प्रेरणा मिलती है। केंद्र सरकार को बाबा धन सिंह गुर्जर के नाम पर डाक टिकट जारी करना चाहिए। पाठ्य पुस्तकों में उनके गौरव गाथा को शामिल करना चाहिए। उनके नाम पर एक केंद्रीय विश्वविद्यालय खोला जाए।
साभार: indiarevolt1857blogspot.com
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