ज्योति राजपूत, लखनऊ
जब मैं कल कोर्ट के लिए अपनी बहन के साथ जा रही थी तब मैंने इस महिला को पीडब्लूडी कालोनी, जेल रोड, सड़क किनारे बहुत ही बुरी दशा में बैठे देखा, मेरी नज़र इन पर पड़ी तब तक हमारी गाड़ी काफी आगे निकल चुकी थी फिर मैंने गाड़ी रिवर्स करवाई, जब इनके पास पहुंचीं तो इनकी दशा बहुत ही खराब थी, इनकी एक आंख से सड़ा हुआ मांस बहार निकला था, जिससे ब्लड टपक रहा था, मैंने 108 पर फोन कर एम्बुलेंस बुलाई, पर एम्बुलेंस वालों ने कहा मैडम आपको इनके साथ चलना पड़ेगा। फिर मैं और मेरी बहन इन्हें लोक बंधु अस्पताल पहुंचे। जहां डाक्टरों ने इन्हें देखकर कहा कि इनको कैंसर है, इसीलिए उन्होंने इन्हें केजीएमयू के लिए रिफर कर दिया।
मैंने फिर से 108 पर फोन किया और एम्बुलेंस से इन्हें केजीएमयू ले गयी। जहां एम्बुलेंस वालों ने हमें गेट के अंदर लाकर छोड़ दिया और कहा अब आगे का मैडम आप देखिए। मैं जब इनका रजिस्ट्रेशन पर्चा बनवाने गयी तो वहां पर्चा बनाने से इंकार कर दिया गया और कहा गया कि ये लावारिस हैं, हम इनका पर्चा ऐसे नहीं बना सकते, आप सीएमएस से बात करिए, मैं वहां गयी तो वहां के स्टाफ ने बताया कि सीएमएस जा चुके हैं, आप मेन सीएमएस और पीआरओ आफिस जाइए लावारिस पेशेंट्स से रिलेटेड मैटर वो ही देखते हैं। मैं वहां पहुंची तो वहां भी सीएमएस नहीं थे। फिर मैंने पीआरओ आफिस में पूरी बात बताई यहां तक माननीय उच्च न्यायालय का आदेश और उत्तर प्रदेश सरकार का जीओ भी दिखाया, फिर भी उन्होंने कहा कि हम कुछ भी नहीं कर सकते। आप कल इन्हें लेकर आइए हमारे यहां ओपीडी 1 बजे तक रहती है। इस लावारिस पेशेंट्स को हम नहीं ले सकते और बहुत ही अभद्रता करने लगे तब मैंने उनका विडियो बनाया तो उन्होंने मेरा फ़ोन लेकर विडियो डिलीट कर दिया। उन्होंने कहा इनको सड़क से लायीं हैं सड़क पर छोड़ दीजिए……..
मैंने 1090 पर फोन किया तो उन्होंने कहा 181 महिला हेल्पलाइन पर फोन करिए वो इनके रहने तक का इंतज़ाम कर सकती हैं। 181 वालों ने 112 की पुलिस को भेजा जो अस्पताल स्टाफ के साथ हां में हां मिला रही थी वो भी कह रही थी कि हम क्या कर सकते हैं? आप लोकल थाने जाइए इन्हें लेकर। उस टाइम मेरे पास गाड़ी भी नहीं थी पेशेंट को चलने पर चक्कर आ रहे थे….. फिर बहुत रिक्वेस्ट करने पर लोकल पुलिस आती तो है वो भी अस्पताल की ही पैरवी करने….. ….
मैं सीएमएस आफिस पुनः गयी, उन्होंने मुझसे मिलने से इंकार कर दिया। उनके बाबुओं ने कहा कि आप शाताब्दी में आंकोलॉजी डिपार्टमेंट जाइए, वहां विजय सर हैं वो आपकी मदद करेंगे, वहां जाकर कह दीजिएगा कि सीएमएस के यहां से भेजा गया है यहां से फोन हो जायेगा। मैंने पुलिस से कहा कि आप लोग भी साथ चलिए तो उन्होंने कहा कि हम साथ नहीं चल सकते….
फिर मैं और पेशेंट वहां पहुंचे तो पता चला डॉक्टर विजय वहां हैं ही नहीं उनके स्टाफ आदि से पूछा तो उन्होंने कहा कि हमें कोई फोन नहीं आया विदाउट रजिस्ट्रेशन हम पेशेंट को हम देखेते ही नहीं। फिर मैंने पुलिस को कॉल किया उन्होंने कहा मैडम हमारा समय केवल चालीस मिनट तक का होता है हम अब कुछ नहीं कर सकते, आप इन्हें किसी रैन-बसेरे में रखवा दीजिए। सुबह 11 से लगभग 4:30 बजे चुके थे उस पेशेंट की कोई भी मदद नहीं हो पा रही थी और वो पेशेंट भी मेरे साथ पूरे अस्पताल के चक्कर काट रही थी उसकी हालत खराब हो रही थी….।
इस प्रशासनिक सिस्टम को देखकर और उस पेशेंट की स्थिति को देखकर आंखों में आसूं आ रहें थे। ये सब देखकर लग रहा था कि कागजों पर लिखीं बातें कानून, संविधान सब इनके लिए कोई मायने नहीं रखते…….। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या करूं किससे मदद मांगू? तब मैंने अपने अधिवक्ता भाई और मित्र गौरव को फोन किया उसने कहा कि तुम चिंता मत करो हम आतें हैं। फिर वो और महेश भाइया वहां आये। महेश दद्दा ने अपने परिचित लखनऊ के एक बड़े मेडिकल अधिकारी से बात की और उन्हें जीओ और माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बारे में बताया उन्होंने उनको एक अन्य अधिकारी के पास जाने को बोला। फिर हम उस अधिकारी के पास गए उन्होंने एक स्टाफ के साथ एक अन्य अधिकारी के पास भेजा, जहां मैं शुरूआत में ही गयी थी और उन्होंने मुझे मना कर दिया था तथा सीएमएस और पीआरओ आफिस जाने को कहा था, वो सब तुरंत बोले सर ने कहा है जाइए इनका लावारिस में पर्चा बनवा दीजिए और एक बाबू को भी साथ में भेजा उसने पर्चा बनवाया और तब इमरजेंसी में इनका एडमिशन हुआ, अब मुझे नहीं पता कि आगे के इनके इलाज के लिए कितना संघर्ष करना पड़ेगा। पर ये सब देखकर बहुत दुख होता है कि आखिर हमारे देश का प्रशासनिक सिस्टम इतना खराब है कि एक सामान्य व्यक्ति किसी व्यक्ति की मदद कर ही नहीं सकता। और प्रशासन के सारे अंगों का यही हाल। एक महिला की स्थिति, उसकी सुरक्षा से इन्हें कुछ नहीं लेना देना। वैसे मैं कोर्ट नहीं पहुंचीं लेकिन सहयोगियों और जुनियर्स की वजह से मेरा काम एडजेस्ट हो गया परंतु हर किसी के पास इतना समय नहीं होता कि वो किसी की मदद के लिए पूरा दिन दे। मैं सुबह 11बजे से शाम लगभग 6:30 बजे इस काम से फ्री हुई।
(युवा वकील ज्योति राजपूत उच्च न्यायालय, खंडपीठ लखनऊ में प्रैक्टिस करती हैं)